नहीं मिलेगी किसी बाजार में….
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हँसकर-प्रेम से सौ काम भी कराए जा सकते है । यदि हमने ग़ुस्से को विवेक व धीरज से पचा लिया तो अवश्य शुभ परिणाम आएँगे ।ग़ुस्से के हथौड़े से केवल ताला तोड़ा जा सकता है खोला नही जा सकता है । आक़ुल-व्याकुल नही,क्रोध-प्रहार नही,कोई प्रतिकार नही। ईंट का जवाब न पत्थर से न ईंट से हमें उस निहाई कि तरह स्थिर रहना सीखना चाहिए।समता का संतुलन बनाए रखना चाहिये ना की बिगाड़ना जो हमें हिमालय सा अडिग पहाड़ बना दे।
सब कुछ भूल-भाल कर माधुर्य के नव बीज बो देने की। बीती ताहि बिसार देने की और मनों के उजड़े नीड़ को फिर से बसा देने की। सम्बन्धों का सूखा पेड़ फिर से हरा भरा हो सकता है । यदि कोई इतना सा कर सकता है। इसलिए-सहज हो भाव-निर्मल हो स्वभाव- किसी की भावनाओं को ना पहुँचाए ठेस- वक़्त पर विवेक रखे विशेष-आवेश के समय करे थोड़ा सा इंतज़ार-धैर्य से करें परिष्कार-गाँठे खोलने का करें प्रयास-ले सहिष्णुता भरा विश्वास-निर्मल निर्ग्रंथ बने-मज़बूत करे रिश्ते के ताने-बाने-आत्मोतकर्ष के खुलेंगे द्वार-साधना होगी निराकार ।
नैतिकता, व्यवहार का सलीका , उच्च चरित्र, दिल की शुद्धि, व्यवहारिक बुद्धि। विश्वास, धीरज, प्रतिष्ठा, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा आदि। इनको बहुत ढूँढा पूछा हर दूकान में पर नहीं मिली इनमें से कुछ भी किसी भी प्रतिष्ठान में।क्योंकि ये सब तो हैं स्वनिर्मित गुण अपने-अपने चरित्र में तो कैसे मिलेगी यह किसी भी दूकान में।