विदुषी प्रवास विदाई पर कवि के भाव ………
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आचार्य महाश्रमण जी की विदुषी सुशिष्या साध्वी डॉ . सम्पूर्णयशा जी , साध्वी संवरप्रभा जी , साध्वी मौलिक प्रभाजी (M.A), साध्वी डॉ . मेघप्रभा जी के बोरावड़ प्रवास के बाद विदाई पर मेरे भाव –
विदाई शब्द ही अपने आप में दुःखद होता है । तेरापंथ धर्मसंघ में गुरू आज्ञा सर्वोपरी हैं । आप गुरू आज्ञा से सूखे – सूखे विचरण करते हुए भैक्षव शासन के नन्दन वन को महकाते रहे ।इसी आशा के साथ मेरी कुछ पंक्तियाँ –
धर्म करने का संकल्प था करेंगे नवसृजन
तम मिटायेंगे, प्रकाश का होगा आगमन
झूठ,कपट,चोरी,ईगो का न करेंगे चयन
बुराइयों पर अच्छाइयों का होगा मनन
क्या खोया,पाया इनका अब निकालेंगे निष्कर्ष
सुनहरे सपनों के साथ आ रहा आने वाला पल
जो संकल्प पूर्ण नहीं हुए, चिंतन से पायेंगे निष्कर्ष
योग, स्वच्छता, शिक्षा को घर-घर अपनायेंगे
साध्वी श्री को दे जीवन की खोट शुद्ध की और बढ़ जाएंगे
अभिमान,क्रोध पर नियंत्रण रख संयम को अपनाएंगे
नए निर्माण की खातिर, नया आलोक बरसाएंगे
नए अरमान भरकर निष्कर्ष से नयी राह दिखलाएंगे
जो शेष रहे संकल्प,निष्कर्ष से अशेष तक पहुंचायेंगे
निष्कर्ष से सपनों को जगाकर, संकल्पों को दोहरायेंगे।
अंतिम निष्कर्ष तो यही है आत्मा को उज्जवल बनाएंगे
बीते कल के अनुभव के निष्कर्ष से, पुरुषार्थ व “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना से भविष्य का भाग्य रचायेंगे।
जीवन है, जीवन में व्यवहार है।
पारस्परिक व्यवहार में
जान अनजान में
मन से, वचन से, काया से
कभी न कभी भूलें हो ही जाती हैं
जो दिल दुखा देती हैं।
आज विदाई के इस पावन
अवसर पर
विगत समयावधि में हुई ऐसी
समस्त पारस्परिक भूलों के लिए
शुद्ध अंत:करण से सभी साध्वी से
मैं बारम्बार खमतखामणा करता हूँ ।
आप सभी साध्वी श्री जी के सूखे – सूखे विहार की मंगलकामना करता हूँ ।