Literary Creation : साहित्यिक रचना…… रावण की कांवड़
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PRESENTED BY KRIPA SHANKAR VIKRAM
कांवड़ उठाया रावण ने सुनो रावण परिवार !
एक दिवस जा पहुंचा रावण देवघर राज्य विहार !!
झारखण्ड की पावन भूमि वासुकी नाथ के द्वार !
शिवलिंग ले जाने लंका , रावण था तैयार !!
महादेव की हुई कृपा जब वह उठा ना पाया भार!
लघु शंका के तलब से बदला रावण का व्यवहार !!
जब बैठा लघु शंका रावण बनी कर्मनासा की धार!
जिसको पकड़ाया था शिवलिंग वो बैठा थक हार !
उसी जगह पर रख दिया शिवलिंग होकर के लाचार !!
वाणी का खंडन हुआ,उस क्षण हुआ वहां चमत्कार !
शिवलिंग स्थापित हुआ ,रावण हिला न पाया भार !!
मूत्र वाहिनी नदी बन गयी बह निकली जलधार!
हुआ दशानन क्रोधित बलभर देख स्वयं प्रतिकार !!
कर रक्खा शिवलिंग पर, पुनः अंगूठा अधिभार !
दबा दिया शिवलिंग को वैद्य शिखर के सार!!
शिव बैठे अब शिखर पर रावण खाया खार!
जो समझे हो मित्र सब बोलो ॐ नमः शिवाय !
कालखंड के अन्त में रहे चरवाहे बैजू भेड़ चराय!!
बैजू को शिवलिंग मिला जंगल के अभिप्राय !
बैजू के इक नियम ने दिया बाबा को हरषाय!!
प्रतिदिन मारे लट्ठ से शिवलिंग फिर वो खाना खाय!
बाबा बैजू की कथा भक्तों सुन कर मन हरषाय!!
इक दिन बैजू भूलकर बैठा अपने घर खाना खाय!
आयी याद फिर बाबा की चल पड़ा शीश झकाय!!
भूल याचना कर बैजू दिया शिवलिंग पर लट्ठ जमाय!
बैजू की इस श्रद्धा से बाबा मन-ही-मन हरषाय!!
प्रकट हुए भोले भंडारी बैजू खड़े खड़े मुसकाय!
आशीर्वाद दिये बैजू को खुश होकर भोले नाथ !!
हमसे से पहले जाने जाओगे तुम हो बैजनाथ !
बैजनाथ की धरती देवघर अब वैद्यनाथ का नाम !!
मां सती का अंग गिरा था , शिवांगेस्वर धाम!
सिद्धपीठ इक्यावन को है सत – सत मेंरा प्रणाम !!
नोट — रचियता एक युवा साहित्यकार है।