स्वामी प्रसाद मौर्य पर हुए हमले को लेकर न्यायालय के निर्णय ने गरमाया माहौल
1 min read

उत्तर प्रदेश में अपने विवादित बयानों के पहचान बना चुके स्वामी प्रसाद मौर्य पर हुए हमले और सिर काटने की धमकी को लेकर सीजेएम कोर्ट द्वारा परिवाद दर्ज करने का निर्णय दिया गया है जिसे उनके अधिवक्ता दीपक यादव ‘ विधि का शासन ’ की जीत बता रहे है। एडवोकेट दीपक यादव का कहना है कि सरकार और पुलिस नहीं चाहती थी कि हमलावरों के विरुद्ध विधिक कार्रवाई हो। ऐसे में न्यायालय द्वारा लिये गए निर्णय से यह साबित हो गया कि न्यायपालिका सर्वोच्च है।
उत्कृष्ट मौर्य‘ ‘ अशोक’ बनाम महंत राजू दास , परिवाद संख्या 891/23 , थाना : गोमती नगर में वादी के अधिवक्ता दीपक यादव ने इसको लेकर 23मार्च को यूपी प्रेस क्लब,लखनऊ में प्रेस वार्ता भी किया है। बताते चले कि सदस्य विधान परिषद एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य पर 15/02/2023 को राजधानी लखनऊ में स्थित ताज होटल में हुए हमले और 31 /01/2023 को स्वामी प्रसाद मौर्य का सिर काटने पर 21करोड़ 21 लाख रुपये का इनाम रखने की घोषणा करने के मामले में न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के आधार पर एडवोकेट दीपक लगातार मुखर होकर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे है।
इस हमले/ धमकी के मामले में हनुमानगढी के महंत राजू दास व महंत परमहंस , राकेश दीक्षित, सौरभ शर्मा, करन सिंह, विपिन सिंह, विजयसिंह, मनोज मिश्रा, संदीप आचार्य, रंजीत सिंह राणा, पदाधिकारी गण : राम लीला सोसायटी , कानपुर आरोपी बनाए गए है। इस मामले में थाना गोमती नगर , लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट में प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं लिखा जा रहा था।इसके बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के पुत्र न्यायालय की शरण में चले गए। इसी को लेकर विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ( कस्टम ) , लखनऊ द्वारा 18.03.2023 को परिवाद दर्ज करने का आदेश दिया।
इस मामले में विवाद की शुरुआत राम चरित मानस नामक पुस्तक में अंकित दो पंक्तियों : ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी को हटाने के लिए 22 जनवरी को एक न्यूज चैनल में स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा दिये गए बयान से हुआ। इसके बाद से तमाम कथित हिंदूवादी नेताओं द्वारा सदस्य विधान परिषद स्वामी प्रसाद मौर्य को जान से मारने – पीटने की धमकी और गालियाँ दी गई ।
याची के अधिवक्ता दीपक यादव का कहना है कि महंत राजू दास ने स्वामी प्रसाद मौर्य पर हमला करके गैर – कानूनी कार्य किया है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनको संरक्षण मिल रहा है इसलिए उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी। सवाल यह है कि जब एक सदस्य विधान परिषद, पूर्व कैबिनेट मंत्री ,पूर्व नेता विरोधी दल की थाने पर सुनवाई नहीं हो रही है तो फिर थाने पर आम आदमी की कैसे और कितनी सुनवाई होती होगी?
एडवोकेट दीपक यादव कहते है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अलग – अलग नागरिको के लिए अलग – अलग नपना बना रखा है जो विधि के समक्ष समता की अवधारणा के विरुद्ध है। विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ( कस्टम ) ,लखनऊ के स्वामी प्रसाद मौर्य के ऊपर हुए हमले और धमकी को लेकर हनुमानगढी के महंत राजू दास व अन्यों के विरुद्ध परिवाद दर्ज करने का आदेश पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या पुलिस सत्ता के दबाव में कानूनी कार्रवाई से बच रही थी ?
इस पूरे मामले में कुछ सवाल विवादप्रिय नेता स्वामी प्रसाद मौर्य पर भी बन रहे है कि जब योगी आदित्यनाथ सरकार के प्रथम कार्यकाल में जब वे कैबिनेट मंत्री थे तब क्या उनको इस चौपाई का ज्ञान नहीं था। इसके अलावा साल 2017 में हुए विधान सभा चुनाव से पहले बसपा को छोड़कर वे भाजपा में क्यों आए जबकि उनको यह पता था कि भाजपा हिन्दू आस्था के प्रतीकों के सम्मान को लेकर सजग है। इसके अलावा उन्होंने अपनी बेटी संघमित्रा मौर्य को अभी तक उस भाजपा में क्यों बने रहने दिया है जिसे 2022 के चुनाव में वे खतम करने के लिए बड़ी – बड़ी बाते कर रहे थे।
स्वामी प्रसाद मौर्य चाहे जितने तर्क दे लेकिन वे अपने गुरु कांशीराम द्वारा सवर्णों को छोड़कर जिस बहुजन समाज की अवधारणा प्रस्तुत किया था , उसी बहुजन समाज को सपा के झंडे तले लाने के लिए एक सुनियोजित तरीके से इस तरह के बयान दे रहे है अन्यथा अब रामचरित मानस पर लिखी हुई बातों का किया औचित्य हैं जब देश संविधान के आधार पर चलाया जा रहा है।
इस मामले में भाजपा पर भी सवाल बनता है कि जो स्वामी प्रसाद मौर्य बहुजन समाज पार्टी के नेता के रूप में दिन – रात हिन्दू आस्था के प्रति हमलावर थे,उनको भाजपा में क्यों लिया गया ,क्यों विधायक का टिकट दिया गया , क्यों कैबिनेट मंत्री बनाया? इससे भी बड़ी बात यह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता के पक्ष में खड़ी स्वामी प्रसाद मौर्य की पुत्री सांसद संघमित्रा मौर्य को अभी तक भाजपा से निष्कासित क्यों नहीं किया गया ?