उजाला था जश्ने चिरागा से पहले, अंधेरा किया इन चिरागा ने जलकर….
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अमेठी। अमेठी जल विरादरी के संयोजन में अमेठी के आरआर पीजी कालेज में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय जल विमर्श: जल चुनौतियां, कारण और निवारण विषयक सेमिनार में दूसरे दिन अंतिम सत्र में मुख्य अतिथि प्रदेश के पूर्व डीजीपी महेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार के निर्देश, शासनादेश जब निर्गत होते हैं तो उनमें सैद्धांतिक पक्ष होता है, व्यवहारिकता का अभाव पाया जाता जिससे उसका परिणाम अच्छे नही निकलते।
एक शासनादेश का उल्लेख करते हुए कहा कि हैंडपंप नदियो तालाबो के किनारे लगाए जाएं का शासनादेश निर्गत हो गया, यह तर्क दिया गया कि जब पानी का स्टेटस काफी नीचे चला गया है तो वहां नलकूप लगवाएं जाएं जहाँ पानी ऊपर हो। इस शासनादेश में यह नही देखा गया कि जब वाटर रिचार्ज नही होगा तो नदिया भी सुख जाएंगी। श्री मोदी ने कहा कि उजाला था जश्ने चिरागा से पहले, अंधेरा किया इन चिरागा ने जलकर।
प्रदूषित जल को सीधे भूगर्भ में भेजना नही चाहिए, रिचार्ज नही करना चाहिए। सिर्फ छतों के पानी से भी रिचार्ज पूरा नही होगा। एक एक बूंद को कैच द रेन करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण के लिए सभी स्तर के शिक्षकों, धर्म गुरुओं को जल संरक्षण की सही तकनीकी का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता जल बिरादरी के प्रमुख राजेन्द्र सिंह ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि जो इंसान अपनी पानी, अपनी मिट्टी, अपने हवा से दूर होता जाएगा, वह इंसान भगवान से दूर होता जाएगा। यह भगवान पंचमहाभूतों का है, कोई पत्थर की मूर्ति में नही है।

उन्होंने कहा कि विद्या नदियों को जीवन देती है, शिक्षा बांध बनाकर नदियों की हत्या करती है। कार्यक्रम में जलयोद्धा और नेहरु युवा केन्द्र के स्वयंसेवको का सम्मान जल पुरूष राजेन्द्र सिंह द्वारा किया गया और सभी को अमेठी जनपद को पानीदार बनाने का संकल्प दिलाया। आयोजक डॉ0 अर्जुन पांडेय ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि जब तक अमेठी की मालती और उज्जयिनी नदियों को अपना नाम नही मिलेगा, तब तक उनका पुनर्जीवन नही होगा। मंच का संचालन पानी पत्रकार अरुण तिवारी ने किया।
नेहरू युवा केन्द्र अमेठी की उपनिदेशक आराधना राज व आरआर पीजी कालेज के प्राचार्य डॉ पीके श्रीवास्तव ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। इससे पहले दूसरे दिन के प्रथम सत्र में देहरादून से आये जल विशेषज्ञ वैज्ञानिक डॉ अनिल गौतम ने कहा कि रिकॉर्डों में नदी को नाले में बदला जा रहा है, यह उसके अस्तित्व को खतम करने का षणयंत्र है। उन्होंने कहा किभूजल को अपनी प्रॉपर्टी से कामन प्रॉपर्टी के रूप में मानना पड़ेगा। मेवात के जलयोद्धा इब्राहिम ने कहा कि मुख्य सेवक की भूमिका में आकर नदियों का संरक्षण किया जाना चाहिए। बिहार के पूर्व गृह सचिव जियालाल आर्य ने बाढ़ प्रबंधन के बारे में बताया। वहीं रमेश शर्मा ने कहा कि प्रेम का प्रस्फुटन होगा तो पानी अपने आप बढ़ेगा।
यह प्रेम वनस्पति से, पेड़ों, जंगलों और जल स्रोतों से होना चाहिए। बाराबंकी जल बिरादरी के संयोजक रत्नेश कुमार, गायत्री परिवार के प्रतिनिधि कवि विष्णु कुमार शर्मा कुमार, गोपाल भगत, रामधीरज, अरविंद कुशवाहा, डॉ अंगद सिंह, सरिता सिंह, डॉ अभिमन्यु पांडेय, डॉ शिवम तिवारी, राधेश्याम तिवारी, सत्येंद्र प्रकाश शुक्ला, मनोज कुमार द्विवेदी, रोली सिंह, प्रज्ञेय श्रीवास्तव, अंचल कुमार, पूनम रत्नाकर आदि लोगों ने भी सम्बोधित किया।

