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दहेज, हमारा समाज और कुरीतियाँ

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सृष्टि के लिए पुरुष और नारी दोनों ही समान रूप से आवश्यक हैं I फिर नर और नारी में आज भी इतना भेद क्यों ? जन्म से ही एक लड़की को सिर्फ बोझ के रूप में लिया जाता है और लड़का वंश को आगे बढ़ाने का गौरव । एक लड़की के जन्म से लेकर पढ़ाई लिखाई तक का सारा खर्च माँ बाप उठाते हैं फिर वर्षों से जोड़ा हुआ धन भी उसकी शादी में नगद दहेज के रूप में दिया जाता है ,उसके बाद भी माता पिता पराए हो जाते हैं लेकिन एक बेटा कभी लड़की के परिवार को नहीं अपना पाता क्यों ? एक लड़की से शादी के दूसरे दिन से ही उम्मीद की जाती है कि वो अपने माता पिता को भुला दे । ये जिम्मेदारी सिर्फ एक लड़की की ही क्यों ? एक संस्कारी पढ़ी लिखी लड़की ही आपके परिवार को बढ़ा सकती है फिर अनावश्यक दहेज की माँग क्यों ? जब तक आदमी और औरत में समानता का भाव जागृत नहीं होगा लड़कियाँ दहेज की आग में जलती रहेंगी और समाज में लड़कियों का अस्तित्व कभी गौरवशाली नहीं हो सकता । प्रत्येक माता पिता अपनी सामर्थ्य के हिसाब से शादी में खर्च करते हैं ,कृपया उन पर आर्थिक दबाव न बनाये वरना हमारा समाज इस कलंक से कभी दूर नहीं हो पायेगा ।आज भी हर दिन न जाने कितनी लड़कियाँ दहेज की आग में जल रही हैं और माता पिता अपनी बेबसी पर आँसू बहा रहे हैं ,दहेज किसी लड़की की नई गृहस्थी को शुरू करने के लिए माता पिता की ओर से एक तरह की मदद होती थी जिसने समय के साथ विशाल रूप ले लिया और आज उसके विकृत रूप ने माता पिता को असहाय बना दिया है ।आपको अपनी मेहनत पर नाज करना चाहिए न कि फ्री के पैसों पर ,किसी के दिये हुए से जिंदगी नहीं कटती ।जो व्यक्ति अपने कर्म पर भरोसा रखता है वो कभी दहेज की माँग नहीं करेगा ।आइए समाज को जागृत करने में हम सभी एक दूसरे की मदद करें ।

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

( लेखिका के अपने विचार हैं )

 

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