श्रद्धा से मनाया गया गुरुनानक देव का प्रकाश पर्व
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अमेठी। श्री गुरु नानक देव का 553वां प्रकाश पर्व श्रद्धा एवं सद्भाव के साथ मनाया गया। श्री गुरु गोविंद सिंह जी लंगर आयोजन समिति की ओर प्राथमिक विद्यालय अमेठी-द्वितीय में विचार गोष्ठी और अटूट लंगर का आयोजन किया गया।
मंगलवार को सुबह समिति के कार्यकारी अध्यक्ष हरवंश सिंह के आवास पर गुरु ग्रन्थ साहब के प्रकाश के बाद बाबा मनोहर सिंह ने गुरु साहब को भोग लगाया।स्कूल में उन्होंने समिति के मुख्य सेवादार डा अर्जुन पांडेय, डा अंगद सिंह और संजीव भारती के साथ गुरु नानक देव के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित किया ।दीप प्रज्ज्वलन के बाद विचार गोष्ठी में गुरु नानक देव के जीवन दर्शन और सिक्ख धर्म की शिक्षाओं पर विस्तार से संवाद हुआ। बाबा मनोहर सिंह ने सेवादार के रुप में अपने जीवन के संस्मरण सुनाए और कहा कि बाबा हरदयाल की प्रेरणा से मैने अपने गांव में रोज एक फिट रास्ते का निर्माण करके सेवा के काम शुरू किए।संगत के सानिध्य मे आने पर सेवा के काम शुरू किए ,बच्चों की शिक्षा, गुरुद्वारे के काम और लंगर आयोजन मे जीवन के बहत्तर वर्ष पूरे हो गए हैं। शिक्षा और विद्या का दान सबसे बडा दान है। मेरा बचपन, और नौजवानी सेवा करने वाली संस्थाओंं के बीच बीता है।शहीद भगत सिंह की माता का सानिध्य मिलने के कारण कभी अपने लिए कुछ करने का विचार ही मन में नहीं आया।सेवादार के रुप में हम समाज के लिए काम करते रहें I यही हमारी ड्यूटी है।गुरु नानक देव ने पिता जी की ओर से व्यापार के लिए दिए गये बीस रुपये से भूखे साधुओं को भोजन करा दिया और सच्चा सौदा करके चले आए I
जीवन भर उनके पिता नानक जी में अवतारी पुरुष के लक्षण को समझ नहीं पाए। संजीव भारती ने लंगर समिति के सात साल के कार्यों का उल्लेख करते हुए नानक देव के जीवन के संस्मरण सुनाए, I कहा कि गुरुनानक देव ने पाखंड से दूर रहते हुए कर्म की श्रेष्ठता की शिक्षा दी और नाम जपो,कीरत करो,दंड छको का संदेश देते हुए सबको अपना काम ईमानदारी से करने की सीख दी।पर्यावरण विद् और वरिष्ठ सामाजिक चिंतक डा अर्जुन पांडेय ने कहा कि गुरु नानक देव जी अनूठे सिक्ख धर्म के प्रवर्तक रहे।उनका मानना रहा कि गृहस्थ एवं संन्यासी दोनों एक ही है।घर में ऐसे रहना जैसे न हो। ऐसे रहे जैसे हिमालय पर हो, जिसने यह मान लिया सब तेरा ही तेरा है उसे किसी मेरे में फंसाया नही जा सकता है।
नानक का मानना था कि संसार और उसका बनाने वाला दो नही। उन्होंने मानव धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताया।दान की प्रवृत्ति उनके स्वभाव में रही। उन्होंने सदैव लोगों को पाखण्ड से दूर रहने की बात कही। आज के बदलते परिवेश उनके बताये मार्ग पर चलकर ही मानवता की रक्षा संभव है।नानक जी ने ब्रह्म को ही गुरु माना।समाज शास्री डा धनंजय सिंह ने कहा कि सिक्ख धर्म का दर्शन दुनिया मे सबसे महान दर्शन है।मंदिर, मस्जिद के सामने भिखारी मिलते है,गुरुद्वारे के सामने कभी नहीं मिलते।पाखंडी कभी मानवता की रक्षा नहीं कर सकते।पितृ पक्ष में पितरों को भोजन कराने से अधिक जरूरी है माता पिता और वृ्दजनों की सेवा।भूखे को भोजन देने के लिए गुरु नानक देव ने लंगर शुरू किए थे।वरिष्ठ पत्रकार और अवकाश प्राप्त प्रोफेसर डा अंगद सिंह ने कहा कि गुरु नानक देव ने अपने कर्मों के बल पर अपनी शिक्षाओं को पूरी दुनिया में फैला दिया।सदाशिव पांडेय ने कहा कि गुरु नानक जी ने पीड़ित मानवता को सद्मार्ग दिखाया। कार्यक्रम का संचालन अविनाश शुक्ल ने किया।अध्यक्ष मंजीत सिंह ने आभार व्यक्त किया।वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीश मिश्र, सतीश मिश्रा, कुलभूषण शुक्ल, जगन्निवास मिश्र, राम फल फौजी आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।
पी जे थामस,डा अवधेश मिश्रा बेलौरा,सुनील त्रिपाठी, साधना त्रिपाठी, अजय,ललित,डा धर्मेंद्र सिंह आदि मौजूद रहे।
जहां रोशन हो तुम्हारा चांद तोड़ लायेंगे ——
विचार गोष्ठी मे मध्य मे पहुंची कवियत्री और श्रेष्ठ गजलकार डा फूलकली के विचारों की बाबा मनोहर सिंह और समिति के कार्यकर्ताओं ने खूब पसंद किया।उन्होंने कहा कि मानव जीवन सतत शिक्षा की तरह होना चाहिए।सीखने की गुंजाइश हमेशा रहती है। गुरु नानक देव का प्रकाश पर्व पूरी दुनिया मे मनाया जा रहा है।प्रकाश का मतलब सद्गुणों और आचरण की पहचान है।जीवन को सर्वश्रेष्ठ बनाए और मानवता के कल्याण के लिए सर्वश्रेष्ठ योगदान करें,यही गुरु वाणी का संदेश है।फलक में जाके हवाओं को मोड लायेंगे, जहां रोशन हो तुम्हारा चांद तोड लायेंगे— पंक्तियों के साथ उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया।