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ARTICLE ON KASMIRI ISSUES: चिर-चिनार और युवा कश्मीर

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PRESENTED BY ATUL SINGH 

चिनार का वृक्ष भारतीय पश्चिमी हिमालय में खासकर कश्मीरी घाटी में पायी जाने वाली एक विशिष्ट पर्णपाती वन प्रजाति है और अपनी सुंदरता और उल्लास के लिए जाना जाता है। यह वृक्ष कलाकारों, साहित्यकारों तथा इतिहासविदों के लिए आज भी आकर्षण का केंद्र है।

जहाँ एक ओर इस्लामिक संस्कृति इसे ईरानी मूल का मानकर इसके प्रति विशेष लगाव दिखाती है । वहीं दूसरी ओर हिंदू संस्कृति भवानी भगवती से जोड़कर इसके प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करती है। सामासिक संस्कृति का प्रतीक यह वृक्ष भारतीय संस्कृति में संपूर्णता का मानो सर्वश्रेष्ठ निःदर्शन है ।

यह सत्य तब और अधिक स्पष्ट हो जाता है, जब हम इस वृक्ष के स्वभाव व स्वरूप को और अधिक नजदीकी से देखते और समझते हैं।
शरद ऋतु में इस वृक्ष की गहरी हरी पत्तियाँ सुर्खलाल, एंबर और पीले रंग में बदल जाती हैं। इस वृक्ष में इन विविध रंगों का बदलाव ना तो इसके विकास को बाधित करता है, और ना ही इसके जीवंतता को तनावपूर्ण, बल्कि ये विविधता तो इसकी सुंदरता को और बहुगुणित कर देता है ।

इसके हर पत्ते को अपने विकास के लिए अपने अनुसार ढलने की आजादी होती है, विविधता से भरी इसकी हर डाली मजबूती से अपने मूल के साथ जुड़ी रहती है। अनेकता धारण करते हुए भी यह वृक्ष केवल चिनार होता है । वास्तव में यह वृक्ष मानों यह कहता है, समता एकरूपता नहीं बल्कि विविधता का एक उचित सम्मान है । स्वतंत्रता अलगाव नहीं बल्कि अपने अनुसार अपना विकास करने की क्षमता है।

एकता बस धर्म, सम्प्रदाय, जाति का एकीकरण नहीं बल्कि विविधता के साथ हम की भावना का नाम है। अब प्रश्न उठता है की जम्मू और कश्मीर घाटी में जन्मे इस वृक्ष का औचित्य क्या है? जम्मू और कश्मीर ने इस ऐतिहासिक वृक्ष से क्या सीखा और क्या पाया? 1947 से 2019 तक के कालखंड में जम्मू और कश्मीर की पहचान मात्र आतंकवाद, उग्रवाद, बेरोजगारी, गरीबी और अराजकता तक ही सीमित रही, युवा पत्थरबाज बनते रहे ,शीर्ष नेतृत्व देखता रहा और जम्मू एवं कश्मीर अपने अस्तित्व के संकट से ही जूझता रहा।

धारा 370 एवं 35A के हटाए जाने के बाद इस राज्य को एक विशिष्ठ संवैधानिक स्वरूप मिला, आज इस राज्य में 80 हज़ार करोड़ की 62 विकास परियोजनाएँ चलायी जा रही हैं। वित्त आयोग ने भी इसे विशेष अनुदान दिया है । चाइल्ड मैरिज एक्ट, शिक्षा का अधिकार, भूमि सुधार जैसे क़ानून प्रभावी हुए है। वाल्मीकि, गोरखा आदि को आरक्षण और नागरिकता प्रदान की जा रही है। पलायन कर चुके कश्मीरी पंडितों के वापसी के लिए 6000 पारगमन आवासों का निर्माण कार्य प्रगति पर है।पर्यटन के क्षेत्र में कश्मीर पुनः धरती का स्वर्ग बन रहा है।

आज निश्चित रूप से कहा जा सकता है, राष्ट्रीय एकीकरण के रूप में अखंड भारत की जिस मिसाल को स्व० बल्लभ भाई पटेल जी ने जलाया था, धारा 370 और 35A की आहुति ने इसे और प्रज्ज्वलित कर दिया।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू और कश्मीरी आवाम की अधिकतर भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया की जम्मू और कश्मीर पर लागू किए गए कानूनी प्रावधान अब जमीनी हो गए।

निश्चित रूप से इस सफलता के लिए राष्ट्र निर्माण के कुशल शिल्पी उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के सेवा ,कार्य और समर्पण भाव विशेषतः अनुकरणीय और प्रशंसनीय हैं। आज जम्मू और कश्मीर नई उमंग, नई ऊर्जा का प्रतीक हो चला है। कश्मीर आज फिर से चिनार हो गया है ।

यह चिनार चिरजीवी रहे, इसके लिए यह आवश्यक है, और ध्यातव्य है की प्राचीन कश्मीरी ऐतिहासिक स्थलों का पुनरअनुसंधान, सांस्कृतिक समन्वय कार्यक्रम, अंतर्वैयक्तिक संबंधों आपसी संवाद के टूल्स के विकास जैसे मुद्दों को और अधिक प्रगतिशीलता से लिया जाए।
ताकि विकास और संपन्नता का रथ ऐतिहासिक गरिमा के साथ समन्वय के सांस्कृतिक पथ पर द्रुतगामी हो सके।

नोट- लेखक एक स्वतन्त्र चिंतक है I लेख में लेखक के अपने विचार व्यक्त किए गए हैं I 

 

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