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HEALTH NEWS : निपाह वायरस से निपटने की चुनौती

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PRESENTED BY ARVIND JAYTILAK 

यह चिंताजनक है कि केरल में जानलेवा निपाह वायरस एक बार फिर पांव पसारने लगा है। मलप्पुरम में 14 साल के एक लड़के की निपाह वायरस से मौत की पुष्टि हो चुकी है और कई लोगों में इसके लक्षण उभरने की सूचना है। याद होगा गत वर्ष पहले केरल के तटीय शहर कोझिकोड में निपाह वायरस (एनआइवी) के संक्रमण से तकरीबन डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई थी और कई दर्जन लोग संक्रमण की चपेट में आए थे। तब पुणे के नेशनल वर्गोलॉजी इंस्टीट्यूट स्पष्ट किया था कि केरल के कोझिकोड में संदिग्ध बीमारी से पीड़ित लोग निपाह वायरस से ही संक्रमित है। जो सबसे भयावह सच है वह यह कि इस निपाह वायरस का अभी तक कोई इलाज ढूंढा नहीं जा सका है। इसलिए इससे निपटने की तैयारी तेज होनी चाहिए।

चिंता की बात यह भी है कि निपाह वायरस से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से दूसरे लोगों को भी बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि लोगबाग इस वायरस से संक्रमित लोगों के निकट जाने से बचें। गत वर्ष देखा भी गया था कि सावधानी न बरतने का नतीजा रहा कि कोझिकोड में एक ही परिवार के तीन लोगों की जान गयी और साथ ही उनका इलाज कर रही नर्स भी मौत के मुंह में समा गयी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो निपाह वायरस (एनआइवी) तेजी से उभरता वायरस है, जो जानवरों और इंसानों में गंभीर बीमारी को जन्म देता है। इस वायरस से मनुष्य में कई बिना लक्षण वाले संक्रमण से लेकर एक्यूट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम और प्राणघातक इंसेफलाटिस तक हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि निपाह वायरस टेरोपस जीनस नाम के एक खास नस्ल से फैलता है और इस वायरस से लड़ने के लिए अभी तक कोई टीका यानी वैक्सीन विकसित नहीं किया गया है। इस वायरस से पीड़ित मरीजों को इंटेसिव सपोर्टिव केयर देकर ही इलाज किया जा सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मलाया के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ0 सीटी टैन के मुताबिक निपाह वायरस इबोला वायरस से भी अधिक खतरनाक वायरस है। क्योंकि यह सीधे मस्तिष्क पर अटैक करता है। इसकी जान लेने की क्षमता 75 प्रतिशत से 100 प्रतिशत के बीच है। एच1एन1 की तरह यह वायरस भी पर्यावरण के हिसाब से खुद को परिवर्तित कर लेता है।

गत वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चेताया गया था कि भारत और आस्टेªलिया में निपाह वायरस के फैलने का सबसे अधिक खतरा है। अब जब केरल में निपाह वायरस का मामला सामने आ चुका है तो आवश्यक हो जाता है कि इससे बचाव के लिए फौरी तौर पर कारगर उपाय ढूंढा जाए। इसलिए और भी कि भारत में डेंगू-चिकनगुनिया जैसी घातक बीमारी पहले से ही लोगों में खौफ पैदा की हुई है और इस बीमारी से निपटने के लिए अभी तक कारगर उपाय नहीं ढुंढा जा सका है। चूंकि निपाह वायरस से संक्रमित लोगों की मौत का प्रतिशत अन्य संक्रमित बीमारियों से कहीं ज्यादा होता है इसलिए आवश्यक है कि इससे निपटने के लिए सबसे पहले इसके लक्षणों पर गौर फरमाया जाए।

चिकित्सकों का कहना है कि निपाह वायरस के संक्रमण के कारण बुखार आने के साथ मांसपेशियों में तेजी से दर्द उभरता है और आंखों के सामने धुंधला नजर आता है। कई मामले में तो दिमाग में सूजन भी आ जाती है जो अंततः जानलेवा साबित होती है। इस वायरस का पहचान यह भी है कि संक्रमण के शुरुआती दौर में सांस लेने में कठिनाई होती है और सिर में दर्द लगातार बना रहता है। चूंकि इंसानों में निपाह वायरस एन्सेफलाइटिस से जुड़ा हुआ है, ऐसे में कुछ घंटों के अंदर ही लक्षण प्रभावी हो जाते हैं और मरीज के कोमा में जाने का खतरा उत्पन हो जाता है। 1998-99 में जब यह बीमारी फैली थी उस दरम्यान 40 प्रतिशत मरीज ऐसे थे जिन्हें गंभीर नर्वस बीमारी हुई और वे बच नहीं सके।

चिंता की बात यह है कि इंसानों और जानवरों को इस बीमारी को दूर करने के लिए अभी तक कोई पुख्ता इंजेक्शन नहीं बना है। इससे बचने के लिए सतर्कता ही मुख्य उपाय है। चिकित्सकों की मानें तो निपाह वायरस के संक्रमण से बचने के लिए लोगों को पेड़ से गिरे फल को खाने से बचना चाहिए। जानवरों के खाए जाने के निशान हों तो ऐसी सब्जियां न खरीदें। जहां चमगादड़ अधिक हों वहां खजूर खाने से परहेज करें। संक्रमित रोगी और संक्रमित जानवरों के पास न जाएं। निपाह वायरस (एनआइवी) के इतिहास में जाएं तो सबसे पहले 1998 में मलेशिया के कम्पंग सुंगाई निपाह वायरस के बारे में जानकारी मिली। मलेशिया के जिस निपाह गांव में यह वायरस फैला उसके नाम पर ही इसे निपाह नाम दिया गया। उस वक्त चिकित्सकों का निष्कर्ष था कि इस बीमारी का वाहक सूअर है।

इस निष्कर्ष का आधार यह था कि कुल 265 लिखित मामलों में से 90 प्रतिशत ऐसे किसान थे जो सुअरों के संपर्क में रहते थे। ऐसे में मान लिया गया कि इस बीमारी के वाहक सूअर ही है। उस समय इस वायरस के संक्रमण से तकरीबन 105 लोगों की जान गयी थी। याद होगा गत वर्ष पहले मलेशिया में 600 से अधिक लोग संक्रमित हुए थे और तीन सैकड़ा से अधिक लोगों की मौत हुई थी। ध्यान रहे कि 1998 में मलेशिया में हुए वायरस इंफेक्शन से निपटने के लिए मलेशिया सरकार ने आर्मी की मदद लेकर देश भर के सुअरों को मार दिया था। इसके बाद ही संक्रमण के मामले में कमी आयी। तथ्य यह भी कि सुअर पालन करने की फर्म से तेजी से वायरस इंफेक्शन होने के कारण करीब एक दशक से ज्यादा समय इससे निपटने में लगा।

एक रिपोर्ट के मुताबिक इस वायरस का इंफेक्शन सबसे ज्यादा दिसंबर और मई में होता है। लेकिन यहां यह भी ध्यान रखना होगा मलेशिया के बाद जहां-जहां इस वायरस का फैलाव देखा गया, इस वायरस को लाने-ले जाने वाले कोई माध्यम नहीं थे। वर्ष 2004 में बांगलादेश में कुछ लोग इस वायरस की चपेट में आए थे। बताया गया कि इन लोगों ने खजूर के पेड़ से निकलने वाले तरल पदार्थ को चखा था और इस तरल तक वायरस को ले जाने वाली चमगादड़ थी, जिन्हें फ्रूट बैट कहा जाता है। चिकित्सकों का कहना है कि चमगादड़ एक प्राकृतिक वाहक है और इसकी लार एवं मल-मूत्र से इस वायरस का फैलाव होता है। यह संभव है कि केरल में भी निपाह वायरस का फैलाव का माध्यम चमगादड़ ही हो। पड़ोसी देश बांग्लादेश में हर वर्ष निपाह वायरस फैलता है और कई लोगों की जान जाती है। 2004 से अब तक दो सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।

भारत के संदर्भ में बात करें तो सबसे पहले 2001 में यह पहली बार यह पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी और 2007 में नदिया जिले में फैला। यह इलाका बांगलादेश से लगा हुआ है। उस वक्त पांच मामले दर्ज किए गए और देखा गया कि सभी पांचों की मौत हो गयी। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि केंद्र व राज्य सरकार निपाह वायरस से पीड़ित लोगों के इलाज की पुख्ता व्यवस्था करे। अच्छी बात है कि निपाह वायरस का मामला सामने आते ही केंद्र व केरल सरकार सतर्क हो गयी है और पीड़ित जनों की सुरक्षा में जुट गयी है। उचित होगा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय चिकित्सकों के एक उच्च स्तरीय दल को केरल में भेजे तथा साथ ही नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के निदेशक के नेतृत्व में एक मल्टी डिसिप्लीनरी टीम गठित करे।

राज्य सरकार को भी चाहिए कि वह हर जिले में चिकित्सकों की टीम तैयार कर निपाह वायरस से पीड़ित लोगों पर नजर रखे। इस वायरस से पीड़ित आमजन का भी उत्तरदायित्व है कि वे सतकर्ता बरतते हुए लोगों से मिलने-जुलने से बचें। उम्मीद है कि केंद्र व केरल सरकार इस जानलेवा निपाह वायरस से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारी तेज करेगी और पीड़ित लोगों को अपनी जिंदगी से हाथ नहीं धोना पड़ेगा।

 

 

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