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आग में खाक होती जिंदगी_____

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PRESENTED BY ARVIND JAYTILAK 

गुजरात राज्य के राजकोट शहर में टीआरपी गेम जोन में लगी आग में तकरीबन ढ़ाई दर्जन लोगों की जलकर मौत दिल को दहला देने वाली मर्मांतक घटना है। बताया जा रहा है कि टीआरपी गेम जोन नाम की इस जगह पर जनरेटर चलाने के लिए हजारों लीटर पेट्रोल-डीजल रखा हुआ था और फाइबर डोम से निकली लपटों ने कईयों की जिंदगी लील ली। आग की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गेम जोन का पूरा ढांचा ही जल कर खाक हो गया। राजकोट के डिप्टी म्यूनिसिपल कमिश्नर की मानें तो टीआरपी गेम जोन ने ‘फायर नो आॅंब्जेशन सर्टिफिकेट’ के लिए अप्लाई नहीं किया था। न ही उसने नगर निगम से किसी अन्य तरह की मंजूरी के लिए आवेदन किया था। सवाल लाजिमी है कि फिर टीआरपी गेम जोन का संचालन किसकी अनुमति से हो रहा था?

क्या स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत थी? इससे इंकार नहीं किया जा सकता। यह पर्याप्त नहीं कि सरकार एक्शन में है और जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दी है। यह भी पर्याप्त नहीं कि सरकार की तरफ से मृतकों के लिए मुआवजे का एलान कर अपने कर्तव्र्यों का इतिश्री समझ ली गई। सच तो यह है कि अगर समय रहते बिना ‘फायर नो आॅंब्जेशन सर्टिफिकेट’ के चल रहे टीआरपी गेम जोन के खिलाफ सख्त कार्रवाई हुई होती तो लोगों की जिंदगी खाक नहीं होती। सवाल लाजिमी है कि क्या इस हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलााफ सख्त कार्रवाई होगी? इस बात की क्या गारंटी है कि अब इस तरह की हृदयविदारक घटनाएं नहीं होगी? अकसर देखा जाता है कि जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं राज्य प्रशासन हरकत में आ जाता है। लेकिन कुछ दिनों बाद ही इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति होने लगती है।

इसका सीधा तात्पर्य यह हुआ कि गैर-कानूनी ढंग से काम करने वाले लोगों के मन में कानून और सजा का भय नहीं हैं। गौर करें तो इस समय देश के कई हिस्सों में आए दिन आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं। इन घटनाओं में एक बात समान रुप से देखने को मिल रही है कि कहीं भी आग से बचाव के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। याद होगा गत वर्ष पहले गुजरात राज्य के सूरत की तक्षशिला काॅम्पलेक्स में भीषण आग लगी थी जिसमें 23 लोगों की मौत हुई। वहां भी आग बुझाने का समुचित इंतजाम नहीं था। राजकोट के टीआरपी गेम जोन अग्निकांड में कई बच्चों की जान गई है। गर्मी की छुट्टी के कारण बच्चे वहां खेलने गए थे। लेकिन उनकी जिंदगी आग की लपटों की भेंट चढ़ गई।

याद होगा दिसंबर 1995 में हरियाणा के मंडी डबवाली में स्कूल के एक कार्यक्रम के दौरान पंडाल में आग लगने से तकरीबन 442 बच्चों की मौत हुई। वहां भी आग बुझाने का पुख्ता इंतजाम नहीं था। इसी तरह 6 जुलाई, 2004 को तमिलनाडु के कुंभकोणम जिले में लगी आग से 91 स्कूली बच्चों ने दम तोड़ा। सच तो यह है कि आग की लपटों से अब कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं ह।ै चाहे वह इमारत, अस्पताल, स्कूल, सिनेमाहाल हो अथवा सार्वजनिक स्थान ही क्यों न हो। कहीं भी आग से निपटने के समुचित बंदोबस्त नहीं है। अभी गत वर्ष ही देश की राजधानी दिल्ली के मुंडका इलाके में निर्मित तीन मंजिला व्यवसायिक इमारत में लगी भीषण आग में 27 लोगों की मौत हुई। 2019 में रानी झांसी रोड पर अनाज मंडी में लगी भीषण आग में 43 लोगों की जान गई।

बाहरी दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर पंाच में एक इमारत में अवैध रुप से चल रही पटाखे की फैक्टरी में भीषण आग में तकरीबन 17 लोगों की जान गई। याद होगा दिल्ली में ही किन्नरों के महासम्मेलन के दौरान पंडाल में लगी आग से 16 किन्नरों की जान जा चुकी है। 31 मई 1999 को दिल्ली के ही लालकुंआ स्थित हमदर्द दवाखाना में केमिकल से लगी आग में 16 लोगों को जान गई। याद होगा 13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा हाॅल में आग लगने से 59 लोगों की मौत हुई। मध्य मुंबई के लोअर परेल इलाके में निर्मित दो रेस्टोरेंट कम पब में अचानक भड़की आग में 14 लोगों की जान गई। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल काॅलेज (केजीएमयू) के ट्रामा सेंटर में शार्ट सर्किट से लगी आग में छः मरीजों की दर्दनाक मौत हुई।

यूपी के कानपुर में लिकेज सिंलेंडर से आग लगने से पांच लोगों की जान गई। गत वर्ष पहले केरल के कोल्लम में पुत्तिंगल देवी मंदिर में आतिशबाजी से लगी आग में एक सैकड़ा से अधिक लोगों की जान गई। गत वर्ष पहले उज्जैन जिले के बड़नगर में पटाखे की फैक्टरी में भीषण आग में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई। आंध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड यानी गेल की गैस पाइपलाइन में लगी आग से हुए विस्फोट में तकरीबन डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की जान गई। यही नहीं एशिया के सबसे बड़े आयुध भंडारों में शुमार महाराष्ट्र के पुलगांव स्थित आयुध भंडार में भी आग लगी थी जिसमें दो सैन्य अधिकारियों समेत 18 लोगों की दर्दनाक मौत हुई। गौर करें तो सन् 2000 से 2018 के बीच आधा दर्जन से अधिक आयुध भंडार आग की लपटों की भेंट चढ़ चुके हैं। इसमें हजारों करोड़ रुपए की सैन्य संपत्ति नष्ट हुई है।

गत वर्ष पहले तमिलनाडु के शिवकाशी के मुदालीपट्टी में पटाखे की एक फैक्टरी में आग लगने से 54 लोगों की मौत हुई। 6 अगस्त, 2001 को तमिलनाडु के इरावदी जिले में स्थित एक निजी संरक्षण गृह में आग लगने से मानसिक रुप से कमजोर 28 लोग जलकर मर गए। तमिलनाडु के ही श्रीरंगम विवाह समारोह में आग लगने से 50 लोग काल-कवलित हुए। 7 दिसंबर 2004 को दिल्ली के भोलानाथ नगर में होजरी फैक्ट्री में आग लगने से एक दर्जन लोग मारे गए। 15 सितंबर, 2005 को बिहार में अवैध रुप से संचालित पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 35 लोग जलकर खाक हुए। 10 अप्रैल, 2006 को मेरठ के विक्टोरिया पार्क में लगे मेले में भीषण आग में 60 लोगों की जलकर मौत हुई।

23 मार्च, 2010 को कोलकाता के स्टीफन कोर्ट बिल्डिंग में लगी आग में 46 लोग और 20 नवंबर 2011 को दिल्ली के नंदनगरी में आयोजित एक समारोह में 14 लोग मारे गए। 27 जुलाई, 2005 को मुंबई के पास बांबे हाई में ओएनजीसी प्लेटफार्म पर भयंकर आग में 12 लोगों को जान गंवानी पड़ी। इसी तरह जून 2012 में महाराष्ट्र सरकार का मंत्रालय अग्नि की भेंट चढ़ गया। गत वर्ष पहले कोलकाता के नामी-गिरामी निजी अस्पताल एडवांस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में लगी आग में 90 लोगों की जान गई। इस हृदय विदारक घटना के बाद केंद्र व राज्य सरकारों ने आपदा प्रबंधन को चुस्त-दुरुस्त करने का वादा किया। सभी स्कूलों और कोचिंग संस्थानों को फरमान जारी किया गया कि वे अपने यहां अग्निशमन यंत्रों की व्यवस्था सुनिश्चत करें।

दिखावे के तौर पर स्कूलों और कोचिंग संस्थानों ने उपकरणों की व्यवस्था तो कर ली लेकिन यह सिर्फ हाथी दांत ही साबित हो रहा है। नतीजतन आग की घटनाओं में कमी के बजाए लगातार वृद्धि हो रही है। गौर करें तो आग लगने के दो प्रमुख कारण हैं-एक, जिन स्थानों पर अग्निशमन यंत्रों की व्यवस्था की गयी है वहां उसका इस्तेमाल कैसे हो उसकी जानकारी कर्मियों को नहीं है। या यों कहें कि उन्हें समुचित ट्रेनिंग नहीं दी गयी है। दूसरा कारण सरकारी तंत्र के भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा पैसे लेकर अवैध तरीके से निर्मित इमारतों को एनओसी जारी कर दिया जा रहा है। नतीजा सामने है। जब भी इस तरह के हादसे होते हैं कहा जाता है कि तंत्र और सरकारें सबक लेंगी। आपदा प्रबंधन को चुस्त-दुरुस्त किया जाएगा। लेकिन फिर वहीं ढाक के तीन पात। शायद सरकारें अग्निजनित हादसों को आपदा मानने को तैयार ही नहीं है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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