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विनती सुनने में देरी क्यों ?

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PRESENTED BY PRADEEP CHHAJER

BORAVAR,RAJSTHAN ।

ये सब हमारे अविवेक का परिणाम है काफी हद तक और न जाने कितनी ही घटनाएं अनगिनत ऐसी रोजमर्रा की जिंदगी में घटती है,लेकिन ये सब नासमझी का परिणाम भी होती है क्योंकि जीवन में समझपूर्वक,जागरूकतापूर्वक कुछ कदम उठाए जाएं तो काफी हद तक अनेकान्तवाद को अपनाकर इनसे बचने में सफल भी हो सकते हैं।

धैर्य की कमी,अज्ञानता आदि कई कारण निमित्त बनते हैं इन सब के पीछे। हम समझकर जागरूकतापूर्वक काफी हद तक अपने प्रबल पुरुषार्थ के द्वारा सहनशीलता से उदय में आये कर्म को स्वयंकृत कर्म समझकर सहन कर सकते हैं,जिससे कर्मों से मुक्त हो सकते हैं,इसके सबसे बड़े उदाहरण एवं आदर्श मुनि गजसुकुमाल जी है।

जिन्होंने अल्पवय में ही दीक्षा के प्रथम दिन अपने ससुर द्वारा माथे पर गीले चाम की पाल को बांधे जाने पर अपना स्वयंकृत कर्म का उदय समझकर समभाव से सहन कर मुक्तिश्री का वरण किया और भी कई उदाहरण ऐसे प्राप्त होते हैं हमें। कर्म की गति प्रबल पुरुषार्थ के द्वारा टाली जा सकती है काफी हद तक साधनामय पध्दति से सम्यक्दर्शन के द्वारा|

कर्मों का चित्र सचमुच ही विचित्र है जो कितने कितने जन्मों के साथ हमारे से जुड़ा हुआ हैं ।इस वर्तमान जीवन का ही सिर्फ नाता है यह गलत सोच कर आदमी बुद्धिमान होकर भी जीवन के इस सच को सही से नही समझ पाता है । जीवन के इस लंबे सफर में न धन साथ में जाता है न परिवार फिर भी क्यों व्यर्थ ढोने से कहां चूकते हैं हम यह भार ?

इसलिए हमें स्थाई शांति व स्थाई सुख के पथ को ही अपनाना है और उसी दिशा में अपने चरणों को सदा गतिमान बनाना है । क्योंकि कर्म करना हमारे हाथ है लेकिन कर्मों का उदय सही निश्चित समय पर ही होता है और उस समय बिना धैर्य रखे समता सम्भाव से कर्म काटने की बजाय अज्ञानवश हम यह बोल देते है कि भगवान विनती सुनने में देरी क्यों करता है ।

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