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महानता के लक्षण______

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PRESENTED BY 

PRADEEP CHHAJER

(BORAVAR, RAJSTHAN)

 

हम विशाल भवनों , साधनों , शब्दों के उच्च उच्चारण के आधार पर किसी की महत्ता को न आंके बल्कि उसके जीवन में सही सदाचरण से उसको आंके। और दूसरों को कुछ उपदेश देने से पहले स्वयं पर उसे लागू करें।गुरुदेव तुलसी के स्मरणीय शब्द निज पर शासन फिर अनुशासन हम अपने जीवन में छोटी छोटी लेकिन बहुकीमती सीखों को जीवन के आचरण में लाकर अपना आत्मोद्धार करें ।

जो इनकी कीमत को पहचानकर जीवन में सही से अपनाकर ,अपने जीवन में सुधार करके महानता की ओर बढ़ता हैं यानी जीवन को सार्थक करता है वह महान होता हैं । सदियों पहले महावीर जन्मे वे जनम से महावीर नही थे। उन्होंने जीवन भर अनगिनत संघर्षों को झेला,कष्टों को सहा, दुख से सुख खोजा और गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुँचे वे हमारे लिए आदर्श की ऊँची मीनार बन गए।

उन्होंने समझ दी की महानता कभी भौतिक पदार्थों,सुख-सुविधाओं,संकीर्ण सोच एवं स्वार्थी मनोवृत्ति से नही प्राप्त की जा सकती उसके लिए सच्चाई को बटोरना होता है । नैतिकता के पथ पर चलना होता हैं और अहिंसा की जीवन शैली अपनानी होती हैं। श्रेष्ठता का आधार कोई ऊँचे आसन पर बैठना नही होता हैं ।

श्रेष्ठता का सही आधार हमारी ऊँची सोच पर निर्भर करता है।हम कितनी ही आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर ले किंतु जब तक सोच ऊँची एवं व्यावहारिक अनुभव अद्धभूत नही रहेगा हम में कोई ना कोई कमी रहती रहेगी।सुनी हुई बात हैं पर आज भी आचरण करने योग्य स्वर्ग पाना है या सच्चा सुख । सोच को अपनी ले जाओ शिखर तक की उसके आगे सितारे भी झुक जाए ।न बनाओ अपने सफ़र को किसी कश्ती का मोहताज ।

चलो इस शान से की तूफ़ान भी झुक जाए ।फिर देखो कमाल इसलिए ऊँची रखे सोच । सारांश में हम कह सकते हैं कि आर्थिक रूप से संपन्न दीखने से ही कोई महान नहीं हो जाता हैं ।महान कर्मों से आदमी महान बनता है ।

आज की दो बात

सभी का देखने व सोचने का तरीका अलग – अलग होता है। यदि सही सकारात्मक सोच होगी तो उसे कोई न कोई अच्छाई नजर आएगी और विपरीत नकारात्मक सोच होगी तो बुराईयां ही बुराईयां नजर आएगी ।हमारा नजरिया सुख और खुशी तलाशने वाला होगा तो हमें वही मिलेगा और हमारा नजरिया दुख वाला होगा तो दुख कभी भी पीछा नहीं छोड़ेगा । मन चंचल है उस पर लगाम कसना जरूरी है । मनुष्य जीवन एक जटिल पहेली हैं ।

सुख और दुख की जोडी उसकी सहेली हैं । सुख और दुख का अनुभव मन की कङी कराती है । मन पर यदि विवेक की झङी लग जाए तो दृष्टिकोण भी सकरात्मक और सही बन जाएगा ।
कौन है प्रसन्न और कौन है उदास । यदि कोई दैनिक चर्या दोनो के जीवन मे एक समान घटित हो रही है तो उनकी दृष्टिकोण की भिन्नता प्रतिक्रिया ही हैं क्योंकि प्रसन्न मन वाला जीवन को हँसकर जीता हैं । सही मायने में वह धार्मिक कहलाता हैं ।

जो गम में भी खुशी ढूँढता हैं और असफलता में भी अपनी सफलता खोजता हैं । ये सब तभी संभव हो सकता हैं जो जीवन में सही दृष्टिकोण बनाए रखता हैं । जब तक मनुष्य अपनी पहचान स्थूल शरीर रूप से करता है और शरीर को ही कर्ता समझता है तब वह मिथ्या अहंकार से ग्रसित रहता है और जब वह अपनी पहचान जीव रूप से करने लगता है तब उसका मिथ्या अहंकार मिटने लगता है यहीं से उसके अज्ञान का आवरण धीरे धीरे हटने लगता है और ज्ञान प्रकट होने लगता है।

जीव मिथ्या अहंकार के कारण ही स्थूल शरीर धारण करके बार-बार जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता रहता है और जब जीव का मिथ्या अहंकार मिट जाता है तब वह मोक्ष के मार्ग पर चलने लगता है और मुक्ति संभव होती है । दोनों ही बातों का सार यही है कि हमें सदा हमारी सोच सही रखनी चाहिए और व्यवहारिक व सकारात्मक बने रहना चाहिये। क्योंकि आदमी प्रायः दुःखी जब होता है जब वह सोच ही अव्यवहारिक व नकारात्मक रखता है ।

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