खाद्य संयम दिवस
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PRADEEP CHHAJEN
BORAVAN,RAJSTHAN I
साधना के लिये शक्ति चाहिए और शक्ति के लिए शरीर चाहिए। शरीर को धारण करने के लिए खाना जरुरी है । इसलिए जीवन का , शरीर का और आहार का गहरा संबंध है ।
साधना ज़रूरी है । साधना के लिए शरीर जरुरी है । शरीर को
टिकाए रखने के लिए आहार जरुरी है । भोजन का एक पहलू यह भी है | उस पर हमें ध्यान देना चाहिये ।
हमारे लिए खाना जितना महत्वपूर्ण है । नहीं खाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है । खाने का जितना मूल्य है नहीं खाने का भी उससे कम मूल्य नहीं है । जब तक हम नहीं खाने पर विचार नहीं करते हैं तब तक भोजन का विषय पूर्ण दृष्टि से चर्चित नहीं होता हैं । स्वास्थ्य के लिए यदि सन्तुलित भोजन जरुरी है तो उसके लिए भोजन को छोड़ना भी जरुरी है ।
भोजन को छोड़ने के तीन प्रकार भगवान महावीर ने बतलाए हैं – अनशन , ऊनोदरी , रस – परित्याग । ये आहार के अनिवार्य सिद्धांत है , इसलिए ये आहार से भिन्न नहीं है । अनाहार को छोड़कर आहार को देखना वास्तव में आहार के प्रति भ्रांत होना है और अपने स्वास्थ्य के प्रति भी अन्याय करना है । जो लोग केवल भोजन का ही महत्व समझते है , उसे छोड़ने का महत्व नहीं समझते , वे न केवल मोटापे की बीमारी से ग्रस्त होते जा रहे है , किंतु अन्य बीमारियाँ भी उन्हें आक्रांत कर रही है ।
भगवान ने कहा की – कुछ ऐसा अभ्यास करो , जिससे यह अनुभव हो कि खाने पर भी पूरा नहीं खाया । ऊनोदरी का सिद्धांत कम खाने का सिद्धांत है । यही परिमित भोजन है । स्वयं द्वारा स्वयं की चिकित्सा है । पर्युषण पर्व का आज प्रथम दिन हैं ।
हम रखें आज ही नहीं पूरे पर्युषण काल में खान-पान का संयम।
साथ में इसे हम जीवन पर्यन्त अपनाने का प्रयत्न करें ।