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आधुनिकता के दौर में लुप्त हो रहे संयुक्त परिवार

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आधुनिकीकरण के इस युग में मैंने माना की मेरे देश ने बहुत तरक्की की है और अनेकों कीर्तिमान हासिल किये हैं  I लेकिन हम अपने रिश्तों को कहीं ना कहीं खोते जा रहे हैं | इस भागदौड़ भरी जिंदगी में सुकून के दो पल भी निकलना बहुत मुश्किल हो चला है| जिंदगी मानो मशीन से भी ज्यादा तेज गति से दौड़ रही है जोकि कहीं ना कहीं आज के समय की जरुरत भी है| या यूँ कहिये कि मशीनी युग में इंसान भी मशीन हो गया है  I जिसका सीधा असर रिश्तों पर पड़ रहा है और संयुक्त परिवार बिखरते से या लुप्त होते नजर आ रहे हैं या एकाकी परिवारों में परिवर्तित होते जा रहे हैं | जिसकी व्याख्या मैं आगे करने जा रही हूँ |
इस बदलते युग में शिक्षा से क्रांति आई है, हमारी बेटियां अब पढ़ लिखने लगी हैं और अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हैं जोकि बहुत ही प्रशंसनीय कदम है और हमारी बेटियों ने हरेक क्षेत्र में अपना परचम लहराया है I फिर चाहे वो विज्ञान हो, शिक्षा हो, वकालत हो या फिर स्वयं का व्यवसाय हो | अब चूँकि बेटियां भी घर से बाहर जाकर काम करने लगी हैं तो घर के कामों में उतना ध्यान नहीं दे पाती | कुछ समझदार परिवार तो समझ जाते हैं और आपस सामंजस्य बैठा लेते है I लेकिन कुछ परिवार समझ नही पाते जिसकी वजह से टकराव उत्पन्न होते हैं और अलग रहना ही एक विकल्प बचता है | दरअसल इसमें किसी को दोष देना भी सही नहीं होगा अपनी अपनी जगह सभी सही हैं |
पढ़ाई करने के बाद बच्चों को नौकरी की तलाश में अपने शहर से बाहर जाना पढ़ता है और जहाँ नौकरी रहती है वहीं बस जाते हैं और माता-पिता से अलग हो जाते हैं I माता-पिता की य़ह परेशानी रहती है कि नयी जगह नए परिवेश में कैसे समन्वय बैठाएं या फिर ऐसा होता है कि माता-पिता भी नौकरी कर रहे होते हैं तो दूसरी जगह पर बसना सम्भव नहीं हो पाता । सयुंक्त परिवारों के लुप्त होने का एक कारण यह भी है |

अगर बहू नौकरी नहीं भी कर रही होती तब भी सास और बहू में तालमेल नहीं बन पाता और जो पति या बेटा है वह दो पाटों के बीच पिसकर रह जाता है I माँ और पत्नी दोनों को समझा नहीं पाता क्योंकि उसकी माँ अपने हिसाब से बहू को चलाना चाहती है और उसकी पत्नी जोकि उस घर की बहू है, पढ़ी लिखी समझदार है तो वह अपने हिसाब से चलना चाहती है जिससे आपस में
टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है और साथ रहना मुश्किल हो जाता है | सयुंक्त परिवारों के लुप्त होने का कारण यह भी है कि सबको अपनी आजादी चाहिए फिर चाहे वो माता-पिता हों या फिर बच्चे हों, किसी को किसी की दखल अंदाजी पसंद नहीं, सब अपने हिसाब से जीवन जीना चाहते हैं । जब सब अलग अलग रहते हैं तो आपस में वो जुड़ाव और प्यार नहीं रह पाता जो पहले कभी संयुक्त परिवारों में देखने को मिलता था |

— सुमन मोहिनी
नई दिल्ली।
नोट : उपरोक्त बातें सभी पर लागू नहीं होती हैं,लेखिका के अपने विचार है ।

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