अधर में तापी गैस पाइपलाइन परियोजना……
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1988 तालिबान प्रतिबंध समिति से जुड़ी निगरानी टीम की 14वीं रिपोर्ट का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि भारत से जुड़ी तापी गैस पाइपलाइन पर अफगानिस्तान का हक्कानी गुट नियंत्रण करना चाहता है। उल्लेखनीय है कि तापी (ज्।च्प्) प्राकृतिक गैस से जुड़ी एक परियोजना है जिसको मूर्त रुप देने पर चर्चा 90 के दशक में प्रारंभ हुआ।
तुर्कमेनिस्तान ने अपने गैस भंडार से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत को गैस सप्लाई करने का प्रस्ताव रखा। यह पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान के गल्किनिश से निकलकर अफगानिस्तान के कंधार-हेरात और पाकिस्तान के क्वेटा-मुल्तान होते हुए भारत के पंजाब राज्य के फजिल्का तक प्रस्तावित है।
तापी (ज्।च्प्) पाइपलाइन का नाम तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के पहले अक्षर को जोड़कर बनाया गया। 1814 किमी लंबी प्राकृतिक गैस से जुड़ी इस परियोजना पर 2010 में इंटर-गवर्नमेंटल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए। मई, 2012 में बायलेटर सेल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए। 2013 में चारों देशों की सरकारी गैस कंपनी को तापी पाइपलाइन कंपनी का हिस्सेदार बनाया गया।
दिसंबर, 2015 में तुर्कमेनिस्तान में इस परियोना पर काम शुरु हुआ और 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया। एशियन विकास बैंक के द्वारा प्रदान की गयी आर्थिक सहायता के माध्यम से इस पाइपलाइन को आकार दिया जा रहा है।
लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और अफगानिस्तान में तालिबान के शासन स्थापित होने के बाद से ही यह परियोजना खटाई में पड़ गयी है। गौर करें तो आतंकवादी गतिविधियां इस पाइपलाइन परियोजना के विकास-विस्तार में सबसे बड़ी बाधा है। किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त है। वह आतंकी समूहों को भारत के खिलाफ उकसाता व मदद देता है।
सामरिक विशेषज्ञों की मानें तो जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध खराब होंगे पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठन तापी पाइपलाइन को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा कर सकते हैं। ऐसे में भारत के लिए असहज स्थिति होगी। ऐसी स्थिति न बनने पाए इसके लिए आवश्यक है कि पाइपलाइन से जुड़े चारो देश आपसी समन्वय को मजबूत करें। यहां प्रस्ताववित पाइपलाइन के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच टकराव ही चुनौती और बाधा नहीं है।
पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बीच तनाव भी इस प्रस्तावित परियोजना के लिए कम घातक नहीं है। इन दोनों देशों के बीच टकराव को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। ध्यान देना होगा कि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान का शासन स्थापित होने के बाद से ही पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियां तेज हुई हैं। खासकर खैबर पख्तुनवां और बलूचिस्तान क्षेत्र में आतंकी गतिविधियां अचानक बढ़ी हैं।
पाकिस्तान की मानें तो इस हालात के लिए अफगानिस्तान में मौजूद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के आतंकी जिम्मेदार हैं। जानना आवश्यक है कि 9ध्11 हमलों के बाद 2001 में अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण के बाद 2007 में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) अस्तित्व में आया। यह समूह अमेरिका के आतंकवाद पर युद्ध का समर्थन करने पर पाकिस्तान के खिलाफ है। इस समूह ने अफगानिस्तान में युद्ध से भाग रहे अफगान तालिबान और अलकायदा के सदस्यों को शरण देना शुरु किया। यह आतंकी संगठन तालिबान के तत्कालीन नेता मुल्ला मोहम्मद उमर द्वारा स्थापित किया गया था। इस संगइन का उद्देश्य पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करना है। ठीक वैसे ही जैसे अफगान तालिबान अफगानिस्तान में लागू कर रखा है।
ध्यान देना होगा कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) यह दर्शन देे रहा है कि अफगान तालिबान विद्रोह का न सिर्फ नियंता है बल्कि उनके आंदोलन का सूत्रधार भी है। याद होगा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के प्रमुख नूर वली महसूद सार्वजनिक रुप से अफगान तालिबान नेता मौलवी हिबतुल्ल अखंुदजादा के प्रति निष्ठा भाव जाहिर कर चुके हैं। उनकी मानें तो तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पाकिस्तान में तालिबान की एक शाखा है।
दूसरी ओर अफगानिस्तान की तालिबान सरकार अपने फायदे के लिए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का बचाव कर रही है। यहीं वजह है कि पाकिस्तान की लाख नाराजगी के बावजूद भी अफगानिस्तान सरकार अपने यहां मौजूद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों के खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। इस स्थिति ने अफगानिस्तान-पाकिस्तान के टकराव को नए मोड़ पर ला दिया है। चूंकि तापी गैसपाइपलाइन परियोजना इन दोनों मुल्कों से होकर गुजरनी है ऐसे में इस टकराव का असर इस परियोजना पर पड़ सकता है। बेहतर होगा कि दोनों देश अपने अंदरुनी टकराव का असर इस प्रस्तावित परियोजना पर न पड़ने दें।
इस परियोजना के लिए तीसरी बड़ी चुनौती तालिबान सरकार में शामिल हक्कानी नेता भी हैं। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अफगानिस्तान में तालिबान की ओर से नियुक्त गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी बड़ी आर्थिक परियोजनाओं को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं। यह वहीं सिराजुद्दीन हक्कानी है जिसका नाम वैश्विक स्तर के आतंकवादियों की सूची में है।
अमेरिका ने उसके बारे में सूचना देने पर 50 लाख डाॅलर का इनाम घोषित कर रखा था। अमेरिका के संघीय जांच ब्यूरो की मानें तो 2008 में अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या के प्रयास की साजिश में भी यह कथित रुप से शामिल था। ऐसे में अफगानिस्तान की आर्थिक परियोजनाओं पर इसके नियंत्रण के खतरनाक मंसूबे को आसानी से समझा जा सकता है।
बहरहाल अफगानिस्तान के कार्यवाहक प्रथम उप प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर को यह स्वीकार्य नहीं है। दोनों के बीच आर्थिक परियोजनाओं को लेकर गहरे मतभेद हैं। याद होगा अफगानिस्तान में सरकार गठन से पहले ही हक्कानी नेटवर्क के नेता अनस हक्कानी और खलील हक्कानी का तालिबान के नेता मुल्ला बरादर और मुल्ला याकूब के साथ जमकर झड़प हुई थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट की मानें तो दोनों समूहों के टकराव से अफगानिस्तान और उसके आसपास के क्षेत्र में आतंकवाद का खतरा बना हुआ है।
उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में तालिबान, अलकायदा और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के बीच मजबूत गठजोड़ बना हुआ है। तापी पाइपलाइन परियोजना को लेकर तालिबान की दिलचस्पी इसलिए भी है कि इस पाइपलाइन परियोजना से होने वाली कमाई अफगानिस्तान के कुल बजट का तकरीबन 85 प्रतिशत हो सकता है। इसीलिए तालिबान ने तुर्कमेरिस्तान को भरोसा दिया है कि वे परियोजना को पूरी सुरक्षा प्रदान करेंगे।
गौरतलब है कि इसी जून माह में पाइपलाइन पर तुर्कमेनिस्तान और तालिबान के बीच सझौता होना है। प्रस्तावित रोडमैप के मुताबिक इस पाइपलाइन की लंबाई तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान तक 214 किमी और अफगानिस्तान में 774 किमी होगी। इसी तरह पाकिस्तान से भारत तक इस पाइपलाइन की लंबाई 826 किमी होगी। भारत के पंजाब राज्य तक इसकी कुल लंबाई तकरीबन 1700 किमी होगी। इस परियोजना पर तकरीबन 10 अरब डाॅलर खर्च होना है।
गौरतलब है कि इस प्रोजेक्ट के लिए नवंबर 2014 में तापी पाइपलाइन कंपनी बनायी गयी जिसमें 85 प्रतिशत हिस्सेदारी तुर्कमेनिस्तान की सरकारी कंपनी तुर्कमेन गैस की है। इस कंपनी में भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की हिस्सेदारी पांच-पांच प्रतिशत है। अफगानिस्तान की अफगान गैस, पाकिस्तान की इंटरस्टेट गैस सर्विस और भारत की गैस अथाॅरिटी आफ इंडिया एवं इंडियन आॅयल इसमें हिस्सेदार है।
इस परियोजना के तहत 33 अरब क्यूबिक मीटर गैस हर वर्ष ट्रांसपोर्ट होगी। इसमें पांच अरब क्यूबिक मीटर गैस अफगानिस्तान को मिलेगी जबकि भारत और पाकिस्तान को 14-14 अरब क्यूबिक मीटर गैस मिलेगी। इस परियोजना के मूर्त रुप लेने से भारत, पाकिस्तान तथ अफगानिस्तान के तकरीबन 1.5 अरब लोगो को फायदा पहुंचेगा।
परियोजना से लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। तुर्कमेनिस्तान द्वारा भारत, पाकिस्तान और अफगानस्तिान को गैस बेचने से उसके राजस्व में भारी इजाफा होगा वहीं अफगानिस्तान-पाकिस्तान को हर वर्ष ट्रांजिट शुल्क हासिल होगा। इस परियोजना के आकार लेने से भारत का चीन और रुस पर से गैस की निर्भरता कम हो जाएगी। यह परियोजना इस मायने में ज्यादा महत्वपूर्ण है कि भारत को गैस आधारित अपने इंडस्ट्रियल और कमर्शियल एक्टिविटी को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
भारत के बिजली संयंत्रों को पर्याप्त मात्रा में गैस मिल सकेगी। माना जा रहा है कि इस परियोजना के आकार लेने से भारत-पाकिस्तान समेत संपूर्ण दक्षिण एशिया में उर्जा की कमी को पूरा की जा सकेगी जिससे आर्थिक विकास को नई गति मिलेगी।
अरविंद जयतिलक
लेखक/स्तंभकार