पुस्तक दिवस पर विशेष…किताबों का संसार
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आज मेरे पुस्तकालय में कुछ हलचल थी
आश्चर्य यह था कि यह मेरी बदौलत न थी।
मैं बाहर निर्जीव सी खड़ी उन निर्जीवों को
सजीव होते देख रही थी।
वे आपस में बातें कर रही थी।
यार आज तो पूरी दुनिया में हमें सम्भाला जायेगा।
धूल की मोटी पर्त को हम पर से उतारा जायेगा।
आज के दिन तो कई कार्यक्रमों और समारोहों में
हमारे महत्तव पर गहन प्रकाश डाला जायेगा।
मैं बाहर खड़ी उनकी चपलता देखकर सोच रही थी कि
खुश होऊँ या उदास
या फिर रहूँ बिंदाश कि मेरा क्या जा रहा है।
आप सब भी सोचना आज पुस्तक दिवस के दिन
क्या हम होते वो, जो हैं आज इनके बिन
ऑनलाइन के युग में इनके महत्व को जिंदा रखना हमारा काम है
इन्हीं की बदौलत दोस्तों जग में इतिहास का नाम है।
बबिता कोमल जैन (लेखिका/साहित्यकार)
नलवाडी,गुवाहाटी (असम)
पुस्तक दिवस की ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ