रवी में मिलुवा/मिश्रित खेती फायदे का सौदा
1 min readअर्जुन सिंह भदौरिया —
रवी की फसलों में मिलुवा/या मिश्रित खेती हमेशा से फायदे का सौदा रहा है।इस पद्धति से खेती करने से जहां दो फसलों की एक साथ पैदावार होती है वहीं प्राकृतिक रूप से खेती की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है।आज के समय में भी यह खेती बहुत लाभकारी है।कृषि विभाग जहां इस पद्धति पर जोर दे रहा है वहीं जीरो बजट खेती में यह पद्धति सबसे कारगर है।
भारतीय कृषि की परम्परागत खेती में सुमार है मिश्रित खेती
भारतीय कृषि के इतिहास पर गौर करें तो कृषि की शुरवात ही मिलुवा/मिश्रित खेती से हुई है शुरुवाती दौर में इस पद्धति से सिर्फ मोटे अनाजों की खेती होती थी समय के साथ हुए बदलाव में बागवानी के साथ सहफसली खेती,सब्जियों में सह फसली खेती का चलन भी बढ़ा है।सहफसली दलहनी तिलहनी फसलों के बारे में कृषि वैज्ञानिक डा राम प्रताप मौर्य ने कहा कि दो दाली फसलों की जड़ों में नाइट्रोजन की गांठें प्राकृतिक रूप से बनती हैं जो खेतों में उर्वरा शक्ति में वृद्धि करती है।
दलहनी तिलहनी फसलों का गठजोड़ रहा है मिलुवा खेती
पुराने समय से ही मिश्रित खेती में दलहनी के साथ तिलहनी का गठजोड़ रहा है।चने के साथ कई तरह की तिलहनी फसलों की खेती होती रही है।जिनमें अलसी,गोहवा,कुसुम(बरै)सरसों की खेती बहुत लाभकारी होती थी। मसूढ़ के साथ भी सभी प्रकार की तिलहनी फसलें बोई जाती रही हैं। गन्ने के साथ भी सबसे ज्यादा सह फसल लाभकारी है गन्ने की सहफसली खेती के बारे में कहा जाता है कि आम के आम गुठलियों के दाम।आमतौर पर रवी में गन्ने के साथ सरसो,आलू,लहसुन, मूली,सोया,मेथी,पालक आदि फसल लेकर गन्ने की लागत कम की जा सकती है बसंत कालीन गन्ने की खेती के साथ धनिया, सूरज मुखी,उरद,मूंग की खेती कर गन्ने की लागत में अतिरिक्त लाभ पाया जा सकता है। आवारा पशुओं और नीलगायों के आतंक ने इन फसलों पर पूरी तरह ब्रेक लगाया है।
आंतरिक फसलें सहफसली खेती में सर्वाधिक लाभकारी
बेलवाली व्यावसायिक व सब्जी की खेती के साथ छाया में होने वाली फसलें ज्यादा लाभकारी साबित होती हैं।जिनमें पान की खेती करने वाले किसान जहां पान,कुंदुरू, परवर, तोरी ,लौकी,लोबिया इत्यादि सीजन के अनुसार की जाती है वहीं छाया में नीचे लहसुन,हल्दी, अरूई,अदरक, सूरन की खेती की जाती है जो अत्यधिक लाभ कारी है।सहफसली खेती के विषय पर जब कृषि वैज्ञानिक डा पवन वर्मा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि सहफसली खेती में पैदावार अधिक मिलने के साथ रोगों से फसलों का बचाव भी होता है।
आवारा पशुओं व नीलगाय ने लगाया मिश्रित/सहफसली खेती पर ब्रेक
किसानों की माने तो आवारा पशुओं और नीलगाय के आतंक ने किसानों की इन अतिरिक्त आय वाली फसलों पर ब्रेक लगाया है।और लगातार नुकसान के चलते किसानों ने इन फसलों की तरफ से मुंह मोड़ धान गेहूं के फसल चक्र को अपनाया है।
क्या कहते हैं किसान ?
बैसन पुरवा निवासी राम नरेश सिंह ने सहफसली खेती बारे में बताया कि हम लोगो के बचपन में हम बाप दादा मिलुवा कोदो,अरहर के साथ पटुवा, जॉन्हरी (ज्वार)की खेती खरीफ में सहफसली खेती करते थे।और रवी की फसलें भी मोटे अनाजों के साथ खेती करते थे।पूरे पंचम निवासी रामहेत यादव का कहना है कि हम लोगों के बचपन में धान गेहूं का फसल चक्र नहीं होता था मोटे अनाजों की सहफसली खेती होती थी।जैतपुर निवासी अवधेश चौरसिया बताते हैं कि पान की खेती के साथ हमेशा से सहफसली खेती होती रही है।
पूरे बैसन निवासी स्वामी दयाल तिवारी का कहना है कि सिर्फ नीलगाय पर सरकार नियंत्रण कर ले फिर से सहफसली खेती होने लगेगी और किसानों की आय में वृद्धि होगी।