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जीवन को स्वस्थ रखने की चुनौती

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आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है। यह दिवस इस मायने में महत्वपूर्ण है कि नित-नए खतरनाक बीमारियों की उत्पत्ति से जीवन को स्वस्थ रखने की चुनौती बढ़ गयी है। दुनिया भर के लोगों को जागरुक करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रत्येक वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक बिरादरी को संदेश देता है कि वह अपने नागरिकों को शारीरिक व मानसिक रुप से स्वस्थ रखे।

एक स्वस्थ व समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए नागरिकों का शारीरिक व मानसिक रुप से स्वस्थ होना आवश्यक है। इसलिए और भी कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। लेकिन चिंता की बात है कि चिकित्सकीय क्षेत्र में नित-नए आविष्कार और अनुसंधानों के बाद भी आज दुनिया की बड़ी आबादी किस्म-किस्म की बीमारियों से ग्रसित है। मानवता संकट में है। दुनिया की बड़ी आबादी शारीरिक व मानसिक रुप से अस्वस्थ है।

उदाहरण के लिए विश्व के तकरीबन 30 करोड़ से अधिक लोग अवसाद के शिकार हैं वहीं कैंसर की वजह से हर साल 76 लाख लोग दम तोड़ रहे हैं। एड्स की बात करें तो मौजूदा समय में लैटिन अमेरिका में 17 लाख, पूर्वी यूरोप एवं मध्य एशिया में 15 लाख, खाड़ी देश व उत्तर अफ्रीका में 2.8 लाख, पूर्वी, मध्य यूरोप व उत्तरी अमेरिका में 24 लाख, एशिया व प्रशांत क्षेत्र में 50 लाख, कैरेबियाई देश में 2.4 लाख तथा उप-सहारा क्षेत्र में 2.58 करोड़ रोगी हैं।

स्वास्थ्य के मोर्चे पर भारत की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक रिपोर्ट से उद्घाटित हो चुका है कि गंभीर बीमारियों विशेष रुप से असंक्रामक बीमारियों (हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर) की वजह से आने वाले वर्षों में भारत में मरीजों की तादाद बढ़ेगी। इस रिपोर्ट के मुताबिक सन 2012 से 2030 के बीच इन बीमारियों के इलाज पर तकरीबन 6.2 खरब डाॅलर यानी 41 लाख करोड़ रुपए खर्च करना होगा। इस रिपोर्ट में यह भी कहा जा चुका है कि इसके लिए शहरीकरण और काम तथा जीवन शैली की स्थितियां ही जिम्मेदार हैं।

आंकड़ों पर गौर करें तो देश में सालाना होने वाली कुल मौतों में से 6 प्रतिशत लोगों की मौत कैंसर से होती है। यह दुनिया भर में कैंसर से होने वाली कुल मौतों का 8 प्रतिशत है। कैंसर की वजह से देश में हर रोज 1300 मौतें होती हैं। कैंसर की तरह मधुमेह भी भारत के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। भारत में 6 करोड़ से अधिक लोग मधुमेह से पीडित हैं। हर वर्ष तकरीबन 15 लाख लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं।

इसी तरह भारत की आधी से अधिक आबादी श्वास संबंधी रोगों और फेफड़ों से जुड़ी शिकायतों से ग्रस्त है। प्रतिदिन तकरीबन साढ़े तीन करोड़ लोग डाॅक्टरों के पास स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के निदान के लिए जाते हैं। इस तरह भारत विश्व की सर्वाधिक बीमारियों का बोझ उठाने वाले देशों में शुमार हो चुका है। आंकड़ों के मुताबिक विश्व की कुल 7.3 अरब की जनसंख्या के मुकाबले भारत की 1.2 अरब की आबादी में सालाना विश्व भर में होने वाली मौतों का 18 प्रतिशत मौतें भारत में होती है। विश्व में असंक्रामक रोगों से मरने वाले लोगों की तादात लगातार बढ़ रही है। उसमें भारत की स्थिति नाजुक है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर वर्ष 1.6 करोड़ लोग कैंसर, मधुमेह और हृदयघात जैसे असंक्रामक रोगों की वजह से मर रहे हंै। भारत में असंक्रामक रोगों से 30 से 70 साल के बीच मरने वाले लोगों की आशंका 26.1 से बढ़कर 26.2 प्रतिशत हो गया है। तुलनात्मक रुप से यह आंकड़ा दक्षिण एशिया और अफ्रीका के कुछ देशों की तुलना में बेहद खराब है। रिपोर्ट के मुताबिक पी-5 देशों (चीन, फ्रांस, रुस, ब्रिटेन और अमेरिका) में केवल रुस की ही स्थिति भारत से अधिक खराब है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने माना है कि असंक्रामक बीमारियों में कैंसर, डायबिटीज, हृदय रोग और सांस लेने में परेशानी संबंधी प्रमुख चार बीमारियां हैं।

असंक्रामक रोगों की वजह से भारत ही नहीं विश्व की एक तिहाई आबादी भी मुश्किल में है। उसका कारण यह है कि इन असंक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए अभी तक कारगर कदम नहीं उठाए गए हैं। अच्छी बात यह है कि इस दिशा में पार्टनरशिप टू फाइट क्राॅनिक डिजीज (पीएॅसीडी) ने हाल ही में संकल्प दिशा स्वस्थ भारत की नाम से एक राष्ट्रीय रुपरेखा तैयार कर उस पर अमल शुरु हुआ है। इसका उद्देश्य देश में 2025 तक स्वस्थ भारत के संकल्प को हासिल करने में सहयोग देना है। चूंकि भारत में अभी तक असंक्रामक रोगों से निपटने के लिए कोई ठोस नीति नहीं रही लिहाजा ऐसे में इस ब्लू प्रिंट से राज्यों को स्वास्थ्य संबंधी मामलों को प्राथमिकता देने में मदद मिलेगी।

अगर इसे जमीनी शक्ल दिया जाता है तो भारत में हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह और मस्तिष्क आघात से मरने वाले लोगों की संख्या कम होगी। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार असंक्रामक रोगों से निपटने के लिए भारी धनराशि खर्च कर रही है। उसके अपेक्षित परिणाम भी देखने को मिल रहे है। चिकित्सकों का कहना है कि अगर इन बीमारियों पर शीध्र ही नियंत्रण स्थापित कर लिया गया तो यह बीमारी राष्ट्रीय आपदा का रुप ग्रहण नहीं कर सकती है और इससे आसानी से निपटा जा सकता है। सरकार की कोशिश है कि 30 वर्ष से ज्यादा उम्र के व्यक्तियों में गैर संचारी रोगों को लेकर ज्यादा से ज्यादा जागरुकता पैदा किया जाय और व्यापक स्तर पर उनका शारीरिक परीक्षण कराया जाए।

 

निःसंदेह यह एक सार्थक कदम है। अगर इस योजना को आकार दिया जाए तो देश की एक बड़ी आबादी को स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करने में मदद मिलेगी। गत वर्ष पहले भारत के महापंजीयक द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा जा चुका है कि देश के 35 से 64 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों में 42 फीसदी मौत की वजह असंक्रामक रोग है। अगर इन रोगों के लक्षणों को समझ लिया जाय तो इस पर नियंत्रण पाने में आसानी होगी। ऐसा माना जाता है कि असंक्रामक रोगों का जितना जल्दी इलाज शुरु होता है वह उतना ही लाभकारी होता है। सरकार को चाहिए कि वह असंक्रामक रोगों की दवाइयों की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण लगाए ताकि आमजन को फायदा हो सके। साथ ही सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक सुधार के लिए शहरों के साथ-साथ गांवों पर ज्यादा फोकस बढ़ाना चाहिए।

इसलिए कि असंक्रामक रोगों से मरने वालों की ज्यादा तादाद ज्यादा गांवों में है। गांवो में स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढ़ांचा पूरी तरह चरमराया हुआ है। गांवों में स्थापित अस्पताल जर्जर हैं। न तो वहां जनसंख्या के अनुपात में डाॅक्टर हैं और न ही दवाइयां। ऐसी स्थिति में भला असंक्रामक रोगों से कैसे निपटा जा सकता है। विडंबना यह है कि गांव के लोगों को तब तक असंक्रामक रोगों के बारे में जानकारी नहीं होती जब तक कि वह पूरी तरह उसके चपेट में नहीं आ जाते है। जब तक उन्हें अपनी बीमारियों के बारे में जानकारी मिलती है तब तक बीमारियां गंभीर रुप धारण कर चुकी होती हंै। चूंकि गांवों में इन रोगों के इलाज की बेहतर सुविधा नहीं है लिहाजा उन्हें शहर की ओर रुख करना पड़ता है। उचित होगा कि सरकार गांवों में बेहतर और सस्ता इलाज की सुविधा उपलब्ध कराए ताकि लोगों को असामयिक मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सके। निःसंदेह पिछले कुछ वर्षों में कैंसर, एड्स और हृदय से जुड़ी घातक बीमारियों के उपचार में नई तकनीक और दवाइयां ईजाद हुई हैं। लेकिन सच यह भी है कि ये इतनी अधिक महंगी हैं कि आमलोगों की पहुंच से बाहर हैं।

अच्छी बात है कि भारत सरकार महंगी जीवनरक्षक दवाईयों की कीमत कम करने का प्रयास कर रही है ताकि गंभीर बीमारियों से त्रस्त आम आदमी भी इलाज करा सके। आमजन को भी चाहिए कि वह सरकार द्वारा विभिन्न किस्म के रोगों के बारे में दी जा रही जानकारियां और उससे बचने के उपाय को गंभीरता से ले।   

अरविंद जयतिलक (लेखक/स्तंभकार)

 

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