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महिला दिवस विशेष…..लोमड़ी से भी तेज दिमाग वाली सशक्त महिला की कहानी

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यशोदा मिश्रा जिन्हें मैं प्यार से मइया यशोदा मइया भी कहता था वैसे तो बहुत ही कंजूस व चालाक महिला थीं परन्तु अपनी बेटी की तरह एक नेक व सहृदय महिला होने का अभिनय भी अच्छा कर लेती थी। जब कभी अपनी बेटी से मिलने लखनऊ आती तो फुटपाथ पर ठेले पर बिकने वाली दस बीस रुपये की गुड़ की पट्टी ले आती थी। पैसों की तंगी का हमेशा रोना रोया करती थी परन्तु इस बार ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने आते ही खुशी खुशी अपना एयर बैग खोलकर उसमें से गिफ्ट पैकेट निकाला और मेरी तरफ बढ़ा दिया।

मैंने पूछा ये क्या है मइया ? इसपर वो मुस्कुरा कर बोलीं कुछ नहीं बस ऐसे ही आप लोगों के लिए कुछ खाने का सामान ले आया हूँ। मैंने कहा आखिर क्या जरूरत थी इतना पैसा बर्बाद करने की। यही पैसा आपके काम आता। मैंने गिफ्ट पैकेट हाथों में ले तो लिया मगर कौतुहल वश उसे देखता रहा कि आखिर इस पैकेट में है क्या❓ गौर से देखने पर समझ में आया “डार्क फैंटेसी” अरे हां ये तो ब्रिटानिया का डार्क फैंटेसी बिस्किट का फेस्टिवल गिफ्ट पैकेट है।

बात इतने पर ही नहीं रुकी उन्होंने लाल रंग की दो अदद टी शर्ट भी अपने बैग से निकाला और एक टी शर्ट मुझे देते हुए कहा इसे पहन कर देखो! जरा मैं भी देखूँ आप पर कैसी लगती है। मैंने कहा अरे माँ जी अभी रहने दीजिये फिर किसी दिन पहन लूंगा। परन्तु वो थीं की अपनी जिद पर अड़ी रहीं कि नहीं नहीं अभी पहन कर दिखाओ मुझे मैं देखूंगा कि कैसी लगती है आप पर।

उनकी जिद के आगे मुझे झुकना पड़ा। टी शर्ट की तह खोलकर पहनने चला तो देखा कि उसपर ब्रिटानिया गुड डे आगे पीछे और बाजू पर छपा हुआ था। जिससे अंदाज़ा लगाने में देर नहीं लगी कि ये तो कर्मचारियों के लिए प्रचार के रूप में मुफ्त बांटी जाने वाली टी शर्ट है। मुझसे रहा न गया! मैं ने पूछ ही लिया कि माँ जी यह आपको कहां से मिल गई। इतना सुनते ही वो मुझपर भड़क उठी। बोली कौन देगा… ये मैंने खरीदा हूँ। यशोदा के चेहरे पर कुटिल भाव गहराने लगे थे। खैर जाने दो… जो भी हो मुझे क्या करना।

उनके कहे का मान रखने के लिए मैंने टी शर्ट पहन कर उन्हें दिखा दिया और उतार कर वापस तह बनाकर रख दिया।
बात कुछ हजम नहीं हो रही थी। निगाह बचाकर गिफ्ट पैकेट को उलट पलट कर देखा। कीमत ४००/= रुपये लिखी थी। मेरा माथा ठनका। दिल कह रहा था कहीं कुछ गड़बड़ है। क्यूंकि कंजूसी में जिस महिला ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हों उसके मन में भला इतने मंहगे बिस्किट..जबकि मिठाई भी ३५०/= ४००/= रुपये किलो मिल जाती है फिर इतने मंहगे बिस्किट के एक नहीं दो दो गिफ्ट पैकेट खरीदने की क्या जरूरत थी। टी शर्ट भी खरीदी तो वो भी बिस्किट कम्पनी के प्रचार वाली।

सबसे बड़ी बात जो निकल कर सामने आई कि न तो होली और न ही दीपावली का त्यौहार ही हो जिसमें गिफ्ट पैक ऑफर की कोई स्कीम चल रही हो जिसके खरीद पर टी शर्ट फ्री हो। खैर दिमाग लगाते लगाते दिमाग सुन्न हो चुका था। बात आई गई हो जाती उससे पहले कुदरत ने अपना चमत्कार दिखाया। बिस्किट तो खा लिए गए अब जब बारी आई खाली डिब्बे को फेंकने की… इससे पहले कि मैं खाली डिब्बा कूड़े दान में डालता मेरी निगाह डिब्बे के रैपर जो कम्पनी का ही था पर पड़ी जिस पर प्रोडक्ट की एक्सपायरी डेट लिखी हुई थी।

गौर से देखने पर पता चला कि अरे ये बिस्किट तो एक साल पहले ही एक्सपायर हो चुके थे । जिससे अनुमान लगाना आसान हो गया कि ये बुढ़िया कितनी शातिर और मक्कार किस्म की है। शायद उसे उसके किसी जानने वाले दुकान दार ने दुकान में पड़े एक्सपायरी डेट वाले बिस्किट जो अब उसके किसी काम के नहीं थे कहा हो अपने कुत्ते के लिए उठा ले जाओ, मुफ्त में दे दिया होगा मगर इस यशोदा मइया की निगाह में हमारी एहमियत उसकी बिटिया के पालतू कुत्तों जैसी ही हो।

पण्डित बेअदब लखनवी 

(लेखक, व्यंग्यकार, साहित्यकार )

लेखक के अपने विचार हैं 

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