विषय आमंत्रित रचना -विचार ….
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मन है कि मानता ही नहीं। विचारों का तांता सा लगा रहता है । विधायक भी और निषेधक विचार आते हैं । विधायक चिंतन से मिलती शांति और आनंद। निषेधक चिंतन से मन में भर जाता विषाद का घेरा। अशांति अपना डेरा जमा लेती हैं । आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने सुझाया – कि हम हरदम सजग रहें ।
ज्यों ही निषेधक भाव की और कदम बढ़ायें तो तुरंत करने लग जाये श्वास प्रेक्षा करने । ये विचार मेरे नहीं है ऐसी करें हम अनुप्रेक्षा। उस विचार को हम वहीं दे दे विराम। और शुभ चिंतन की ओर मुड़ जाएं अविराम । शरीर में कोई सुन्दरता नहीं है|सुन्दर होते हैं व्यक्ति के कर्म, उसके विचार उसकी वाणी ,उसका व्यवहार, उसके संस्कार और उसका चरित्र |जिसके जीवन में यह सब है वही इंसान दुनिया का सबसे सुंदर शख्स है।
हम बाहर के प्रदूषण मिटाने की जागृति लाएं वैसे ही भीतर के विचारों के प्रदूषण को मंत्र – साधना आदि द्वारा द्वारा मिटायें ।प्रदूषण फैला है चहुं ओर पदार्थ, वायु, ध्वनि से प्रदूषित है हर छोर । विचारों का व ध्वनि का प्रदूषण तो दूषित कर रहा मन मोर ।हम सोचते हैं संस्कारों से विचार बनते दूषित । पर यह सत्य है, अधूरा सत्य ,वातावरण में बुरे विचारों के ध्वनि के परमाणु बिखरे है अत्यंत।जब वे टकराते मानव सिर से न चाहते हुए भी व्यक्ति बुरे विचारों से ध्वनि से हो जाता वह ग्रसित ।
अपने बुरे विचारों के लिए किया जाता तप। परन्तु बाहरी वायुमंडल को कर रहे जो विचार व ध्वनि प्रकम्पित वे बना देते हमारे विचारों को भी दूषित ।यह है एक समस्या सद्यस्क । कैसे बनें इस समस्या से सुरक्षित । मंत्र – साधना है इसका उपाय परिचित ।मंत्र- साधना से ऊर्जा बन जाती प्रबल , शक्तिशाली बन जाता आभामंडल , लेश्या का कवच बन जाता इतना सक्षम , कि आने वाले बुरे विचारों के परमाणु हो जाते निरस्त।नहीं कर पाते मस्तिष्क में प्रवेश ।सभी प्रदूषण होते करने वाले पर्यावरण का नाश ।फैले हुए बुरे विचारों का प्रदूषण तो कर देता मानव मस्तिष्क को बर्बाद ।
धारें मंत्र -साधना रूपी उपचार । करते करते साधना ,एक दिन बन जाये निर्विचार । संवेदना शब्द में ही छुपा है इसका राज । सम + वेदना यानी आपको जितनी तकलीफ है उसमें मेरा भी है उतना ही भाग। मैं भी हूं आपके साथ।व्यक्ति का दुःख दर्द हो जाता आधा। पा कर अपनत्त्व भरे अपनो के शब्दों का । उस समय मिल जाए अपेक्षा से आदि सभी तरीक़े से सहयोग अपनो का । सहानुभूति यानी सह +अनुभूति। है संवेदना ,सहानुभूति , मानवीय गुणों की संतति। सामने वाले व्यक्ति में हो जाता नव स्फूर्ति का संचार। कष्ट सहने का, ख़त्म करने का ,लड़ने का साहस जाग जाता अपार।
मेरा यह विचार है की साथ मिल जाए विचार का वातावरण तो ख़त्म हों जाए ग़लत विचार व हाथ कीं अंगुलियों कीं तरह हों जाए एक साथ । अगर भूमि में बिना बीज डालें हीं घास- फूस अपने आप उग जाते हैं वैसे ही सदेव सकारात्मक विचारों से ओत -प्रोत रहेंगे तो नकारात्मक विचार आयेंगे ही नहीं | यही तो जीवन का गहना है| सादा जीवन उच्च विचार । विचारों की उज्ज्वलता हमारे जीवन की अमूल्य धरोहर है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़़ ,राजस्थान )