Lok Dastak

Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi.Lok Dastak

Indian Economy : “सियासत के सौदागरों को क्यों डेड दिखती है देश की अर्थव्यवस्था?”

1 min read
Spread the love

 

PRESENTED BY ARVIND JÀYTILAK

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद सियासी धंधेबाजों की नजर में भारतीय अर्थव्यवस्था डेड हो चुकी है। गौर करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था को डेड बताने वाले वहीं लोग हैं जो 2014 से पहले औंधे मुंह पड़ी विकास दर, कमरतोड़ महंगाई और उत्पादन में कमी से निपटने में बुरी तरह नाकाम साबित हुए थे। अब उनका अर्थ ज्ञान इतना मजबूत हो चुका है कि टैरिफ बढ़ जाने मात्र से उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था रसातल में धंसती नजर आ रही है। उनके इस निष्कर्ष और कुतर्क-कुप्रचार का आधार सिर्फ इतना भर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने टैरिफ लगाने के बाद इंडिया को डेड इकोनॉमी कहा है।

लेकिन मजेदार बात यह कि वह टैरिफ को लेकर अभी भी आगे-पीछे कर रहे हैं। फिलहाल इस मसले पर दोनों देशों के बीच अभी बातचीत जारी है। लेकिन उतावलेपन की हद है कि भारत के खिलाफ कुप्रचार का ठेका उठा रखे सियासी धंधेबाजों के पास धैर्य नाम की कोई चीज ही नहीं हैं। कौवा कान ले गया तो ले गया। वे इस कहावत को भली भांति चरितार्थ कर रहे हैं। दरअसल डोनाल्ड ट्रम्प की तरह ये सियासी धंधेबाज भी चाहते थे कि कि भारत अपने कृषि-डेयरी बाजार को अमेरिका के लिए खोल दे। अगर भारत सरकार अमेरिकी शर्तों पर झुक गई होती तो इन सियासी धंधेबाजों को सरकार पर किसान विरोधी फैसला लेने का तोहमत लगाकर सरकार को घेरने, बदनाम करने और राजनीतिक माहौल विषाक्त बनाने का मौका मिल जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

भारत सरकार ने अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखा। अब सियासी धंधेबाजों के पास एक ही रास्ता बचा है कि वे डोनाल्ड ट्रम्प की भाषा का समर्थन कर भारत की अर्थव्यवस्था के खिलाफ माहौल निर्मित करें। दुनिया के निवेशकों को भड़काएं। इस काम में अच्छी तरह जुट भी गए हैं। लेकिन उनकी मंशा पूरी होने वाली नहीं है। दुनिया के निवेशकों का भारत के ग्रोथ रेट पर भरोसा है। वे अच्छी तरह जानते हैं कि टैरिफ बढ़ जाने मात्र से कोई अर्थव्यवस्था रसातल में नहीं चली जाती। वह भी भारत जैसी तेज रफ्तार वाली अर्थव्यवस्था जो हाल ही में जापान को पछाड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी है। वे जानते हैं कि अगर अमेरिकी टैरिफ बढ़ भी जाता है तो भारत पर बहुत असर पड़ने वाला नहीं है।

हां, श्रम-प्रधान उत्पाद जैसे वस्त्र, फार्मास्यूटिकल, रत्न-आभूषण और पेट्रोकेमिकल्स पर थोड़ा असर जरुर पड़ेगा। लेकिन भारत का बाजार इतना बड़ा है और इन उत्पादों का अपने ही देश में जबरदस्त डिमांड है। सच तो यह है कि टैरिफ बढ़ने का सर्वाधिक नुकसान अमेरिका को ही भुगतना होगा। भारत पर टैरिफ बढ़ाने से अमेरिका में न सिर्फ महंगाई बढ़ेगी बल्कि उसे कम जीडीपी और डॉलर के कमजोर होने का खतरा उठाना होगा। एसबीआई रिसर्च ने अमेरिकी टैरिफ को एक बुरा बिजनेस फैसला करार दिया है। उसके अनुमान के मुताबिक अमेरिका में महंगाई 2026 तक 2 प्रतिशत के तय लक्ष्य को पार कर जाएगी। ऐसा टैरिफ के सप्लाई-साइड इफेक्टस और एक्सचेंज रेट में बदलाव के कारण होगा।

वैसे भी गौर करें तो भारत के साथ व्यापार में अमेरिका पहले से ही घाटा झेल रहा है। वर्तमान में उसका घाटा 45.7 बिलियन डॉलर के पार है। अब उसे एक नई मुसीबत महंगाई की मार भी झेलनी होगी। रही बात भारत की तो इस टैरिफ का उसके ग्रोथ रेट पर बहुत असर पड़ने वाला नहीं है। तमाम आर्थिक एजेंसियों द्वारा आंकलन कर उद्घाटित किया गया है कि टैरिफ के बाद भी भारत का ग्रोथ रेट 6.8 प्रतिशत के पार रहेगा। दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी से निवेशक उत्साहित हैं और वे लगातार भारत की ओर रुख कर रहे हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था टैरिफ से प्रभावित होने के बजाए इसे एक अवसर के रुप में बदल देगी।

दुनिया को पता है कि भारत अमेरिकी टैरिफ बढ़ने से होने वाले अपने मामूली नुकसान की भरपाई यूरोप और आसियान देशों के साथ व्यापार बढ़ाकर कर सकता है। यूरोप और आसियान देशों में भारतीय उत्पादों की जबरदस्त मांग है। आसियान के सभी दस देशों जैसे इंडोनेशिया, सिंगापुर, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड, म्यांमार, बु्रनेई, फिलीपींस, लाओस और कंबोडिया के साथ भारत की आर्थिक साझेदारी में तेजी से वृद्धि हुई है। वैसे भी ये देश एक अरसे से भारत के साथ व्यापारिक विस्तार की मांग करते रहे हैं। अब भारत इन देशों में अपने उत्पाद निर्यात को बढ़ा सकता है। आज की तारीख में भारत आसियान के लिए चौथा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है।

पिछले डेढ़ दशक के दौरान आसियान देशों से भारत में कुल 70 अरब डॉलर यानी करीब पांच लाख करोड़ रुपए का निवेश हुआ है जो भारत के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के 17 प्रतिशत के बराबर है। इसी तरह भारत यूरोपीय संघ के साथ भी अपने कारोबारी रिश्ते को मजबूती दे सकता है। आज की तारीख में यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वर्ष 2024 में भारत और यूरोपीय संघ के बीच 120 बिलियन यूरो अर्थात 141.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ। यह भारत के कुल व्यापार का 11.5 प्रतिशत है। भारत की अर्थव्यवस्था को मर चुकी अर्थव्यवस्था का नगाड़ा पीटने वालों को याद रखना चाहिए कि आज भारत की जीडीपी 4 ट्रिलियन डॉलर के पार पहुंच चुकी है। आने वाले दो-तीन वर्षों में वह जर्मनी को भी पछाड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का तमगा हासिल कर लेगा।

सच तो यह है कि भारत की मौजूदा सरकार ने मैक्रो-इकनॉमिक फंडामेंटल्स को मजबूत करते हुए अर्थव्यवस्था को नई उर्जा दी है। ब्लुमबर्ग की रिपोर्ट में कहा जा चुका है भारतीय अर्थव्यवस्था ने ऊंची छलांग लगायी है और जीडीपी 13.5 फीसद की दर से आगे बढ़ी है। भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हो चुका है कि भारत 2029 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रुप में उभर सकता है। 2014 में भारत आर्थिक रुप से दसवें पायदान पर था। लेकिन सरकार की नीति, उपभोक्ता खर्च में आई तेजी, घरेलू स्तर पर बढ़ी मांग और सेवा क्षेत्र में लगातार विस्तार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नए मुकाम पर पहुंचा दिया है। आज उसी का नतीजा है कि भारत जी-20 देशों में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है।

आंकड़ों पर गौर करें तो आज भारत में सबसे ज्यादा स्मार्टफोन डेटा उपभोक्ता हैं। सबसे ज्यादा इंटरनेट यूजर्स के मामले में दूसरे स्थान पर है। तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। इनोवशन इंडेक्स में भारत की रैंकिंग लगातार सुधर रही है। देश में यनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस यानी यूपीआइ के जरिए लेन-देन बढ़ा है। वर्ष 2024 में यूपीआइ लेन-देन की कुल संख्या 17221 करोड़ थी। इसका कुल मुल्य 246.8 लाख करोड़ रुपए था। विनिर्माण क्षेत्र में ग्रोथ से भारत के निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का कुल निर्यात 824.9 अरब अमेरिकी डॉलर था। बीते एक दशक में 110 अरब डॉलर से ज्यादा की नई कंपनियां अस्तित्व में आई हैं। आज इनका मूल्य 12 लाख करोड़ रुपए से अधिक है।

यह संकेत भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था की संभावना को पुख्ता करता है। मजबूत अर्थव्यवस्था के कारण भारत में निवेश को लगातार बढ़ावा मिला है। अनुकूल माहौल के कारण निवेशक इनवेस्ट में रुचि दिखा रहे हैं। आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था और भी अधिक ऊंची छलांग लगाएगी। इसकी प्रमुख वजह विनिर्माण क्षेत्र में तेजी से हो रहा ग्रोथ है। आज भारत पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। याद होगा गत वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र और सांस्कृतिक नगरी वाराणसी में पांच लाख करोड़ (पांच ट्रिलियन) की अर्थव्यवस्था की क्षमता पर शक करने वाले लोगों को पेशेवर निराशावादी कहा था। आज वहीं निराशावादी एक बार फिर भारतीय अर्थव्यस्था को डेड बता फूले नहीं समा रहे हैं। भगवान इन्हें सद्बुद्धि और राष्ट्रभक्ति प्रदान करें।

 

Note – The author is a senior journalist, the article reflects his own views.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright ©2022 All rights reserved | For Website Designing and Development call Us:-8920664806
Translate »