Spiritual Matters : “विराट श्रीकृष्ण चालीसा” : नारायण की साक्षात अनुभूति — डॉ. दिव्या चौधरी
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PRESENTED BY DR. DIVYA CHAUDHARY
विजय प्रकाश मिश्र द्वारा रचित “विराट श्रीकृष्ण चालीसा” एक अद्वितीय काव्य-रचना है, जो भक्ति, श्रद्धा, और आध्यात्मिक अनुभूति का अनुपम संगम है। इस चालीसा में न केवल श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप और समग्र ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ओजस्वी वर्णन है, बल्कि यह मन से पाठ करने वाले की चेतना को एक उच्च आध्यात्मिक धरातल पर ले जाकर आत्मा और परमात्मा के अद्वैत संबंध को स्थापित करती है।
श्री मिश्र की यह रचना गहराई, सरलता और भगवान श्री कृष्ण की अनंत ऊर्जा का दुर्लभ समन्वय है। उनका ज्ञान, संवेदना और रचनात्मक दृष्टिकोण उन्हें केवल एक रचनाकार ही नहीं, अपितु एक आध्यात्मिक दृष्टा के रूप में भी प्रतिष्ठित करता है। उनके लेखन में शब्द मात्र नहीं होते, अपितु उनमें दिव्यता की ऐसी ऊर्जा होती है जो हृदय को स्पर्श करती है, मन को आनंदित करती है और आत्मा को शांति प्रदान करती है।
जब मैंने “विराट श्रीकृष्ण चालीसा” का पाठ किया, तो मुझे भगवद्गीता के 11वें अध्याय का वह परम क्षण स्मरण हो आया, जब अर्जुन, नारायण श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन कर स्तब्धता और भक्ति में विलीन हो गए थे। श्री मिश्र की लेखनी ने उसी विराट भाव की सजीव अनुभूति मुझे करवाई — यह कोई सामान्य रचना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना का स्वरूप है।
पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कुछ श्लोक चौपाइयों के रूप में उतर आए हों और साक्षात भगवान नारायण के विराट स्वरूप के दर्शन हो रहे हों। पूरी ऊर्जा अंदर महसूस होती है। पूरा प्रकाश अपने भीतर आता हुआ महसूस होता है। एक अद्भुत,असीमित ऊर्जा उत्पन्न होती है और लगता है कि बस नारायण की कृपा मिल गई है।
जिस प्रकार से जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य और मैहर धाम के महाराज जी द्वारा आशीर्वचन लिखा गया है, वह इस पुस्तक की प्रमाणिकता को स्वयं सिद्ध करता है।
यहां पर कुछ श्लोक के माध्यम से मैं पुस्तक के बारे में कुछ अपने निजी विचार साझा करना चाहती हूं । कुछ श्लोक नीचे दिए गए हैं, उनका वाचन इस चालीसा को समझने के लिए आवश्यक है ।
श्लोक 11.38:
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।।
अर्थात,
आप आदिदेव हैं, सनातन पुरुष हैं, समस्त सृष्टि के परम आधार हैं। आप ही ज्ञाता हैं, जानने योग्य हैं, और परम धाम हैं। हे अनन्तरूप! यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड आपसे व्याप्त है।
श्लोक 11.39:
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमः नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते।।
अर्थात,
आप ही वायु हैं, यम हैं, अग्नि हैं, वरुण हैं, चंद्रमा हैं, प्रजापति हैं और ब्रह्मा जी के भी परब्रह्म परमात्मा हैं। आपको बार-बार, सहस्त्रों बार नमस्कार है। फिर भी बारंबार, बारंबार आपको नमस्कार।
श्लोक 11.40:
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः।।
अर्थात,
आपको आगे से, पीछे से और सभी दिशाओं से बारंबार नमस्कार है। हे सर्वशक्तिमान! हे अमित पराक्रम वाले! आप ही सब कुछ हैं और सबको व्याप्त करते हैं, इसीलिए आप ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हैं।
विजय मिश्र न केवल साहित्य, रचना और अंग्रेज़ी के गुणी विद्वान हैं, बल्कि एक दूरदर्शी और संवेदनशील इंसान भी हैं। उनकी कुछ कविताएं और रचनाएं पढ़ने का मौक़ा मुझे भी मिला हैं, लेकिन यह चालीसा तो अपने आप में अनमोल है। इसमें श्रीकृष्ण के विराट रूप का ऐसा दिव्य वर्णन किया गया है जो इंसान के अंतर्मन को छू जाता है और उसे आध्यात्मिक ऊँचाइयों की ओर ले जाता है।
मैं एक लंबे समय से विजय प्रकाश मिश्र जी की रचनाओं और विचारधारा को पढती और समझती आ रही हूँ। उनके शब्दों में, मैंने एक अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा को महसूस किया है—जो मेरे मन को शांति देती है और आत्मा को स्पर्श करती है।
आज के समय में ऐसी अनुभूति मिलना दुर्लभ है, पर श्री मिश्र जी का यह एहसास, प्रेरणा और गहरायी इस रचना में जैसे सभी भाव को सजीव कर उठती है।
मेरी हार्दिक इच्छा है कि हर जनमानस ,” विराट श्री कृष्ण चालीसा” को नियमित रूप से पढ़े और ईश्वर की शक्ति और ऊर्जा का अनुभव करे | मंदिरों में नियमित उच्चारण हो और विजय मिश्र जी का नाम सभी दिशाओं में अलौकिक हो, इसी आत्मीयता के साथ नारायण से प्रार्थना करती हूं | “विराट श्रीकृष्ण चालीसा” उनकी अब तक की रचनात्मक साधना का शिखर प्रतीत होती है — जो साहित्यिक भी है, दार्शनिक भी, और दिव्य भी।
मैं हृदय से संकल्प लेती हूं कि इस पावन रचना को जनमानस तक पहुंचाने में अपना सतत योगदान देती रहूंगी, जिससे यह चालीसा न केवल पाठकों के हृदय को आलोकित करे, अपितु मंदिरों और घरों में इसकी दिव्य वाणी गूंजे और लोक-कल्याण का माध्यम बने।
मैं पुनः श्री मिश्र जी को इस उत्कृष्ट रचना के लिए कोटिशः बधाई देती हूं और ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि उनका नाम साहित्य और अध्यात्म के क्षेत्र में चिरकाल तक आलोकित रहे।
( लेखिका प्रोफेसर (डॉ.) दिव्या चौधरी- निदेशक, जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, कानपुर में कार्यरत हैं )