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WORLD HINDI DAY : वैश्विक फलक पर हिन्दी भाषा की गूंज

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आज विश्व हिंदी दिवस है। आज ही के दिन 1975 में नागपुर में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ। विश्व हिंदी दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने की मांग के अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार और मजबूत बनाना है। हिंदी के प्रचार-प्रसार और वैश्विक स्वीकार्यता का ही नतीजा है कि आज वह अपने सभी प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़ लोकप्रियता का आसमान छू रही है।

आंकडों के लिहाज से देखें तो दुनिया भर में तकरीबन 61.5 करोड़ लोग हिन्दी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इथोनोलॉज के आंकड़ों के मुताबिक अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 113 करोड़ और चीनी भाषा मंडारिन की संख्या 112 करोड़ है। लेकिन जिस गति से हिन्दी भाषा की स्वीकार्यता व लोकप्रियता आसमान छू रही है उससे साफ है कि आने वाले दिनों में हिन्दी भाषा अंग्रेजी और मंडारिन भाषा को पछाड़कर शीर्ष स्थान पर विराजमान हो जाएगी। वैश्विक स्तर पर यूजर्स के लिहाज से 1952 में हिन्दी भाषा पांचवे पायदान पर थी जो 1980 के दशक में चीनी और अंग्रेजी भाषा के बाद तीसरे स्थान पर पहुंच गयी।

लेकिन विगत दशकों में विकासशील भारत के प्रति बढ़ते वैश्विक आर्थिक-व्यापारिक आकर्षण ने सभी के लिए हिन्दी भाषा को बोलने-समझने की अनिवार्यता सुनिश्चित कर दी। गौर करें तो एक भाषा के तौर पर हिन्दी का जितना अधिक अंतर्राष्ट्रीय विकास हुआ है, विश्व में शायद ही किसी अन्य भाषा का उतना हुआ हो। वे सभी संस्थाएं, सरकारी मशीनरी और छोटे-बड़े समूह बधाई के पात्र हैं जिन्होंने हिन्दी को इस ऊंचाई पर पहुंचाया है। 1999 में मशीन ट्रांसलेशन शिखर बैठक में टोकियो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होजुमि तनाका द्वारा पेश नए भाषायी आंकड़ों के मुताबिक अब चीनी भाषा के बाद हिन्दी का स्थान है। यानि अंग्रेजी भाषा पीछे छूट गयी है।

गौर करें तो आज दुनिया के तकरीबन 40 से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिन्दी की पढ़ाई हो रही है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में हिन्दी की धूम मची है। यहां 30 से अधिक विश्वविद्यालयों में भाषायी पाठ्यक्रम में हिन्दी को महत्वपूर्ण दर्जा हासिल है। अमेरिका के अलावा यूरोपिय देशों में भी हिन्दी का तेजी से विकास हो रहा है। इंग्लैण्ड के लंदन, कैम्ब्रिज और यार्क विश्वविद्यालयों में हिन्दी को चाहने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। जर्मनी के हीडलबर्ग, लोअर सेक्सोनी के लाइपजिंग, बर्लिन के हम्बोलडिट और बॉन विश्वविद्यालय में भी हिन्दी भाषा को पाठ्यक्रम के रुप में शामिल किया गया है। एक दशक से रुस के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी साहित्य पर शोध हो रहे हैं। यहां हिंदी का बोलबाला बढ़ा है।

हिन्दी का जलवा सिर्फ जर्मनी ही नहीं बल्कि रुस में भी कायम है। विगत दशकों में अनेक रुसी विद्वानों ने हिंदी साहित्य का अनुवाद किया है। इनमें से एक तुलसीकृत रामचरित मानस भी है जिसका अनुवाद प्रसिद्ध विद्वान वारान्निकोव द्वारा किया गया है। मॉस्को राजकीय विश्वविद्यालय और कुछ अन्य विश्वविद्यालयों में एक अलग पूर्वी भाषाओं के विभाग को बनाया गया है जहां पर हिन्दी की शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है। रुसी कवियों ने सबसे पहले जिस भारतीय कवि की रचनाओं का अनुवाद किया, वे कालिदास हैं। प्रसिद्ध रुसी कवि अलेक्सान्दर पूश्किन के पूर्ववर्ती कवि वसीली झुकोवस्की ने सबसे पहले कालिदास की रचना ‘नल और दमयंती’ का रुसी भाषा में अनुवाद किया। उनके बाद कालिदास की रचना ‘शकुंतला’ का अनुवाद कंस्तांतिन बालमंत ने किया।

हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता का ही आलम है कि वेस्टइंडीज के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी पीठ की स्थापना की गयी है। एशियाई देश जापान में हिन्दी भाषा का बहुत अधिक सम्मान है। प्रोफेसर दोई ने टोकियो विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग की स्थापना की है। रुस की तरह जापान में भी हिन्दी साहित्य का अनुवाद हुआ है। प्रोफेसर तोबियोतनाका ने भीष्म साहनी के उपन्यास ‘तमस’ का जापानी भाषा में अनुवाद किया है। प्रोफेसर कोगा ने ‘जापानी-हिन्दी कोष’ की रचना की है। उन्होंने गांधी जी की आत्मकथा का भी जापानी में अनुवाद किया है। प्रोफेसर मोजोकामी हर वर्ष हिन्दी का एक नाटक तैयार करते हैं और उसका मंचन भारत में करते हैं।

गुयाना और मॉरिशस में भी हिन्दी भाषा को लेकर जबरदस्त उत्साह है। दरअसल यहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या सर्वाधिक है। यहां प्राथमिक स्तर से लेकर स्नातक स्तर पर हिन्दी के पठन-पाठन की समुचित व्यवस्था है। मॉरिशस में अंग्रेजी राजभाषा है। फ्रेंच बोलने वालों की तादाद भी बहुत अच्छी है। लेकिन हिन्दी की लोकप्रियता में तनिक भी कमी नहीं है। यहां बहुत पहले हिन्दी सचिवालय की स्थापना हो चुकी है। आज ढेरों हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। मॉरिशस में भारतीय मूल के लोगों की जनसंख्या कुल आबादी की आधे से अधिक है। लिहाजा यहां हिन्दी का एक सशक्त भाषा के रुप में स्थापित होना लाजिमी है। यहां हिन्दी भाषा में खूब पत्र-पत्रिकाओं तथा साहित्य का प्रकाशन हो रहा है।

मॉरिशस की तरह फिजी, नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका में भी हिन्दी का जलवा कायम है। फिजी में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा हिन्दी है। इसे फिजियन हिन्दी या फिजियन हिन्दुस्तानी भी कहते हैं। यह फिजी की आधिकारिक भाषाओं में से एक है। नेपाल में भी हिन्दी बोलने व समझने वाले लोगों की तादाद अच्छी है। नेपाल में भारतीय टेलिविजन और सिनेमा अति लोकप्रिय है जिसके कारण हिन्दी बोलने-समझने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। इसी तरह खाड़ी देशों में भी हिन्दी का तेजी से प्रचार-प्रसार हर रहा है। यहां के सोशल मीडिया में भी हिन्दी का दखल बढ़ा है। आज कई पत्र-पत्रिकाओं को ऑनलाइन पढ़ा जा रहा है। संयुक्त अरब अमीरात में हिन्दी एफएम चैनल लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं।

नए-पुराने हिन्दी गीतों को चाव से सुना जा रहा है। हिन्दी फिल्मों ने भी यहां धूम मचा रखी है। पिछले कुछ वर्षों से दुबई में लगातार हिन्दी कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है जो अपने-आप में एक बड़ी उपलब्धि है। हिन्दी भाषा की यह असाधारण उपलब्धि कही जाएगी कि जिन देशों में भाषा को विचारों की पोषाक और राष्ट्र का जीवन समझा जाता है वहां भी हिन्दी तेजी से अपना पांव पसार रही है। हंगरी, बुल्गारिया, रोमानिया स्विटजरलैंड, स्वीडन, फ्रांस, नार्वे, जापान, इटली, मिस्र, कजाकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान, कतर और अफगानिस्तान, रुस और जर्मनी अपनी भाषा को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। वे इसे अपनी सांस्कृतिक अस्मिता से जोड़कर देखते हैं। लेकिन इन दशों में हिन्दी को भरपूर स्नेह और सम्मान मिल रहा है। यह हिन्दी भाषा के लिए बड़ी उपलब्धि है।

आज दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं जहां भारतीयों की उपस्थिति न हो और वहां हिन्दी का तेजी विस्तार न हो रहा हो। एक आंकड़ें के मुताबिक दुनिया भर में ढ़ाई करोड़ से अधिक अप्रवासी भारतीय 160 से अधिक देशों में रहते हैं। यह सुखद है कि वह अपनी भाषा व संस्कृति से जुड़े हैं और हिन्दी के फैलाव में योगदान कर रहे हैं। गौर करें तो बहुराष्ट्रीय देशों की कंपनियां भी अपने-अपने देशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए सरकारों पर दबाव बना रही हैं। दरअसल उनका मकसद हिन्दी के जरिए एशियाई देशों में अपनी व्यपारिक गतिविधियों को बढ़ाना है। यह स्वीकारने में हिचक नहीं कि बाजार ने भी हिन्दी की स्वीकार्यता को नई उंचाई दी है।

किसी भी राष्ट्र की जीवंतता और पहचान उसकी भाषा और संस्कृति है। राष्ट्र के नागरिक निज भाषा से संस्कारित होकर ही अपने मूल्यों, विचारों, आदर्शों और प्रतिमानों को जीते हैं। कहा भी जाता है कि राष्ट्र के विचारों को गढ़ने-बुनने, संजोने-संवारने और उसे प्राणवान बनाने में भाषा की अहम भूमिका होती है। हिन्दी भाषा उन्हीं भाषाओं में से एक है जो भारत की कालजयी सभ्यता-संस्कृति, आचार-विचार, विज्ञान-दर्शन और इतिहास को आलोकित-प्रकाशित करती है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में जहां एक ओर भाषाएं दम तोड़ रही हैं वहीं हिन्दी भाषा अपनी स्वीकार्यता और प्रासंगिकता का लोहा मनवा रही है। आज समूचे विश्व में हिन्दी भाषा की ही गूंज है।

 

 

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