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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2024 : आज ही से शुरू करें प्राणों का आयाम- प्राणायाम – डॉo श्रुति 

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PRESENTED BY DR. SHRUTI AGNIHOTRI 

कहा जाता है सांस है तो आस है क्योंकि पानी के बिना तो दो-तीन दिन तक जीवन संभव है किंतु सांस के बिना कुछ पल भी नहीं। जन्म के साथ ही हम अपनी पहली सांस लेते हैं और मृत्यु के समय अंतिम इसलिए फेफड़े हमारे जीवन का वह अंग है जो प्राण रूपी वायु का संचार करते हैं इसलिए अपने फेफड़ों का ध्यान रखना हमारा कर्तव्य बन जाता है। योग के आठ अंगों में से एक है – प्राणायाम जो प्राण ऊर्जा का संचार करता है और फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है।

चलते-फिरते, उठते- बैठते, खाते पीते और बोलते समय फेफड़ों में बहुत थोड़ी ही मात्रा में वायु पहुंचती है व निकलती है जिससे फेफड़ों के शेष भाग में प्राण वायु का संचार नहीं हो पाता और वह निष्क्रिय हो जाते हैं। इनको सक्रिय बनाए रखने के लिए नाड़ी शोधन प्राणायाम प्रतिदिन करना चाहिए। जिससे उनमें पूरी प्राण वायु का संचार हो और वह आजीवन सक्रिय रहे। इसे विज्ञान की दृष्टि में डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज कहते हैं।

सांस के रोगियों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है । यह प्राणायाम संपूर्ण शरीर की नाड़ियों का शोधन करता है और उनमें प्राण फूंकने का कार्य करता है । भारतवर्ष के कई राज्य इस समय गर्मी व लू से बेहाल हैं। ऐसे में चंद्र भेदी, शीतली, व शीतकारी प्राणायाम करना चाहिए । गर्मी की ऋतु में बायां नासाछिद्र चलना चाहिए क्योंकि वह शरीर को शीतलता प्रदान करता है।

रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में वर्ष 2010 से सांस के रोगियों पर लगातार शोध कार्य डॉo श्रुति अग्निहोत्री द्वारा विभाग अध्यक्ष डॉo सूर्य कान्त के निर्देशन में किया जा रहा है, जिसके शोध पत्र विभिन्न राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स से प्रकाशित हो चुके हैं।

जो यह पुष्टि करते हैं कि अस्थमा के रोगियों के फेफड़े की कार्य क्षमता बढ़ती है, जीवन की गुणवत्ता बढ़ती है, इनहेलर की डोज़ घटती है और उनके मानसिक स्तर में सुधार आता है ।

 (लेखिका डॉo श्रुति अग्निहोत्री वूमेन साइंटिस्ट व योग विशेषज्ञ रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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