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ईश्वर सदैव हमारी रक्षा कर रहे हैं – स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

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REPORT BY AMIT CHAWLA

LUCKNOW NEWS I 

 

सोमवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ की अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि जो व्यक्ति ईश्वर के चरणों में शरण लिए हैं, ईश्वर उनकी सदैव रक्षा करते हैं।

श्री रामकृष्ण के अंतरंग पार्षदों की घटनाएं उद्धृत करते हुए स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा वे लोग श्री रामकृष्ण के चरणों में समर्पित प्राण थे इसलिए श्री रामकृष्ण उन लोगों की सदैव रक्षा किया।

स्वामी जी ने बताया कि प्रथम विश्व युद्ध के समय जब श्री रामकृष्ण के अन्यतम संन्यासी पार्षद स्वामी अभेदानन्दजी इंग्लैंड से अमेरिका जाने के लिए 6 मई 1915 ई. में जहाज का टिकट लेने के लिए गए थे तब अचानक एक वाणी सुना, ‘टिकट मत लो’ अपने मन का भ्रम समझते हुए जब वो दोबारा प्रयास किया तब भी उनको वही ईश्वरीय वाणी सुनाई पड़ा।

तब उन्होंने निर्णय किया कि परवर्ती दिन आकर अमेरिका जाने वाले जहाज का टिकट खरीदेंगे। लेकिन दूसरे दिन सुबह में आश्चर्य होकर अखबार में देखा कि 7 मई में 1915 में वह जहाज जर्मन सम्मेरिन के आघात से उनके 198 यात्री के साथ डूब गए। तब अभेदानन्दजी रोते हुए ठाकुर की कृपा का स्मरण किया।

वैसे ही श्री रामकृष्ण के अन्य संन्यासी पार्षद स्वामी त्रिगुणातीतानंद जी जब 1895 ई. कैलाश मानसरोवर तीर्थ दर्शन करने गए तब अचानक एक दिन रात को एक नदी के सामने पड़ गए जिसको अतिक्रम करना बहुत कठिन था। उस समय अचानक चंद्रमा मेघाच्छन्न होने के कारण चारों ओर अंधकार हो गया एवं स्वामी त्रिगुणातीतानंद जी आगे कुछ नहीं देख पाए। आसन्न मृत्यु समझते हुए त्रिगुणातीतानंद जी जब ठाकुर को आंतरिक पुकारा तब अचानक महसूस हुआ कि कोई व्यक्ति उनको बोला, ‘अनुसरण करो’ यह सुनते ही एक अलौकिक शक्ति का अनुसरण करते हुए वे दूसरे तट पर पहुंच गए इसके बाद पुनः चंद्रमा मेघमुक्त हो गये।

वैसे ही जब स्वामी त्रिगुणातीतानंद जी भूत प्रेत का अनुसंधान करते हुए वराहनगर में एक जीर्ण भवन में पहुंचे तब एक अलौकिक शक्ति उनको दिखाई पड़ा एवं उनके प्राण संशय में पड़ गए। तब अचानक श्री रामकृष्ण की वाणी सुनाई पड़ा। श्री रामकृष्ण ने कहा कि मेरे पर विश्वास रखने से पर्याप्त है। ये सब भूत प्रेत आदि के पीछे प्राण संशय नहीं करना चाहिए।

स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा अतएव हमें श्री रामकृष्ण के पार्षद वृन्द का अनुरूप आचरण अनुसरण करते हुए श्री रामकृष्ण के प्रति विश्वास रखते हुए निरंतर आंतरिक प्रार्थना करना चाहिए ताकि उनके चरणों में शुद्धाभक्ति रखते हुए जीवन सफल और सार्थक हो सके।

 

 

 

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