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हो सोच में सदा नवीनता कृतित्व में रचनात्मकता……

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PRESENTED BY PRADEEP CHHAJER 

BORAVAR,RAJSTHAN I 
जब हमारा मन पॉज़िटिव होगा तब हमें दिव्यता का अनुभव होगा ।क्योंकि सकारात्मकता सही से निर्मलता की निशानी है और मन की निर्मलता हैं ,वही परम सुख है।भगवान महावीर ने कहा है कि जो पॉज़िटिव रहेगा वही मोक्ष की ओर आगे बढ़ सकता है । इसलिए नेगेटिविटी से बाहर निकलना अत्यंत आवश्यक है।

अतः एक निराशावादी को हर अवसर में कठिनाई दिखाई देती है ।एक आशावादी को हर कठिनाई में अवसर दिखाई देता है। किसी भी कार्य की जन्म स्थली होती है मन की कल्पना।हमारे मन में ना जाने कितनी कल्पनायें बनती है और ख़त्म होती है।उन्हीं में से एक़ाध कल्पना मन में स्थिर होती है और फिर उसके ऊपर चलता है चिंतन-मंथन।कोई भी नया कार्य को सफलता पाने के लिये उस कल्पना के बारे में दिन रात चिंतन मंथन करते रहो और जहां कमियाँ लगे उसे सुधारते रहो।

धीरे धीरे वो प्रयास एक सकारात्मक रूप लेकर हमारे सामने प्रस्तुत होता है।यह सही बात है कि कुछ सोचेंगे तो तो कुछ नया करेंगे।अगर सोचेंगे ही नहीं तो क्या करेंगे।वैसे तो हज़ारों उदाहरण हैं पर में एक उदाहरण दे रहा हूँ कि एक फ़िल्म का लेखक सबसे पहले एक विषय पर फ़िल्म बनाने की कल्पना करता हैं उसका चिंतन करता है फिर उस पर कंहा-कंहा क्या क्या कैसे कैसे सीन डालने हैं उस पर चिंतन करते करते फिर एक फ़िल्म की कहानी तैयार होती है।

इसलिये सही कहा है कि कुछ नया करने की जन्म स्थली है सृजनात्मक कल्पनाशीलता । सारांश में जब सोच में नवीनता होती है और कृतित्व में रचनात्मकता होती है तो अप्रत्याशित सफलता परिणाम में मिलती ही है ।

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