ऐसे गांव– आजादी के 75 साल बाद भी नहीं हुई चकबंदी
1 min readअर्जुन सिंह भदौरिया-
97 साल साल पुराना उर्दू का बंदोबस्त आज भी चलन में
उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के तिलोई तहसील के रामपुर जमाल पुर,टिकरी व कुकहा रामपुर गांव के किसान चक मार्ग व नाली के लिए परेशान रहते हैं I भारत देश को स्वतंत्र हुए 75वर्ष बीतने को हैं परन्तु अमेठी तिोहसील के बहादुरपुर विकास क्षेत्र के भदैया महमूदपुर व सिंहपुर विकास क्षेत्र के कुकहा रामपुर व टिकरी गांव के किसानों को अभी भी चकबंदी का इंतजार है।
तीनों ग्राम पंचायतों के मुख्य राजस्व अभिलेख बंदोबस्त व बंदोबस्ती नक्शा उर्दू में है।जिन्हे तहसील में तैनात कोई भी राजस्व कर्मी पढ़ नहीं सकता।आवश्यकता पड़ने पर राजस्व लेखपाल उसे पढ़कर अनुवाद के लिए मोलवी या उर्दू अनुवादक ढूंढते हैं। मोलवी या उर्दू अनुवादक ने सही पढ़ लिया तो ठीक अन्यथा लेखपाल की कार्यवाही राम भरोसे?
इन गांवों में चकबंदी न होने के चलते बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं कि उनकी जमीन कहीं और है कब्जा कहीं और है।कोई किसान अपने खेत की हद बंदी करा लेता है तो वह किसान जो अपनी जमीन के अलावा दूसरे की जमीन पर खेती कर रहा था वह अपना खेत ढूंढने के लिए लेखपाल व तहसील तथा वकीलों के चक्कर लगाता रहता है। इन गांवों में बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं जिनके दादा परदादा कास्त कार थे परन्तु अभिलेख न पढ़ पाने के चलते राजस्व लेखपालों ने वरासत नहीं की और वह खाते मत रुक हो गए।चकबंदी न होने के चलते बहुत सारी आबादी ऐसी बसी है जो खेतों में है या सुरक्षित वन भूमि या पट्टे दारो के नाम दर्ज जमीन में।
पुराना उर्दू का बंदोबस्त आज भी चलन में
ग्राम पंचायत का मुख्य राजस्व अभिलेख बंदोबस्त 41- 45 व नक्शा माना जाता है।और उसी के आधार पर ग्राम पंचायत की पूरी राजस्व कार्यवाही की जाती है।अब ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन गांवों में कैसे राजस्व के कार्य चल रहे होंगे? हां एक बात जरूर है कि आम आदमी उस नक्शे और बंदोबस्त को पढ़ नहीं सकता तो राजस्व कर्मी अच्छी कमाई करते रहते हैं।
राजस्व कर्मियों को अभिलेख पढ़ने का ज्ञान नहीं
भदैया महमूदपुर, टिकरी और कुकहा रामपुर ग्राम पंचायतों के मुख्य राजस्व अभिलेख उर्दू में होने के चलते किसानों की परेशानी तब और बढ़ जाती है जब कोई कार्य बंदोबस्त व बंदोबस्ती नक्शे से संबंधित पड़ जाता है तो लेखपाल व राजस्व निरीक्षक उसे पढ़ नहीं पाता और उसे अनुवाद के लिए किसानों को अच्छी खासी फीस भी देनी पड़ती है।
खतौनी और नक्शे का हिंदी में रूपांतर तो हुआ परन्तु बड़ी संख्या में गलतियां
लगभग चालीस वर्ष पूर्व सिंचाई विभाग और राजस्व विभाग ने संयुक्त प्रयास से नक्शा का हिंदी में रूपांतरण कराया परन्तु उसमें बड़ी संख्या में गड़बड़ियां है जो किसानों के शोषण का कारण बनी हुई है।खतौनी का रूपांतरण भी हुआ उसमें भारी गड़बड़ियां आज भी कायम हैं।बड़ी संख्या में किसानों की जमीनें मतरूक भी हुई हैं।आवश्यकता पड़ने पर किसान राजस्वकर्मियों व तहसील के चक्कर लगाते रहते हैं।इन तीनों गांवो में 1333फसली का है बंदोबस्त उपयोग में है जो 1925 का है अर्थात 97 वर्ष अर्थात 1925 में बने बंदोबस्त से कम चलाया जा रहा है।जबकि सरकार के मानक में बेस फसली 1359 माना गया है अर्थात बेस फसली से भी 26 वर्ष पुराना बंदोबस्त आज भी काम में लाया जा रहा है।
सैकड़ों बीघे वन भूमि व किसानों/ पट्टे दारों की भूमि में मौके पर आबादी
चकबंदी न होने के चलते सैकड़ों बीघे वनभूमी व किसानों/पट्टे दारो की भूमि पर आबादी बस गई है किसान अपनी भूमि पाने व नपवाने के लिए तहसील के चक्कर लगा रहे हैं।बड़ी संख्या में ऐसे भी किसान हैं जिन्हें दसियों वर्ष पहले पट्टे मिले हैं लेकिन नपवाने के लिए आज भी चक्कर लगा रहे हैं कई किसान तो ऐसे हैं जिनका कहना है कि जितना पैसा पट्टा कराने में खर्च हुआ उससे कई गुना नपवाने के लिए खर्च हो चुका है।
1988- 89 में शुरू हुई थी चकबंदी प्रक्रिया,जो राजनीति की भेंट चढ़ गई
भदैया महमूदपुर ,टिकरी और कुकहा रामपुर ग्राम पंचायत में वर्ष 1988- 89 में चकबंदी का गजट हुआ था और प्रक्रिया शुरू हुई थी परन्तु क्षेत्र के बड़े किसानों/अवैध कब्जेदारी के धुरंधरों भूमाफ्याओं ने अपनी राजनीतिक पहुंच और मुट्ठी भर किसानों से विरोध के पत्र पर अंगूठा लगवाकर चकबंदी प्रकिया को निरस्त करवा दिया।
क्या कहते हैं किसान
बहादुरपुर विकास क्षेत्र के भदैया महमूदपुर निवासी बंशबहादुर सिंह का कहना है कि बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो पुस्तैनी खेती करते थे वह किसी और के नाम बताई जाती है। लोग सोच रहे थे चकबंदी होगी सब सही हो जाएगा।
बहादुरपुर विकासक्षेत्र के भदैया महमूदपुर निवासी प्रधान प्रतिनिधि राजवंत यादव का कहना है कि खेतों की नालियां चक रोड कुछ भी नहीं है खेतों को जाना है तो दूसरे के खेत से ही जाना है।
टिकरी निवासी संतोष सिंह का कहना है कि 41 व 45 की नकल लेना हो तो पहले एक मौलवी या उर्दू अनुवादक ढूंढ़ना पड़ता है जो उसे पढ़ सके।जो बहुत कठिन कार्य है उसकी भी फीस अदा करनी पड़ती है।
कुकहा रामपुर निवासी फूलदेव सिंह का कहना है कि गांव में बहुत जमीन किसानों को पट्टे में मिली है परन्तु उन पट्टों पर कब्जा कर पाना आसान नहीं है।यदि एक बार चकबंदी हो जाय तो किसानो के खेत भी इकट्ठे हो जाएं तथा चकमार्ग व सिंचाई नालियां भी दुरुस्त हो जाएंगी।