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Economic News .. एफटीए की राह पर भारत-ब्रिटेन

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जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक द्वारा मुक्त व्यापार समझौते (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट-एफटीए) की समीक्षा रेखांकित करती है कि दोनों देश अपनी प्रतिबद्धता पर कायम हैं। दोनों नेताओं ने इस महत्वकांक्षी समझौते को मूर्त रुप देने की हामी भरने के साथ व्यापार, निवेश, विज्ञान और तकनीक जैसे व्यापक क्षेत्रों में भी आपसी सहयोग बढ़ाने पर बल दिया है। याद होगा जब ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने तब प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने उन्हें बधाई देते हुए उम्मीद जतायी थी कि दोनों देश शीध्र ही फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) को मूर्त रुप देंगे।

गौर करें तो सैंद्धांतिक तौर पर फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) की नींव पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन ने 2021 में अपनी भारत यात्रा के दौरान रखी। उनके बाद लिज ट्रस ने इस प्रस्तावित ट्रेड समझौते का समर्थन कर इसे आगे बढ़ाने पर जोर दिया। अब इस प्रस्तावित ट्रेड समझौता को आकार देने की जिम्मेदारी ऋषि सुनक की है। अगर यह समझौता मूर्त रुप लेता है तो दोनों देशों के व्यापार, निवेश और तकनीकी क्षेत्र को गति मिलेगी। आज भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार तकरीबन चार लाख करोड़ रुपए का है।

ऐसे में प्रस्तावित ट्रेड समझौता मूर्त लेता है तो दोनों देशों को टैक्स में बड़ी राहत मिलेगी। मुक्त व्यापार करार के तहत व्यापार में दो भागीदार देश आपसी व्यापार वाले उत्पादों पर आयात शुल्क में अधिकतम कटौती करते हैं जिसका फायदा दोनों देशों को मिलता है। चूंकि भारत ने हमेशा से ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के देशों के साथ व्यापार के मामले में एक ‘मुख्य द्वार’ के रुप में देखा है ऐसे में मुक्त व्यापार समझौता न केवल ब्रिटेन बल्कि भारत के लिए भी फायदे का सौदा होगा। ब्रिटेन ने 2004 में भारत के साथ एक रणनीतिक साझेदारी शुरु की थी।

इस रणनीतिक साझेदारी के तहत ब्रिटेन आतंकवाद, परमाणु गतिविधियों और नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत के साथ है। 2021 में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने वर्चुअल शिखर वार्ता के जरिए 10 वर्षों का महत्वकांक्षी रोडमैप लाॅच कर दोनों देशों के रिश्ते को एक नया आयाम दिया। दोनों प्रधानमंत्रियों द्वारा भरोसा जताया जा चुका है कि 2030 तक आपसी संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में बदलना उनकी शीर्ष प्राथमिकता में होगा। दोनों नेता स्वास्थ्य, शिक्षा में सहयोग के साथ मौजूदा द्विपक्षीय कारोबार को दोगुना करने और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर तालमेल बढ़ाने पर भी सहमति जता चुके हैं।

अब यह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक पर निर्भर करता है कि वह आपसी संबंधों की नई रणनीतिक साझेदारी को कितनी गंभीरता से लेते हैं। अगर सुनक ट्रेड समझौते के साथ-साथ माइग्रेशन और मोबिलिटी पार्टनरशिप समझौते पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा देते हैं तो भारत के प्रशिक्षित लोगों को ब्रिटेन जाने की राह और आसान हो जाएगा। देखें तो बदलते वैश्विक परिदृश्य में आतंकवाद से निपटने, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का समर्थन, पर्यावरण, रक्षा उपकरणों व अत्याधुनिक हथियारों का साझा उत्पादन तथा अफगानिस्तान के हालात जैसे कई अन्य मसलों पर दोनों देशों की सोच एक जैसी है। कई वैश्विक मंचों के जरिए दोनों देश इन मसलो पर अपने-अपने विचार साझा कर चुके हैं।

अगर फ्री ट्रेड समझौते पर दोनों देश आगे बढ़ते हैं तो दोनों देशों के आर्थिक भागीदारी को नई ऊंचाई मिलेगी। इससे द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि होगी और बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलेगा। फ्री ट्रेड समझौते पर ब्रिटेन का भारत के साथ आना इसलिए भी उम्मीद जगाने वाला है कि आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। भारत ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश बन चुका है। वर्ष 2030 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन सकता है।

एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक अर्थव्यवस्था के आकार में भारत 2027 में जर्मनी से और 2030 में जापान से आगे निकल जाएगा। ऐसे में ब्र्रिटेन का भारत के साथ ट्रेड डील को लेकर गंभीर होना लाजिमी है। 2004 के बाद से देखें तो दोनों देशों के मध्य व्यापार एवं पूंजी निवेश में तीव्रता आयी है। जहां तक द्विपक्षीय व्यापार का सवाल है तो ब्रिटेन भारत का विश्व में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी देश है। दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार जो 2018-19 में 16.7 अरब डाॅलर, 2019-20 में 15.5 अरब डाॅलर था वह अब बढ़कर 40 अरब डाॅलर यानी चार लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच चुका है।

इससे दोनों देशों के तकरीबन 5 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला है। ब्रिटेन में लगभग 800 से अधिक भारतीय कंपनियां हैं जो आईटी क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। टाटा इंग्लैंड में नौकरियां उपलब्ध कराने वाली सबसे बड़ी भारतीय कंपनी है। भारतीय कंपनियों का विदेशों में कुल निवेश 85 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के पार है। दूसरी ओर ब्रिटेन से भारत के बीपीओ क्षेत्र में आउटसोर्सिंग का काम भी बहुत ज्यादा आ रहा है। आउटसोर्सिंग दोनों देशों के लिए लाभप्रद है। एक ओर यह ब्रिटिश कंपनियों की लागत कम करता है वहीं लाखों शिक्षित भारतीयों के लिए रोजगार का अवसर उपलब्ध कराता है। ब्रिटेन में बड़ी तादाद में अनिवासी भारतीयों की मौजूदगी है।

यह संख्या लगभग 2 मिलियन तक पहुंच चुकी है। भारतीय लोग दुनिया के अन्य देशों की तरह ब्रिटेन की आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था को भी शानदार गति दे रहे हैं। पिछले दो दशकों में आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने कई तरह की पहल की है। नतीजा ब्रिटेन में परियोजनाओं की संख्या के मामले में भारत दूसरे सबसे बड़े निवेशकर्ता देश के रुप में उभरा है। दूसरी ओर ब्रिटेन भी वर्तमान भारत में कुल पूंजीनिवेश करने वाले देशों में बढ़त बनाए हुए है। आयात-निर्यात पर नजर डालें तो भारत मुख्य रुप से ब्रिटेन को तैयार माल एवं कृषि एव इससे संबंधित उत्पादों का निर्यात करता है।

इसके अतिरिक्त वह अन्य सामान मसलन तैयार वस्त्र, इंजीनियरिंग सामान, चमड़े के वस्त्र व वस्तुएं, रसायन, सोने के आभुषण, जूते-चप्पल, समुद्री उत्पाद, चावल, खेल का सामान, चाय, ग्रेनाइट, जूट, दवाईयां इत्यादि का भी निर्यात करता है। जहां तक आयात का सवाल है तो भारत इंग्लैंड से मुख्यतः पूंजीगत सामान, निर्यात संबंधी वस्तुएं, तैयारशुदा माल, कच्चा माल व इससे संबंधित अन्य सामानों का आयात करता है। दोनों देश वैश्विक निर्धनता की समाप्ति, वैश्विक संगठनों में सुधार और आतंकवाद के खात्मा के लिए परस्पर मिलकर काम कर रहे हैं। भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में पाकिस्तान ब्रिटेन के निशाने पर है।

पाकिस्तान पर भारत की एयर स्ट्राइक का ब्रिटेन समर्थन कर चुका है। दोनों देश संयुक्त राष्ट्र ,सुरक्षा परिषद में सुधारों पर भी सहमत हैं, जिससे कि 21 वीं शताब्दी की वास्तविकताओं को अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिबिम्बित किया जा सके। इसके अलावा दोनों देश अफगानिस्तान में स्थायित्व लाने और इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष जैसे अन्य विवादित मसलों के समाधान में भी एक जैसे विचार रखते हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ी है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने 2015 में ब्रिटेन की यात्रा कर दोनों देशों के संबंधों को एक नई ऊंचाई दी। तब उनकी तीन दिवसीय ब्रिटेन यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 9 अरब डाॅलर मूल्य के सौदे हुए।

इसमें असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के अलावा वित्त, रक्षा, परमाणु उर्जा, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य एवं साइबर सुरक्षा पर भी सहमति बनी। तब दोनों देशों ने रेलवे रुपया बांड जारी करने के अलावा आतंकवाद के मसले पर समान सहमति जतायी। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र संघ आतंकवाद की परिभाषा तय करे। तब इंडिया-यूके सीईओ फोरम में अपनी सरकार की ओर से उठाए गए आर्थिक सुधारों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिटिश कंपनियों को भारत के तमाम सेक्टरों में पैसा लगाने के लिए आह्नान किया।

अच्छी बात है कि दोनों देश भरोसे की कसौटी पर खरा हैं और कोविड-19 के बुरे दौर में भी एकदूसरे का हाथ पकड़े रहे। उम्मीद है कि दोनों देश एफटीए की राह पर आगे बढ़ आर्थिक-सामरिक संबंधों को मिठास से भर देंगे।     

अरविंद जयतिलक

(लेखक/स्तंभकार)

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