इतना सरल बोध पाठ….
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जैन धर्म की मान्यता के अनुसार आपकी आत्मा ही सत्प्रवृत्ति में आपकी मित्र और दुष्प्रवृत्ति में लगी आत्मा आपकी दुश्मन है। सत्य समत्व अहिंसा विनय पुरुषार्थ निष्ठाश्रद्धा वीतरागता ही आप को परमात्मा बना सकती है। माना की वर्तमान में भौतिकता की चकाचौंध ने हम सबको अंधा बना दिया हैं ।जो वजूद संस्कार के थे उन्हें बेगाना बना दिया है ।
जो कभी अपना था ही नही उसे सबसे प्रिय बना दिया हैं । ये पदार्थ सुख और पैसे की माया ने हर जगह अपना आधिपत्य जमा लिया हैं ।परिभाषा, प्रगति ,विकास ,सामर्थ्य और अमीरी की पहचान बना दिया हैं । सुविधा और पैसों के परिधान ने प्यार और वात्सल्य को अपने में समा लिया है । जिसका अंजाम आज ये हो गया की अपनों को पराया बना दिया हैं । अब प्यार नहीं ,पैसों से आदमी की औक़ात को पहचान बना दिया हैं ।
दिल नहीं अब रिश्तों को अलग ही व्यापार बना दिया हैं ।प्यार इंसान से नहीं उसको ख़ुदगर्ज़ी और ज़रूरत अनुसार घटा बढ़ा दिया है । कभी अपना व कभी पराया बना दिया हैं । अब इस संसार को ज़रूरतों के व्यापार का जहान बना दिया हैं । आम आदमी सही से कहाँ सोचता हैं । वह अगर डूबे तो समंदर को दोष देता हैं । मंजिल न मिले तो अपने मुकद्दर को दोष देता हैं । खुद तो संभल कर चल नहीं सकता जब ठोकर लगती है तो पत्थर को दोष देता हैं। वह दुःख का दोषी भगवान को ठहराने में ज़रा भी देर नही लगाता। पर वह क्या जाने की इस सुख-दुःख की कर्ता स्वयं आत्मा है।
वही भोक्ता है। वही सुख-दुःख का अंत करनेवाला है और वही सुख-दुःख को देने वाला है। यह निश्चय नय का अभिमत है। उसके लिए तो एक भक्त का अपने भगवान से वैसा ही रिश्ता हैं जैसा दीये का बाती से, सीप का मोती से, सुर्य का ज्योति से आदि – आदि ।इसलिए दुःख में ख़ाली तक़दीर का रोना रोते हुए उस भगवान को कोसता हैं। दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोय ।जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय।इसलिये करें हम चिन्तन-मनन थोड़ा गहन।सुलग जाए अगर आत्मा की ज्योति की एक छोटी सी भी चिंगारी तो प्रसन्न हो जाए मन।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान)