भारतीय राजनीति के व्याकरण को बदल कांशीराम ने दी दलित राजनीति को नई पहचान
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बहुजन समाज दिवस पर विशेष……
सामाजिक चेतना के महानायक और बामसेफ, डीएस फोर और बीएसपी के संस्थापक मान्यवर कांशीराम का अमेठी की राजनीति से गहरा रिश्ता रहा है।
1989 में उन्होंने अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़कर उत्तर प्रदेश की राजनीति की राजनीति को बदलने का एक बड़ा संदेश दिया था। रायपुर फुलवारी में दलित बस्ती में एक छोटे से कमरे में कथरी पर एक रात बिताई थी और रामलीला मैदान में एक बड़ी रैली करके अपने कैडर को संगठित किया था। कांशीराम जी ने समर्थकों को अपना जन्मदिन बहुजन समाज दिवस के रूप में मनाने का संदेश दिया था।
भारत वर्ष में यदि संघर्षो के बल पर कोई राजनीति के एवरेस्ट पर पहुंचा है तो वे केवल मान्यवर कांशीराम हैं, जिन्होंने हमेशा अपनी शर्तों पर राजनीति की और उनके राजनीति के सभी प्रयोग सफल रहे। उन्होंने बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के आत्मसम्मान और स्वाभिमान के मूवमेंट को आगे ही नहीं बढ़ाया, बल्कि एक निर्णायक स्थिति प्रदान करते हुए बहुजन समाज को हुक्मरान समाज की लाइन में खड़ा कर दिया।
छोटे साधनों का बड़े पैमाने पर प्रयोग कर भारतीय राजनीति के व्याकरण को बदलने वाले मान्यवर कांशीराम जी आज देश की दलित राजनीति की पहचान बने हुए हैं।इस महान राजनीतिज्ञ विचारक को आज पूरा देश याद कर रहा है।
15 मार्च 1934 को पंजाब प्रांत के रोपड़ जिले के खवासपुर गांव में हरी सिंह और विमला कौर के यहां जन्मे कांशीराम का बचपन और शिक्षा काल बहुत ही सुन्दर बीता।अच्छी पढ़ाई लिखाई करके उन्होंने बी एस सी की उपाधि प्राप्त की और पुणे के एक संस्थान में सहायक वैज्ञानिक पद पर तैनात हुए। अम्बेडकर जयंती के अवकाश को लेकर संस्थान प्रमुख से हुआ संवाद -विवाद और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी दीना माना के साथ कांशीराम साहब का जीवन बदल दिया।
डॉ.अम्बेडकर के कारवें को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने सामाजिक संघर्ष को ही अपने जीवन का ओढ़ना और बिछौना बना लिया।हक अधिकार से वंचित लोगों को राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति के लिए एक जुट किया।कांशीराम साहब अपनी रैलियों की तैयारी खुद करते थे, खुद मुख्य अतिथि भी होते थे।उन्होंने 6743 जातियों में बंटे समाज को एक जुट करने के लिए बहुजन समाज की संकल्पना विकसित की और अपने जीवनकाल में दो हजार जातियों को बहुजन समाज पार्टी के नीले बैनर के नीचे संगठित करने में सफल भी हुए।
14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी बनाई तो कभी चैन से नहीं बैठे। एक वोट-एक नोट के साथ राजनीति के लिए पैसे का इंतजाम खुद किया। कांशीराम साहब जैसा राजनीतिक जीवन शायद ही किसी ने जिया हो, मूवमेंट को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने लखनऊ में एक बार भूख मिटाने के लिए एक कार्यकर्ता के घर दो दिन की सूखी रोटी पानी में भिगो कर खाई। ठंड से बचने के लिए श्मसान घाट से दस रुपए का कोट खरीद कर पहन लिया। कभी अपने पहनने के लिए कपड़े नहीं खरीदे।
वर्कर ही चंदे के पैसे से उनके लिए सारा इंतजाम करते थे। बहुजन संगठक नामक साप्ताहिक मुख पत्र का सम्पादन भी उन्होंने स्वयं किया। उनकी लिखी हुई चमचा एज, पुस्तक आज भी भारतीय राजनीति में प्रासंगिक है।बाबा साहब डॉ अम्बेडकर ने अपने अनुयायियों को कांग्रेस का पच्चीस पैसे का भी सदस्य न बनने का संदेश दिया था, कांशीराम साहब ने 1984में बसपा खड़ी करने के बाद सबसे पहले कांग्रेस को राज्यों की सत्ता से दूर करने का संकल्प लिया और काफी हद तक इसमें कामयाब रहे।
बसपा के मिशन को कमजोर करने के लिए कांग्रेस ने बामसेफ को रजिस्टर्ड कराया,कई दलित नेताओं को लालच देकर अपने पाले में किया, बसपा के अभ्युदय और विकास काल में कांग्रेस और भाजपा ने अपने कई दलित नेताओं को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेजा, परंतु बसपा को कमजोर करने में सफल नहीं हुए। तमाम पोलिटिकल एक्सीडेंट झेलते हुए कांशीराम साहब तीन जून 1995 को दस साल की पार्टी बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में सफल हो गए।
संसद की शेरनी के रूप में पहचान बना चुकी बहन मायावती उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी। 15 दिसम्बर 2001 को लक्ष्मण मेला मैदान लखनऊ में आयोजित एक विशाल रैली में मान्यवर कांशीराम ने बहन मायावती को सामाजिक परिवर्तन के मूवमेंट का उत्तराधिकारी घोषित किया। लम्बी बीमारी के कारण कांशीराम साहब की मौत के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को लेकर काफी समय तक संघर्ष हुआ, तमाम तरह की राजनीतिक बयान बाजी भी हुई।
कांशीराम साहब की विरासत बहन मायावती के पास है।वे उत्तर प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री के रूप में शासन व्यवस्था को संचालित कर चुकी हैं। शासन व्यवस्था के बल पर ही उन्हें आयरन लेडी की पहचान हासिल हुई है।
वीरेंद्र यादव (लेखक, सामाजिक चिंतक, स्तंभकार)
लेख में लेखक के अपने विचार हैं