Corruption : पाकर गांव में जल जीवन मिशन की अनियमितताएं, परेशान ग्रामीणों ने उठाई आवाज़
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विशेष रिपोर्ट – रवि नाथ दीक्षित
अमेठी, उप्र ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने देश के हर घर तक शुद्ध पेयजल पहुंचाने के लिए ऐतिहासिक योजना जल जीवन मिशन की शुरुआत की थी। इस महत्वाकांक्षी और जनहितकारी योजना का मुख्य उद्देश्य था – हर घर नल, हर घर जल। ग्रामीण इलाकों में जहां वर्षों से लोग दूषित और किल्लत भरे पानी पर निर्भर थे, वहां इस योजना ने उम्मीद की नई किरण जगाई। सरकार ने बड़े बजट और पारदर्शिता के दावों के साथ इस योजना को आगे बढ़ाया और देशभर में लाखों घरों तक नल का जल पहुंचाया।
लेकिन अफसोस की बात यह है कि जमीनी स्तर पर कई जगह जिम्मेदार विभाग और ठेकेदार इस योजना की असल भावना को ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अमेठी तहसील तिलोई की ग्राम सभा पाकर गांव इसका ताजा उदाहरण है, जहां जल जीवन मिशन के अंतर्गत लगाए गए नल और पाइपलाइन आज ग्रामीणों के लिए राहत नहीं बल्कि मुसीबत का कारण बन चुके हैं।
समय पर पानी की आपूर्ति नहीं
गांव के लोगों का आरोप है कि यहां पानी की सप्लाई नियमित नहीं होती। योजना का उद्देश्य था कि प्रत्येक घर में पर्याप्त मात्रा में शुद्ध पानी समय पर उपलब्ध कराया जाए, ताकि किसी परिवार को पानी की परेशानी न झेलनी पड़े। लेकिन हकीकत यह है कि पाकर गांव में महज 10 मिनट तक ही पानी सप्लाई किया जाता है और वह भी बिना किसी निश्चित समय के।
ग्रामीणों का कहना है कि ऑपरेटर की मनमानी के चलते जब चाहे नल खोल दिया जाता है और जब चाहे बंद कर दिया जाता है। कई बार तो लोग नल पर घंटों इंतजार करते हैं और अचानक बंद होने से उन्हें निराशा हाथ लगती है। 10 मिनट से अधिक समय तक पानी की आपूर्ति यहां कभी नहीं की गई।
गढ्ढे बने दुर्घटना का कारण
इतना ही नहीं, जल जीवन मिशन के तहत गांव में खोदे गए गढ्ढों की मरम्मत अब तक नहीं हो पाई है। अधूरी खुदाई और बिना मिट्टी भरे गढ्ढे आज खतरनाक रूप ले चुके हैं। ग्रामीण बताते हैं कि आए दिन मोटरसाइकिल और अन्य वाहन इन गढ्ढों की वजह से फिसलते और दुर्घटनाग्रस्त होते हैं। छोटे बच्चे और बुजुर्ग इन गढ्ढों के कारण अक्सर चोटिल हो जाते हैं।
गांव में रहने वाले लोग कहते हैं कि कई बार इस समस्या को लेकर उच्चाधिकारियों से शिकायत की गई, लेकिन न तो कोई स्थाई समाधान मिला और न ही जिम्मेदारों पर कार्रवाई हुई।
ऑपरेटर की लापरवाही पर सवाल
ग्राम सभा पाकर में तैनात जल जीवन मिशन का ऑपरेटर भी ग्रामीणों के निशाने पर है। ग्रामीणों का साफ कहना है कि ऑपरेटर पूरी तरह से मनमानी करता है। समय पर पानी न देना, पर्याप्त समय तक सप्लाई न करना और शिकायतों पर ध्यान न देना उसकी आदत बन गई है। यहां तक कि गांव के लोग जब समस्या उठाते हैं, तो उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है।
यह स्थिति सीधे-सीधे सरकार की छवि को धूमिल कर रही है। केंद्र और प्रदेश सरकार जहां इस योजना को लेकर अपनी उपलब्धियां गिना रही है, वहीं गांव स्तर पर तैनात ऐसे लापरवाह कर्मचारी और ऑपरेटर सरकार की मंशा को बदनाम करने में जुटे हैं।
सरकार की मंशा और हकीकत का फर्क
गौरतलब है कि जल जीवन मिशन की शुरुआत इस सोच के साथ हुई थी कि कोई भी परिवार दूषित पानी पीने को मजबूर न हो, कोई भी बच्चा गंदे पानी से फैलने वाली बीमारियों की चपेट में न आए और हर घर तक नल के जरिए स्वच्छ जल पहुंचे। लेकिन पाकर गांव जैसे उदाहरण यह साबित करते हैं कि अच्छे इरादों और बड़े बजट के बावजूद यदि निगरानी मजबूत न हो तो योजनाएं कागजों पर ही सिमटकर रह जाती हैं।
यहां ग्रामीण मजबूर होकर फिर से पुराने तरीके से हैंडपंप और कुओं पर निर्भर हो रहे हैं। इस कारण से योजना का वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा।
कार्रवाई की मांग
ग्रामीणों की मांग है कि जल जीवन मिशन की जिम्मेदारी संभाल रहे विभाग और अधिकारी तत्काल पाकर गांव की स्थिति का संज्ञान लें। अधूरे गढ्ढों को तुरंत भरवाया जाए, सप्लाई का समय तय किया जाए और कम से कम आधे घंटे तक पानी उपलब्ध कराया जाए। साथ ही ऑपरेटर की कार्यप्रणाली की जांच हो और यदि लापरवाही साबित होती है तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए।
पाकर गांव की स्थिति एक चेतावनी है कि यदि योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं होगी तो सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएं भी बदनाम हो सकती हैं। केंद्र और प्रदेश सरकार की यह योजना निस्संदेह क्रांतिकारी है और इसे बधाई दी जानी चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि लापरवाह और मनमानी करने वाले कर्मचारियों पर नकेल कसी जाए।