कागज पर खोदकर तालाब,निकाल लिए लाखों रुपये !
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लखनऊ ।
यह सुनकर अजीब लगता है कि कागज पर कैसे तालाब खुलेगा और उसका पेमेंट भी हो जाएगा लेकिन यह सब संभव है I घोटाले बाजों के लिए कुछ भी असंभव नहीं है I मनरेगा के तहत किए जा रहे विकास कार्यों में आए दिन नए कारनामे उजागर हो रहे हैं I भ्रष्टाचार में डूबा मनरेगा योजना विकास के नाम पर सिर्फ छलावा साबित हो रही है I इसी कड़ी में गोंडा में भी एक नया कारनामा उजागर हुआ है I जिसमें कागज पर ही तालाब खोदकर लाखों रुपए हड़प लेने का मामला प्रकाश में आया है I मौके पर न तो तालाब है और न पानी। इसके बावजूद कागजों में गड्ढा खोदकर करीब 2.75 लाख भुगतान कर लिया गया है। हलधरमऊ ब्लाक के परसागोडरी ग्राम पंचायत में यह कारनामा मनरेगा योजना के तहत किया गया है। आरोप है कि ब्लाक के लेखाकार की मिलीभगत से पूरी हुई भुगतान प्रक्रिया यहां पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
मामले की पोल पट्टी खुलने से क्षेत्र में हडकंप मचा हुआ है। वहीं बीडीओ राजेन्द्र यादव का कहना है कि यह प्रकरण उनकी जानकारी में नहीं हैं। न ही उनके कार्यकाल का मामला है। वर्ष 2020-21 में इस ग्राम पंचायत में अनुमानित लागत 3, 99 422 लाख की लागत से अभिलेखों में एक तालाब का निर्माण कराया गया है। जिसे गोण्डा – लखनऊ मार्ग के निकट गुरुपुरवा में लल्लन के खेत के बगल बताया है। इसके निर्माण में तीन किस्तो में 275196 रुपये भुगतान भी कर दिया गया। लेकिन ग्रामीण बताते हैं कि मौके पर आसपास की चौहद्दी तो छोडिए, दो – तीन किमी के दायरे में कोई तालाब नहीं है। खास है कि जिस गाटा संख्या पर तालाब का निर्माण बताया गया है। वहां कोई तालाब ग्राम पंचायत की भूमि पर दर्ज ही नहीं है। इस बड़े फर्जीवाड़े से लेखाकार की भूमिका के साथ भुगतान प्रक्रिया के पूरे सिस्टम पर भी सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि एक लेखाकार ने बिना तकनीकी सहायक की रिपोर्ट के मनरेगा योजना के तहत आवंटित धनराशि का बंदरबांट कर लिया। तकनीकी सहायक चन्द्रभाल मिश्रा का कहना है कि उन्होंने तालाब के निर्माण के लिए इस्टीमेट तैयार किया था लेकिन मौकै पर तालाब नहीं मिलने पर उसकी माप पुस्तिका (एमबी ) नहीं की थी।यह तो सिर्फ बानगी भर है प्रदेश भर में ना जाने अरबों रुपए सिर्फ कागजों पर ही विकास करके हड़प कर लिए गए हैं लेकिन नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों का प्रतिशत बँधा होने के कारण कोई कार्यवाही नहीं हो रही है I जब अधिक हो हल्ला होता है, प्रदेश स्तरीय ऑडिट की टीम मौके पर पहुंची है ,जांच करती है I लेकिन बाद में फिर मामला टांय टांय फिश हो जाता है I क्योंकि वह भी जांच के नाम वसूली करने में पीछे नहीं रहते हैं I