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Flood in Delhi : दिल्ली में यमुना खतरे के निशान से ऊपर, हालात गंभीर

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विशेष रिपोर्ट – रवि नाथ दीक्षित

नई दिल्ली।

दिल्ली में यमुना नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और बीते तीन दिनों से यह खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। बुधवार शाम तक इसका स्तर 205.33 मीटर के खतरनाक स्तर से लगभग दो मीटर ऊपर पहुंच गया। नतीजा यह हुआ कि पूरे खादर क्षेत्र में पानी भर गया और हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना पड़ा।

यमुना बाजार में आठ फुट तक पानी घुसने से वहां बने राहत शिविर जलमग्न हो गए। प्रशासन को तुरंत वहां रह रहे लोगों को हटाना पड़ा। पानी रिंग रोड तक पहुंचने लगा है, जिसके चलते राजघाट से कश्मीरी गेट मार्ग पर यातायात रोक दिया गया। निगम बोध घाट को भी बंद करना पड़ा।

हथनी कुंड से लगातार पानी का दबाव

हरियाणा के हथनी कुंड बैराज से पानी छोड़े जाने का सिलसिला जारी है। बुधवार को यहां से प्रति घंटे 1.75 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ा गया। इससे हालात फिलहाल सामान्य होने की संभावना नहीं है। सोमवार को अधिकतम 3.29 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था। मंगलवार को यह आंकड़ा दो लाख क्यूसेक तक रहा।

यमुना पर बने लोहा पुल पर असर

यमुना के उफान का सीधा असर लोहा पुल पर पड़ा। मंगलवार शाम तक नदी का स्तर 206 मीटर पहुंचने पर पुल से वाहनों की आवाजाही रोक दी गई। बुधवार सुबह साढ़े छह बजे से ट्रेनों की आवाजाही भी रोकनी पड़ी।बुधवार शाम सात बजे जलस्तर 207.37 मीटर तक पहुंच गया। इतना ऊंचा जलस्तर इससे पहले केवल 1978 और 2023 में ही दर्ज किया गया था।

प्रभावित क्षेत्र और जनता की परेशानी

नदी का पानी घोंडा विधानसभा क्षेत्र के पुराना उस्मानपुर, पुराना गढ़ी मांडू और नानकसर तक फैल गया। यहां के लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया। शाम तक यमुना बाजार के राहत शिविर तक पानी पहुंच गया। मोनेस्ट्री बाजार से पानी निकलकर रिंग रोड तक आ गया।

यातायात पुलिस ने एहतियात के तौर पर कई सड़कों को बंद किया—

राजघाट से कश्मीरी गेट मार्ग

वजीराबाद–सिग्नेचर ब्रिज

चंदगी राम अखाड़ा–आईपी कॉलेज रेड लाइट

 

बाढ़ की चपेट में दिल्ली के छह जिले

यमुना का बढ़ता पानी दिल्ली के छह जिलों में बाढ़ का खतरा खड़ा कर रहा है—उत्तर, उत्तर पूर्व, शाहदरा, पूर्व, मध्य और दक्षिण-पूर्व। इनमे से दक्षिण-पूर्व, मध्य और पूर्व जिलों में एनडीआरएफ की टीमें तैनात हैं। अब तक करीब 15 हजार लोग बेघर हो चुके हैं। इनमें से 10 हजार से ज्यादा लोगों को राहत शिविरों में रखा गया है। कई परिवार विकास मार्ग और अन्य स्थानों पर टेंट डालकर गुजारा कर रहे हैं।

दिल्ली प्रशासन की तैयारियां

सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग की ओर से बताया गया कि हथनी कुंड से लगातार पानी छोड़े जाने के चलते वजीराबाद बैराज से भी अतिरिक्त पानी निकालना पड़ रहा है। लोहा पुल पर जलस्तर बढ़ने का यही बड़ा कारण है।

प्रशासन ने अब तक—

38 स्थानों पर राहत शिविर स्थापित किए हैं।

27 जगहों पर टेंट लगाए हैं।

कुल 522 टेंट उपलब्ध कराए गए हैं।

13 स्थायी आश्रय स्थल बनाए गए हैं।

यमुना के जल में ऐतिहासिक रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी

1978: 7 लाख क्यूसेक पानी, स्तर 207.49 मीटर

2010: 7.44 लाख क्यूसेक पानी, स्तर 207.11 मीटर

2013: 8.06 लाख क्यूसेक पानी, स्तर 207.32 मीटर

11 जुलाई 2023: 3.59 लाख क्यूसेक पानी, स्तर 208.66 मीटर (रिकॉर्ड)

चेतावनी स्तर: 204.50 मीटर

खतरे का स्तर: 205.33 मीटर

निचले क्षेत्र खाली कराने की सीमा: 206 मीटर

अब तक का उच्चतम स्तर: 208.66 मीटर (13 जुलाई 2023)

बुधवार को लोहा पुल के पास जलस्तर

सुबह 5 बजे : 206.74 मीटर

सुबह 7 बजे : 206.80 मीटर

सुबह 9 बजे : 206.85 मीटर

पूर्वाह्न 11 बजे : 206.97 मीटर

दोपहर 1 बजे : 207 मीटर

अपराह्न 3 बजे : 207.09 मीटर

शाम 5 बजे : 207.27 मीटर

शाम 7 बजे : 207.37 मीटर

यमुना का हर साल खतरे के निशान से ऊपर जाना अब दिल्ली के लिए एक सामान्य स्थिति बन चुकी है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि बीते एक दशक में नदी के जलस्तर में असामान्य तेजी आई है। इसका सबसे बड़ा कारण है—

हथनी कुंड से छोड़ा जाने वाला अतिरिक्त पानी : मानसून में बारिश के बढ़ते दबाव के कारण हरियाणा के बैराज से अचानक बड़ी मात्रा में पानी छोड़ा जाता है, जो सीधे दिल्ली को प्रभावित करता है।

नदी किनारे अतिक्रमण और बस्तियां : दिल्ली के खादर इलाके में लाखों लोग रहते हैं। हर बार पानी बढ़ने पर सबसे पहले इन्हीं बस्तियों को खाली कराना पड़ता है।

शहरीकरण और जल निकासी की कमी : राजधानी के तेजी से फैलते कंक्रीट जंगल ने जलभराव और बाढ़ के हालात को और विकराल बनाया है।

जलवायु परिवर्तन का असर : अनियमित और तीव्र बारिश की घटनाएं अब अधिक सामान्य हो गई हैं। इसका सीधा असर यमुना जैसे नदियों के प्रवाह पर दिखता है।

अगर समय रहते दीर्घकालिक योजना नहीं बनाई गई तो भविष्य में यमुना का यह उफान दिल्ली के लिए और भी गंभीर चुनौती बन सकता है। स्थायी समाधान तभी संभव है जब नदी के किनारे के अतिक्रमण हटाए जाएं, बैराजों से पानी छोड़ने की एक पारदर्शी और नियंत्रित व्यवस्था बने, और राहत शिविरों की जगह स्थायी पुनर्वास योजना पर काम किया जाए।

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