श्री रामकृष्ण का भाव ग्रहण कर भक्त भवबंधन से मुक्त हो जाएंगे – स्वामी मुक्तिनाथानंद
1 min readREPORT BY AMIT CHAWLA
LUCKNOW NEWS।
शुक्रवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि श्री रामकृष्ण ने कहा, “जो यहां पर आएंगे उनका और जन्म नहीं होगा।” यहां पर आने का क्या तात्पर्य है इसके बारे में श्री रामकृष्ण के पार्षद स्वामी शिवानंद जी को पूछा गया था।
रामकृष्ण मठ मुम्बई में प्रवास काल के समय दिनांक 27 जनवरी 1927 ई. में जब रामकृष्ण मठ एवं रामकृष्ण मिशन के द्वितीय संघाध्यक्ष स्वामी शिवानंद महाराज यानि महापुरुष महाराज रात्रिकालीन आहार के उपरांत अपने कमरे में बैठे थे तब उनके पास आए हुए साधु ब्रह्मचारी वृन्द से एक संन्यासी ने उनको पूछा था, “सुना जाता है श्री रामकृष्ण कहा करते थे जो यहां पर आएंगे उन लोग का यह अंतिम जन्म है। क्या आप लोग उनके मुंह से यह बात सुना है?” यह सुनकर महापुरुष महाराज थोड़ा बहुत मौन रहे थे एवं उसके बाद बोले “यह बात तो किताब में प्रकाशित हो गया है।”
तब उन संन्यासी ने पुनः पूछा, “इस बात का क्या अर्थ है? क्या जो व्यक्ति श्री रामकृष्ण के दर्शन किए थे एवं उनसे कृपा प्राप्त किए हैं वही मुक्त होंगे? या जो उनके प्रति श्रद्धा संपन्न है, यह सब भी मुक्ति प्राप्त करेंगे?” इसके उत्तर में महापुरुष महाराज बोले, “नहीं, सब व्यक्ति को मुक्ति लाभ होगा जो भी श्री रामकृष्ण के प्रति श्रद्धा संपन्न है। वो उनके दर्शन किए हो या न किए हो जो उनके प्रति आंतरिक भक्ति भाव संपन्न हैं, उनका यह अंतिम जन्म है, वो सब मुक्त हो जाएंगे लेकिन आत्मसमर्पण जरूरी है।”
स्वामी जी ने बताया कि अन्य एक दिन दिनांक 18 मार्च 1932 को जब स्वामी शिवानंद जी वैलूर मठ में अपने कमरे में बैठे थे तब भुवनेश्वर से आए हुए एक भक्त का चिट्ठी पाठ हो रहा था उसमें लिखा हुआ था कि स्वामी ब्रह्मानंद जी के मंत्र शिष्य हरि महांति जी उनके शरीर छोड़ने के समय ब्रह्मानंद जी का दर्शन किए थे। उसमें उल्लिखित है कि जीवन के अंतिम लग्न में हरि महांति जी भुवनेश्वर में उनके गुरु श्री रामकृष्ण के मानस संतान स्वामी ब्रह्मानंद जी का दर्शन किया एवं शारीरिक अस्वस्थता के कारण उठकर उनको अभिवादन करने में असमर्थ होने पर उनके पास में अवस्थित किसी को बोला कि पूजनीय महाराज मुझे देने के लिए एक पुष्प लाए हैं वह लाकर मुझे प्रदान करो।
वहां पर तो किसी को कोई दिखाई नहीं पड़ा! लेकिन हरि महांति जी बोले, “क्या आश्चर्य है! महाराज यहां पर फूल लेकर खड़े हैं लेकिन तुम लोग उनका दर्शन करने में असमर्थ हो!” यह सुनकर महापुरुष महाराज बहुत ही भक्ति भाव से अपलूत हो गए और उन्होंने कहा, “इस प्रकार जो श्री रामकृष्ण के अथवा उनके संतानगण के आश्रित है यह सब अंतिम समय में उनके गुरु अथवा श्री रामकृष्ण का दर्शन करते हुए अवश्य मोक्ष प्राप्त करेंगे।”
स्वामी मुक्तिनाथानंद ने यहां पर एक और घटना का उल्लेख किया। श्री रामकृष्ण के अंतरंग गृहस्थ भक्त श्री बलराम बसु के परलोक गमन 13 अप्रैल 1890 ई. में कोलकाता में निजी भवन में हुआ था। श्री बलराम बसु अत्यंत पीड़ित होकर जब लेटे हुए थे तब उनके अंतिम दिन में उनकी पत्नी श्रीमती कृष्ण भाविनी देवी जिनको श्री रामकृष्ण श्रीमति राधिकी के अष्ट सखी के अन्यतम प्रधान सखी रूप से चिह्नित किया, उन्होंने देखा कि आसमान में एक कृष्ण वर्ण मेघ घनीभूत होकर धीरे-धीरे उनके मकान के ऊपर अवस्थित हुआ एवं उसके भीतर से एक रथ से उतरकर श्री रामकृष्ण उनके एक मकान के छत पर पदार्पण किया।
श्री रामकृष्ण सीधा जहां पर बलराम बसु लेटे हुए थे वहां पर चले गए एवं बलराम बसु का हाथ पकड़कर पुनः छत में रखा हुआ वह रथ में सवार होकर अदृश्य हो गए। इसके साथ ही श्री बलराम बसु का प्राण त्याग हो गया। इससे प्रतीत होता है कि श्री रामकृष्ण स्वयं उनके आश्रित भक्तगण को अंतिम समय में अपने स्वधाम में ले जाते हैं एवं उनका पुनर्जन्म नहीं होता।
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया अतएव हमें भगवान के चरणों में आंतरिक प्रार्थना करना चाहिए ताकि हम भी उनके चरणों में शुद्धाभक्ति लाभ करके इस जीवन में उनको प्रत्यक्ष दर्शन कर सकें एवं जीवन के अंत में उनके साथ बराबर रहते हुए चिरमुक्ति लाभ करें।