Lok Dastak

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एक ही नाम से त्यौहार, लोकनृत्य और लोकगीत….

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PRESENTED BY BABITA JAIN KOMAL 

NALBARI,ASSAM I 

जी हाँ, यह नाम है बिहू, और नाम भी ऐसा जिससे एक नहीं, दो नहीं वर्ष भर में तीन त्यौहार मनाए जाए। भारतीय संस्कृति में कृषि एवं नववर्ष से जुड़े त्यौहारों की भरमार है। बसंत ऋतु का आगमन एवं विदाई दोनों ही हमारे यहाँ उत्साह की परिचायक है। प्रकृति के हरे भरे रंग को आत्मसात करने एवं दुल्हन सी सजी धरती को विशेष अनुभव दिलवाने असमवासी भी पूरे जोश के साथ बिहू मनाकर प्रकृति का साथ देते हैं।

जहाँ आजकल त्यौहार कुछ दिन में नहीं कुछ घंटों में सिमटकर रह गए हैं वहाँ लगातार एक महीने चलने वाला यह रंगाली बिहू त्यौहार, खास तो है ही। विशेष रूप से सात दिन तक मनाए जाना वाला, रंगों से सजा, मौज-मस्ती से भरा, गीत-नृत्य और मीठे पकवानों एवं उपहारों के सजा-धजा रंगाली बिहू त्यौहार पूरे असम की जान है।

किसी धर्म विशेष द्वारा बनाए जाने वाले त्यौहार सिमट जाते हैं पर जिन त्यौहारों को संस्कृति के आधार पर मनाया जाता है वे समृद्ध और विशाल हो जाते हैं। बढ़ते समय के साथ ये व्यापक हो जाते हैं। ऐसा ही है हमारा रंगाली बिहू। गोरू बिहू से शुरु हुआ यह त्यौहार, मानवीय जीवन में केवल गाय की महत्ता नहीं बताता है, वरन गाय को प्रतीक के रुप में इस्तेमाल करके कृषि और जानवरों के एक-दूसरे के पूरक होने की बात को स्वीकार करता है।

इस दिन हल्दी और उड़द की दाल के उबटन से गाय को नहलाया जाता है, लौकी और बैंगन इस मान्यता के साथ खिलाया जाता है कि वे साल भर स्वस्थ रहे। शाम के समय उन्हें नई रस्सी पहनाई जाती है, नए गामोछे (तौलिया जो असमिया संस्कृति में सम्मान का प्रतीक है) को बाँस के पंखे में लपेटकर हवा की जाती है मानो अब वर्ष भर के लिए आम आदमी पंखे का इस्तेमाल कर सकता है।

जड़ी बूटी जलाकर गाय के रहने के स्थान से मख्खी-मच्छर को भगाया जाता है। इस दिन चावल नहीं खाया जाता है, केवल दही चिवड़ा खाया जाता है। दूसरा दिन गोंसाई बिहू के रूप में मनाया जाता है, जिसके मायने ईश्वर के चरणों में खुद को समर्पित कर देने से हैं। कुछ लोग व्यक्तिगत मंदिर (गोंसाई मंदिर) में पूजा-अर्चना करके इसे मनाते हैं तो कुछ नामघर (सार्वजनिक मंदिर) में ईश्वर को नैवैध चढ़ाकर।

गाय और ईश्वर को याद करने के बाद ही तीसरा दिन मानव के लिए आता है जिसे मानुह बिहू कहा जाता है। इस दिन सभी लोग हल्दी के उबटन से नहाते हैं और नए कपड़े पहनकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं। अब शुरुआत होती है मौज-मस्ती और मिलने-मिलाने की।

कई तरह के खेल का आयोजन किया जाता है। चुंकि अंडे को नव-निर्माण की कड़ी के रूप में देखा जाता है इसलिए यहाँ अंडों का खेल विशेष रूप से खेला जाता है। इसके अतिरिक्त जानवरों की दौड़ आदि कई खेल खेले जाते हैं। एक-दूसरे को बिहुवान (असमिया गामोछा) उपहार में देना और नए वस्त्र पहनना इस उत्सव की खास विशेषता है।

बिहू लोकगीत और बिहू नृत्य के पर्यायवाची बिहू त्यौहार को यदि इन दोनों से अलग कर दे तो इसके कोई मायने ही नहीं बचेंगे। स्थायीय वाद्य यंत्रों की ताल पर जब हाथ, कलाई, कमर और पैरों के सामंजस्य पर चादर-मेखला पहनकर छोटी-बड़ी युवतियाँ नृत्य करती है तो लगता है स्वर्ग से अप्सराएँ उतर आई हो।

बिहू नृत्य को कड़ी प्रतिस्पर्धा वाला नृत्य माना जाता है क्योंकि जब इससे जुड़ी प्रतियोगिता होती है तब युवती को नृत्य के साथ गीत भी स्वयं गाना होता है। पारम्परिक वाद्य यंत्र गोगोना, ढोल, खोल, पेपा आदि से सूर ताल मिलाते हुए उसे दोनों काम एक साथ करने होते हैं।

किसान की खुशहाली से जुड़ा यह पर्व उन्हीं खाद्यानों से मिठाई मनाकर बनाया जाता है जो असम में बहुतायत से पाये जाते हैं। इस अवसर पर पीठा (चावल और नारियल से बना एक अति स्वादिष्ट पकवान) नारियल के लड्डू, तिल और गुड़ के लड्डू, नारियल का चिड़वा आदि हर्षोल्लास के साथ खाये जाते हैं।

गोरू बिहू, गोंसाई बिहू और मानुह बिहू के बाद के दिन क्रमशः तातार बिहू, नंगअहार बिहू, जीवाजंतुर बिहू के रूप में मनाए जाते हैं। इन दिनों में कुछ विषेष नहीं होता पर नृत्य और खेलकूद की मौज मस्ती बरकरार रहती है।पहले मोहल्ले या गांव के लोग आपस में मिलकर बिहू नृत्य का आयोजन किया करते थे। आजकल इसके लिए बड़े-बड़े पांडाल बनने लगे हैं जहाँ महीने भर तक बिहू का रंग दिखाई देता है।

समय के साथ समय की कमी हर एक उत्सव की ही तरह बिहू पर भी अखरती है। एक महीने तक सनातन से मनाया जा रहा पर्व भले अब सिमटकर कुछ दिन का रह गया हो किंतु असम में आज भी इसके रंग यूँ बिखरे पड़े हैं कि रंगाली बिहू के मौके पर हर दिल नृत्य और संगीतमय होकर अनायास कह उठता है-
“बिहू बिहू लागी से…….बिहू बिहू लागी से……”

वर्ष भर में मनाए जाने वाले तीन बिहू में से यह मात्र एक ही है।
जनवरी महीने में आने वाले भोगाली बिहू एवं कार्तिक महीने में आने वाले कंगाली बिहू के बारे में हम और भी बहुत कुछ धीरे-धीरे जानने का प्रयास करेंगे। आप सबको बिहू, बैशाखी और असमिया नववर्ष की ढेरों बधाई।
आप सब को एक बार फिर बिहू की ढेरों बधाई……..

असम की धरती को नमन….

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