Lok Dastak

Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi.Lok Dastak

CAA पर सियासत देशहित में नहीं

1 min read

PRESENTED BY ARVIND JAYTILAK 

 

केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 लागू करने से जुडे़ नियम अधिसूचित किए जाने के बाद जिस तरह विपक्षी दलों द्वारा अनावश्यक बखेड़ा खड़ा किया जा रहा है, वह कुलमिलाकर उनकी संकीर्ण और तुष्टिपरक राजनीति को ही उद्घाटित करता है। बेशक विपक्षी दलों को अधिकार है कि वह सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की आलोचना करें और जरुरत पड़े तो संसद से लेकर सड़क तक विरोध जताएं। लेकिन जब मसला राष्ट्रहित और मानवीय संवेदना से जुड़ा हो तो विपक्षी दलों को भी धैर्य और आत्मसंयम का परिचय देना चाहिए। संकीर्ण राजनीति की भावनाएं राष्ट्र के भविष्य से बढ़कर नहीं हो सकती।

क्या यह सच नहीं है कि पड़ोसी देशों मसलन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक यानी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग राज्यपोषित अत्याचार से पीड़ित हैं? क्या यह सच नहीं है कि वे अपनी जान बचाने के लिए ही भारत में शरण लिए हुए हैं? अगर इन परिस्थितियों में भारत सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक के जरिए उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान करती है तो इसमें अनुचित क्या है? यह सही है कि भारत को शरणार्थियों का धर्मशाला नहीं बनने देना चाहिए और न ही दुनिया में संदेश जाना चाहिए कि भारत धर्म के आधार पर नागरिकता देने का फैसला करता है। लेकिन इसका तात्पर्य यह भी नहीं कि भारत अपने पड़ोसी देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों से मुंह फेर ले।

पड़ोसी देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक सात दशक पहले भारत का हिस्सा थे। आज अगर पड़ोसी देश उन पर कहर बरपा रहा है और वे जान बचाकर भारत आ रहे हैं तो उन्हें अपनाना भारत का धर्म है। लेकिन देखा जा रहा है कि कुछ राजनीतिक दल अनावश्यक वितंडा खड़ा कर इस मसले को मजहबी रंग देने पर आमादा हैं। उनका तर्क है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, ऐसे में किसी को धर्म के आधार पर नागरिकता कैसे दी जा सकती है? उनका यह भी कहना है कि जब पड़ोसी देशों से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है तो फिर पड़ोसी देशों से आने वाले मुसलमानों को इस अधिकार से कैसे वंचित किया जा सकता है?

उनकी दलील है कि भारत वसुधैव कुटुंबकम और सर्वधर्म समभाव की संस्कृति का हिमायती है। फिर मजहब के आधार पर किसी के साथ भेदभाव कैसे किया जा सकता है? निःसंदेह विपक्षी दलों का तर्क अनुचित नहीं है। भारत का संविधान भी जाति, धर्म और लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव की इजाजत नहीं देता। लेकिन उचित होगा कि विपक्षी दल इस मसले को मजहबी विमर्श के दायरे में बांधने के बजाए मानवीय विस्तार दें। देश की मौजुदा परिस्थितियों को समझें। यह सच्चाई है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान सभी मुस्लिम राष्ट्र हैं। यहां सिर्फ मुसलमानों के ही हित सुरक्षित हैं। जेहाद के जरिए अल्पसंख्यकों का धर्मांतरण कराया जाता है। यह सच्चाई है कि इन देशों में अल्पसंख्यकों के अधिकार और जीवन रंचमात्र भी सुरक्षित नहीं हैं।

अगर जो कोई इनकी रक्षा के लिए आवाज बुलंद करता है, उसे मौत की नींद सुला दिया जाता है। स्वयं पाकिस्तान सीनेट की स्थायी समिति खुलासा कर चुकी है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति बद से बदतर है। भारत विभाजन के समय पाकिस्तान में 15 प्रतिशत अल्पसंख्यक थे जो आज उनकी संख्या घटकर दो फीसद से भी कम रह गयी है। कमोवेश यही स्थिति बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की भी है। गत वर्ष पहले अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता रिचर्ड बेंकिन ने खुलासा किया था कि पड़ोसी देश बांग्लोदश में अल्पसंख्यकों की आबादी तेजी से घट रही है और अल्पसंख्यकों के उन्मूलन के लिए बांग्लादेश में सम्मिलित प्रयास किए जा रहे हैं। क्या यह सच नहीं है कि बांग्लादेश के निर्माण के समय यहां अल्पसंख्यकों की आबादी एक तिहाई थी जो आज घटकर 15 वां हिस्सा भर रह गयी है?

क्या भारत के विपक्षी दल बताएंगे कि ऐसी ही स्थिति यहां रहने वाले मुसलमानों की भी है? क्या उनकी भी तादाद अल्पसंख्यकों की तरह घटी है? क्या उन पर भी अल्पसंख्यकों की तरह ही अत्याचार होता है? अगर नहीं तो फिर वे किस मुंह से मुसलमानों को भारतीय नागरिकता दिए जाने का आवाज बंुलंद कर रहे हैं? क्या यह दर्शाता नहीं है कि वे तुष्टीकरण की सियासत कर रहे हैं? बहरहाल वे जो भी तक-कुतर्क गढ़े लेकिन यह सच्चाई है कि वे ऐसा कर राष्ट्र का ही नुकसान कर रहे हैं। उन्हें इस बात का भान होना चाहिए कि बांग्लादेश से आए करोड़ों लोगों ने पूर्वोत्तर राज्यों की समस्याओं में इजाफा किया है। यहां के सामाजिक-राजनीतिक माहौल को दूषित किया है। यहां के मूल निवासियों को उजाड़ा है।

कई आतंकी संगठनों ने तो इन घुसपैठियों की मदद से हजारों निर्दोष भारतीयों की जान ली है। ऐसे में उचित होगा कि विपक्षी दल इस मसले पर अनावश्यक वितंडा खड़ा करने के बजाए मानवीय संवेदना का परिचय देते हुए नागरिकता संशोधन कानून का सम्मान करें। वैसे भी ध्यान रखना होगा कि भारत विभाजन से पूर्व पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत के ही हिस्सा थे। अफगानिस्तान से भारत का भाईचारे का रिश्ता था। अस्तित्व में आने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों देशों ने अपने यहां रह रहे अल्पसंख्यकों को भरोसा दिया था कि उनके अधिकार सुरक्षित रहेंगे। लेकिन वे अपने वादे को निभाने में विफन रहे। अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा तो दूर उनके अस्तित्व को ही मिटा डाला। क्या इस सच्चाई से भारत के विपक्षी दल सुपरिचित नहीं हैं?

फिर वे बखेड़ा क्यों खड़ा कर रहे हैं? विपक्षी दलों को ध्यान रखना होगा कि किसी भी देश के लिए उसके हित और मानवीय मूल्य दोनों महत्वपूर्ण होते हैं। इसे ध्यान में रखकर ही सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक को कानूनी जामा पहनाई। सरकार का मकसद इस कानून की मदद से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़न से भागकर भारत आए हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का रास्ता सुगम बनाना है। उल्लेखनीय है कि भाजपा की नेतृत्ववाली राजग सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में लोकसभा में इस संशोधन विधेयक को पेश किया था और इसे पारित करा लिया था। लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों द्वारा विरोध के कारण सरकार इसे राज्यसभा में पेश नहीं की। चूंकि लोकसभा भंग हो गया इस नाते यह विधेयक भी निष्प्रभावी हो गया। लेकिन बाद में सकरार इसे संसद से पारित कराने में सफल रही।

गौर करें तो अब नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जा सकती है। कानून का प्रावधान सुनिश्चित करता है कि जो अवैध प्रवासी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के निर्दिष्ट अल्पसंयक समुदायों के हैं उनके साथ अवैध प्रवासियों जैसा व्यवहार नहीं किया जाएगा। गौर करें तो इन अल्पसंख्यक समुदायों में सिर्फ हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के ही लोग हैं। यानी इससे इतर अल्पसंख्यक प्रवासी जो इन धर्मों से ताल्लुक नहीं रखते हैं उन्हें नागरिकता नहीं मिलेगी। गौर करें तो विपक्षी दल इसी प्रावधान को लेकर बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं।

उनका कहना है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद के तहत प्रदत्त समानता के अधिकार का उलंधन है। क्योंकि यह अवैध प्रवासियों के दरम्यान धर्म और मजहब के आधार पर विभेद पैदा करता है। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी कि विपक्षी दलों के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों द्वारा भी नागरिकता संसोधन विधेयक का विरोध किया गया था। तब उनका तर्क था कि अगर इस विधेयक को लागू किया गया तो उनके सामने पहचान और आजीविका का संकट उत्पन हो जाएगा। लेकिन चूंकि अब सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को लागू करने से जुडे़ नियमों को अधिसूचित कर दिया है ऐसे में विपक्ष को सकारात्मक और मानवीय रुख का ही परिचय देना उचित होगा। 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright ©2022 All rights reserved | For Website Designing and Development call Us:-8920664806
Translate »