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पटाखा फैक्टरियों में खाक होती जिंदगी_______

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PRESENTED BY ARVIND JAYTILAK 

AMETHI NEWS I 

मध्य प्रदेश राज्य के हरदा जिले में मगरथा रोड पर स्थित पटाखा फैक्टरी में हुए भीषण विस्फोट में ग्यारह लोगों की मौत और पांच दर्जन से अधिक लोगों का बुरी तरह झुलसना रेखांकित करता है कि मौत का सबब बन रहे पटाखा फैक्टरियों में काम करने वाले लोगों की सुरक्षा का इंतजाम न के बराबर है।

बताया जा रहा है कि आतिशबाजी के लिए घरों में रखे बारुद के संपर्क में आने से आग ने विकराल रुप धारण कर लिया जिससे पटाखा फैक्टरी दहक उठी। विस्फोट कितना भीषण था इसी से समझा जा सकता है कि आग बुझाने के लिए 50 से अधिक दमकलकर्मियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। बताया जा रहा है कि पटाखों के धमाके से आसपास के कई घरों को भी क्षति पहुंची है।

अच्छी बात है कि राज्य सरकार ने पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे का ऐलान के साथ घायलों को उचित इलाज की व्यवस्था कर दी है। राज्य सरकार ने जांच के आदेश भी दे दिए हैं। इस बात की जांच आवश्यक कि फैक्टरी को पटाखा बनाने का लाइसेंस प्राप्त था या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह फैक्टरी अवैध रुप से चलायी जा रही थी। ऐसा इसलिए कि जब भी इस तरह के हादसे होते हैं तब पता चलता है कि फैक्टरी अवैध थी।

अगर फैक्टरी को लाइसेंस प्राप्त था तो सवाल यह है कि उसमें सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं था? वहां आग बुझाने वाले उपकरण उपलब्ध क्यों नहीं थे? इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि अगर यह फैक्टरी अवैध रुप से चल रही थी उसके संचालन में कहीं स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत तो नहीं थी? ऐसा इसलिए कि उसके सहयोग के बिना अवैध फैक्ट्री चलायी ही नहीं जा सकती।

फिलहाल जांच के बाद ही पता चलेगा कि असलियत क्या है। लेकिन इस मामले में जो भी दोषी हो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। यह पहली बार नहीं है जब किसी पटाखा फैक्टरी में आग लगने से जिंदगी खाक हुई है। याद होगा अभी गत वर्ष पहले ही तमिलनाडु राज्य के विरुधुनगर के सत्तूर में पटाखा फैक्टरी में हुए भीषण विस्फोट में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई और कई दर्जन लोग बुरी तरह झुलस गए।

तमिलनाडु राज्य के ही शिवकाशी के मुदालीपट्टी में भी पटाखे की फैक्टरी में आग लगने से 54 लोगों की जान चली गयी थी। ऐसा ही हादसा 15 सितंबर, 2005 को बिहार राज्य में देखने को मिला जब एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 35 लोगों की जलकर मौत हुई। अभी गत वर्ष पहले पंजाब राज्य के गुरुदासपुर जिले के बटाला की एक पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट में दो दर्जन से अधिक लोगों की जान गयी।

जांच के बाद पता चला कि यह फैक्ट्री पिछले 50 वर्षों से अवैध रुप से चल रही थी और जिस वक्त फैक्ट्री में धमाका हुआ उस समय उसमें 40 लोग काम कर रहे थे। इसी तरह उत्तर प्रदेश राज्य में स्कूटर पर ले जा रहे पटाखे के विस्फोट में दो युवकों की जान चली गयी। याद होगा गत वर्ष पहले केरल के पारावुर स्थित पुत्तिंगल देवी मंदिर में आतिशबाजी से लगी आग में एक सैकड़ा से अधिक लोगों की मौत हुई थी और 300 से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए थे।

तथ्यों के मुताबिक मंदिर में पटाखा रखने की इजाजत न होने के बावजूद भी वहां पटाखा रखा गया जिससे विस्फोट हो गया। गत वर्ष पहले उज्जैन जिले के बड़नगर में पटाखे की फैक्टरी में भीषण आग में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की जान गयी। गत वर्ष पहले बाहरी दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर पंाच में एक इमारत में अवैध रुप से चल रही पटाखे की फैक्टरी में भीषण आग में 17 लोगों की जान चली गयी। सरकार ने जांच कराने की बात कही थी। लेकिन उसका क्या हुआ किसी को पता नहीं।

यह पर्याप्त नहीं कि राज्य सरकारें मृतकों और घायलों के परिजनों को मुआवजा थमाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ले। अकसर देखा जाता है कि जब भी इस तरह के हादसे होते हैं राज्य सरकारें मुआवजा थमाकर संवेदना जाहिर कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेती हैं। सच कहें तो यह एक किस्म से अपनी नाकामी छिपाने का तरीका मात्र है। सरकारों की जिम्मेदारी है कि वह आग से बचाव के लिए ठोस रणनीति बनाएं और सुरक्षा मानकों का पालन कराएं। सुरक्षा मानकों की अनदेखी का ही नतीजा है कि देश भर में आग से होने वाली घटनाओं में तेजी आयी है और लोगों को अकारण मौत के मुंह में जाना पड़ रहा है।

अमूमन माना जाता है कि इस तरह की हृदयविदारक घटनाओं से सरकारें सबक लेंगी और आपदा प्रबंधन को चुस्त-दुरुस्त करेंगी। लेकिन ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। शायद सरकारें एवं सार्वजनिक संस्थाएं अग्निजनित हादसों को आपदा मानने को तैयार ही नहीं है। अन्यथा कोई कारण नहीं कि भीषण अग्निकांड के बाद भी शासन-प्रशासन हाथ पर हाथ धरा बैठा रहे और नए-नए हादसों का इंतजार करे। यहां ध्यान देना हेागा कि दीपावली, दशहरा एवं अन्य त्यौहारों के निकट आते ही पटाखों से होने वाले हादसों की संभावना बढ़ जाती है।

ऐसा इसलिए कि मुनाफे के लिए अवैध तरीके से पटाखे बनाए जाने लगते हैं। तथ्य यह भी कि पटाखों की फैक्ट्री में विस्फोट से ही केवल लोगों की जिंदगी आग की भेंट नहीं चढ़ रही है। बल्कि पटाखों में इस्तेमाल होने वाले खतरनाक रसायनों के कारण भी आसपास का वातावरण भी दूषित हो रहा है। इससे सेहत संबंधी समस्याएं गहरा रही हैं। पटाखों के धुएं में नाइट्रोजन आॅक्साइड, सल्फर डाइ आॅक्साइड, कार्बन मोनो आॅक्साइड, ऐस्बेस्टाॅस तत्वों के अलावा जहरीले गैसों के रसायनिक तत्व पाए जाते हैं जो बेहद खतरनाक होते हैं।

कफ, अस्थमा, ब्रोकांइटिस, न्यूमोनिया, एम्फिसिया, सिरदर्द, फेफड़ों का कैंसर, आंख में जलन, श्वास नलिका में अवरोध एवं विभिन्न तरह की एलर्जी होती है। चूंकि पटाखों में जहरीले तत्वों की मात्रा अधिक होती है इस वजह से फेफड़ों की क्षमता प्रभावित होती है। यह कोशिकाओं को समाप्त कर देता है जिसके कारण फेफड़ों से आक्सीजन ग्रहण करने और कार्बन डाइआक्साइड छोड़ने में बाधा आती है। जहरीले पटाखों के कारण शरीर में बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण की संभावना भी बढ़ जाती है।

इसके अलावा ध्वनि प्रदुषण की समस्या भी बढ़ जाती है। इस दौरान आवाज का स्तर 15 डेसीबल बढ़ जाता है जिसके कारण श्रवण क्षमता प्रभावित होने, कान के पर्दे फटने, रक्तचाप बढ़ने, दिल के दौरे पड़ने जैसी समस्याएं उत्पन हो जाती हैं। गौर करें तो विगत वर्षों में वायुमण्डल में आॅक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है। कार्बन डाई आॅक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जिससे न केवल कई तरह की बीमारियों में इजाफा हुआ है बल्कि खतरनाक स्तर पर वातावरण भी प्रदूषित हुआ है।

इस प्रदूषण से मानव समाज को नुकसान तो पहुंच ही रहा है साथ ही प्रकृति के अस्तित्व के को भी चुनौती मिल रही है। प्रदूषित वायुमण्डल से जब भी वर्षा होती है प्रदूषक तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मृदा को प्रदूषित कर देते हैं। अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र समष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। नार्वे, स्वीडन, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका की महान झीलें अम्लीय वर्षा से प्रभावित हैं। अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रहा है। यूरोप महाद्वीप में अम्लीय वर्षा के कारण 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र वन नष्ट हो चुके हैं। ओजोन गैस की परत, जो पृथ्वी के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करती है, में वायुमण्डल के दूषित गैसों के कारण उसे काफी नुकसान पहुंचा है।

वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है। शोध में यह पाया गया है कि शिमला, हसन, मंगलौर, मैसूर, कोट्टयम और मदुरै जैसे विरासती शहरों में पार्टिकुलेट मैटर पाॅल्यूशन राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर से भी अधिक हो गया है। बेहतर होगा कि सरकार अवैध रुप से चल रही पटाखों की फैक्ट्री पर कड़ी कानूनी कार्रवाई कर उसे बंद कराए और  दोषियों को दंडित करे। 

 

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