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गरीबी के चक्रव्यूह को भेदती कल्याणकारी योजनाएं

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PRESENTED BY ARVIND JAYTILAK 

नीति आयोग के डिस्कशन पेपर ‘मल्टीडाइमेंशनल पाॅवर्टी इन इंडिया सिंस का यह उद्घाटन राहतकारी है कि उत्तर प्रदेश में पिछले नौ साल के दौरान 5.94 करोड़़ लोग मल्टीडाइमेंशनल अर्थात स्वास्थ्य, शिक्षा एवं जीवन स्तर के मामले में गरीबी से बाहर आए हैं। इसी तरह बिहार में 3.77 करोड़ और मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। देश की बात करें तो 2013-14 से 2022-23 के बीच 24.82 करोड़ लोग मल्टीडाइमेंशनल गरीबी से बाहर निकले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि नौ साल में इतनी बड़ी संख्या में लोगों का गरीबी से बाहर आना इसलिए संभव हो सका है कि सरकार ने कल्याणाकारी योजनाओं के लीकेज को बंद करने में सफलता हासिल की है। अर्थात् कल्याणाकारी योजनाओं का लाभ लाभार्थियों तक सीधे पहुंचा है।

दरअसल सरकार का लक्ष्य बहुआयामी गरीबी को एक प्रतिशत से नीचे लाकर लोगों के जीवन स्तर को उपर उठाना है। इसी निमित्त केंद्र सरकार द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है। इससे न सिर्फ गरीबी से निपटने में मदद मिल रही है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो रही है। केंद्र सरकार भूख की गरीबी को खत्म करने के लिए पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना संचालित कर रही है जिसके जरिए देश के तकरीबन 80 करोड़ लोगों को पांच किलोग्राम खाद्यान्न दिया जा रहा है। केंद्र सरकार की उज्जवला योजना के अंतर्गत तकरीबन 9.59 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचा है। इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 4 करोड़ से अधिक लोगों को आवास दिया जा चुका है।

तीन करोड़ से अधिक लोग आयुष्मान कार्ड हासिल कर चुके हैं जिसके जरिए उन्हें उच्चकोटि के अस्पतालों में निःशुल्क इलाज मिल रहा है। जनधन खाताधारकों की संख्या 50 करोड़ के पार पहुंच चुकी है जिसमें 56 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी है। इन खातों में दो लाख करोड़ से अधिक की धनराशि जमा है और 34 करोड़ रुपे कार्ड जारी किया गया है। देश में सर्वाधिक गरीब किसान और मजदूर हैं। कृषि से जुड़े लगभग 70 प्रतिशत से अधिक परिवारों का खर्च उनकी आय से अधिक है। लगभग एक चौथाई किसान गरीबी रेखा के नीचे हैं। अच्छी बात है कि केंद्र सरकार किसानों की आर्थिक हालात सुधारने के लिए संकल्पित है। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले इसके लिए सरकार ने देश का भाग्य संरचनात्मक रुप से कृषि से जोड़ दिया है।

सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना करते समय ए2$ एफएल फाॅर्मूला को अपनाया है तथा साथ ही कृषि उत्पादन के नकद व अन्य सभी खर्चों समेत किसान परिवार के श्रम के मूल्य को भी जोड़ दिया है। मजदूरी, बैलों अथवा मशीनों पर आने वाला खर्च, पट्टे पर ली गयी जमीन का किराया, बीज, खाद, तथा सिचाई खर्च भी इसमें जोड़ दिया है। इससे किसानों को उनकी उपज का सार्थक मूल्य मिलना शुरु हो गया है। नीति आयोग की रिपोर्ट की मानें तो देश में गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाएं अगर इसी तरह चलती रहीं तो आने वाले वर्षों में गरीबी मुक्त भारत का सपना पूरा हो सकेगा। लेकिन गरीबी से निपटने की राह में रोड़े भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ा रोड़ा तेजी से बढ़ रही जनसंख्या है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट के मुताबिक जब दुनिया भर में जनसंख्या बढ़ने की गति धीमी है वहीं भारत में साल भर में आबादी 1.56 प्रतिशत बढ़ी है। विगत पांच दशकों में जनसंख्या में निरंतर तीव्र वृद्धि के कारण जनसंख्या विस्फोट की स्थिति उत्पन हो गयी है। विशेषज्ञों की मानें तो जनसंख्या की यह तीव्र वृद्धि आर्थिक विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर रहा है और कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही है। भारत में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण गरीबी, बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति निम्न आय, मकानों की समस्याएं, कीमतों में वृद्धि, कृषि विकास में बाधा, बचत तथा पूंजी निर्माण में कमी, जनोपयोगी सेवाओं पर अधिक व्यय, अपराधों में वृद्धि तथा शहरी समस्याओं में वृद्धि जैसी ढे़र सारी समस्याएं उत्पन हुई हैं। इनमें सबसे बड़ी समस्या निर्धनता में वृद्धि है।

यूनाइटेड नेशन के फुड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट से उद्घाटित हो चुका है कि भारत में पिछले एक दशक में गरीबी की वजह से भूखमरी की समस्या से जुझने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। इफको की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हो चुका है कि गरीबी की वजह से देश में कुपोषण बढ़ रहा है। कुपोषण के कारण लोगों का शरीर कई तरह की बीमारियों का घर बनता जा रहा है। गौर करें तो कुपोषण का घरेलू खाद्य असुरक्षा अथवा गरीबी से सीधा रिश्ता है। लोगों की गरीबी दूर करके ही उनका कुपोषण मिटाया जा सकता है। गरीबी के कारण भारत में कुपोषण का सर्वाधिक संकट महिलाओं को झेलना पड़ता है। हर वर्ष लाखों गर्भवती महिलाएं उचित पोषण के अभाव में दम तोड़ देती हैं। दक्षिण एशिया में भारत गरीबी से उपजे कुपोषण के मामले में सबसे बुरी स्थिति में है।

गत वर्ष पहले एसीएफ की रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ था कि भारत में कुपोषण जितनी बडी समस्या है वैसे पूरे दक्षिण एशिया में और कहीं देखने को नहीं मिलता। इन आंकड़ों से साफ है कि आर्थिक नियोजन के सात दशक बाद भी देश निर्धनता के दुष्कचक्र में फंसा हुआ है। ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा गरीबी से निपटने का प्रयास नहीं हो रहा है। लेकिन जिस गति से आबादी बढ़ रही है उस लिहास से सरकार की गरीबी मिटाने की योजनाएं ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। भारत में जीवन की बेहद बुनियादी आठ जरुरतों यानी सामाजिक कल्याण की परियोजनाओं मसलन खाद्य, उर्जा, आवास, पेयजल, स्वच्छता,स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में केंद्र सरकार का प्रदर्शन बेहतर है। रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी के अन्य संकेतकों के मोर्चे पर भी उल्लेखनीय सफलता मिली है।

मसलन जो लोग गरीब हैं और भोजन पकाने के ईंधन से वंचित हैं उनकी संख्या भी 52.9 प्रतिशत से घटकर 13.9 प्रतिशत रह गई है। इसी तरह स्वच्छता से वंचित लोग 2005-06 के दौरान 50.4 प्रतिशत थे जो अब 2019-21 में घटकर 11.3 प्रतिशत रह गए हैं। पीने का साफ पानी यानि पेयजल के मानक के मोर्चे पर पर गौर करें तो इस अवधि में ऐसे लोगों की संख्या 16.4 प्रतिशत से घटकर 2.7 प्रतिशत रह गई है जो एक बड़ी उपलब्धि है। बिजली से वंचित लोगों की संख्या इस दौरान 29 प्रतिशत से घटकर 2.1 प्रतिशत पर आ गई है। आवास से वंचित लोगों का आंकड़ा भी 44.9 प्रतिशत से घटकर 13.6 प्रतिशत रह गया है। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार की कल्याणकारी योजनाएं जमीन पर आकार ले रही हैं।

लेकिन गौर करें तो गति बेहद धीमी है। सरकार को गरीबी से बाहर निकालने की गति तेज करनी होगी। इसके लिए रोजगार सृजन से लेकर प्रभावी जनसंख्या नीति को अपनाना होगा। जीवन से जुड़ी खानपान की वस्तुओं और दवाओं की बढ़ रही कीमतों पर नियंत्रण लगाना होगा। बढ़ती महंगाई गरीबी और कुपोषण के प्रमुख कारणों में से एक है। गरीबी से निपटने के लिए देश में बढ़ रही अमीरी-गरीबी की खाई भी जिम्मेदार है। क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट 2022 में कहा गया है कि वर्ष 2026 तक भारत में करोड़पतियों यानी डाॅलर मिलियनेयर्स की संख्या 2021 के मुकाबले बढ़कर दुगुनी हो जाएगी। आंकड़ों पर गौर करें तो 2021 में 7.96 लोग डाॅलर मिलियनेयर्स थे और इसके पांच साल में 105 फीसदी बढ़कर 16.32 लाख होने का अनुमान जताया गया है।

देश में करोड़पतियों की तादाद बढ़ना अच्छी बात है। लेकिन सवाल यह है कि जिस अनुपात में करोड़पतियों की तादाद में वृद्धि हो रही है उस अनुपात में गरीबी कम क्यों नहीं हो रही है? उचित होगा कि सरकार अमीरी-गरीबी की बढ़ती खाई को पाटने के लिए ठोस कदम उठाए। देश के नागरिकों को भी समझना होगा कि भारत से गरीबी खत्म करने के लिए सिर्फ सरकारी योजनाएं ही पर्याप्त नहीं हैं। सामर्थ्यवान लोगों को भी चाहिए कि गरीबी खत्म करने के सरकार से कंधा जोडें।   

 

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