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यूपी में मायावती के अलग चलने के फैसले से भाजपा कैंप में जश्न क्यों ? 

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इंडिया गठबन्धन के लिये बिहार, महाराष्ट्र और बंगाल से कोई अच्छी खबर नहीं आ रही है लेकिन उत्तर प्रदेश से गठबंधन को निराश करने वाली खबर आ गई है । उत्तर प्रदेश लोकसभा की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण राज्य है क्योंकि यहाँ लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें हैं । जिस पार्टी या गठबंधन को केन्द्र में सरकार बनानी है, उसके लिए उत्तरप्रदेश की अनदेखी करना मुश्किल है । यहाँ योगी के नेतृत्व में भाजपा की मजबूत सरकार चल रही है ।

  कांग्रेस यहाँ बहुत कमजोर हो चुकी है लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अभी भी एक बड़े वोट बैंक के साथ भाजपा के लिये चुनौती पेश कर सकती है । गठबन्धन में सपा और कांग्रेस साथ हैं लेकिन मायावती ने इस गठबन्धन से दूरी बना रखी थी । अब मायावती ने ऐलान कर दिया है कि वो किसी भी गठबन्धन में शामिल होने वाली नहीं हैं ।  अपनी पार्टी के पदाधिकारियों के साथ बैठक के बाद उन्होंने एक प्रेस नोट जारी करके बता दिया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी ।

 उनका कहना है कि वो अपना वोट तो दूसरी पार्टी को ट्रांसफर करवा देती हैं लेकिन दूसरी पार्टी ऐसा नहीं करती है । इसलिये बसपा को गठबन्धन करने का कोई फायदा नहीं होता है । उनका  कहना है कि कई बार साथी दल की ऐसा करने की  नीयत नहीं होती है और कई बार उसकी हैसियत नहीं होती है कि वो अपनी वोट उनकी पार्टी को ट्रांस्फर करवा सके । जब उनको दूसरे दल के वोट नहीं मिलते हैं तो गठबन्धन करने का कोई फायदा नहीं है ।   उन्होंने कांग्रेस और भाजपा दोनों पर हमला बोला है । उनका कहना है कि दोनों पार्टियों की कथनी और करनी में बड़ा अन्तर है । उनका कहना है कि बीजेपी अपना प्रभाव और जनाधार दोनों खो रही है ।

 इसलिए उनका मानना है कि लोकसभा चुनाव एकतरफा होने वाले नहीं है । इस बार के चुनाव से राजनीति नई करवट ले सकती है । ये उनका अपना आकलन हो सकता है, लेकिन जमीनी सच्चाई इससे अलग है । भाजपा योगी के नेतृत्व में जनता की उम्मीदों के अनुसार काम कर रही है । यूपी मोदी जी का चुनावी राज्य है, इसलिये इस राज्य के बड़े इलाके में उनका बड़ा प्रभाव है । क्योंकि लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री चुनने के लिये होते हैं तो यूपी की जनता चाहेगी कि उनके राज्य से भाजपा को ज्यादा से ज्यादा सीटें दी जाये, जैसा पिछले दो चुनावों के दौरान हो चुका है । लेकिन मायावती के चुनावी दांव का असर भाजपा और गठबंधन दोनों पर होने वाला है ।

                   कांग्रेस का समाजवादी पार्टी से समझौता लगभग पक्का है । वो इस हालत में भी नहीं है कि सीटों के तालमेल को लेकर ज्यादा मोलभाव कर सके । जो भी सीटें लड़ने के लिये अखिलेश यादव उसे देंगे, उसे स्वीकार करना उसकी मजबूरी होगी । कांग्रेस और सपा दोनों चाहती हैं कि अगर मायावती भी इस गठबन्धन का हिस्सा बन जायें तो भाजपा को अच्छी टक्कर दी जा सकती है । इसके लिये कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे जी ने मायावती को मनाने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो पाये । ये बात भाजपा भी जानती है कि अगर मायावती गठबंधन के साथ चली जाती हैं तो उसकी चुनावी संभावनाओं पर बड़ा असर पड़ सकता है ।

 यही कारण है कि जब से मायावती ने गठबंधन से अलग अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, तब से भाजपा को लोग बधाई दे रहे हैं । ये थोड़ा अजीब लग सकता  है कि फैसला मायावती ने किया है तो लोग भाजपा को बधाई क्यों दे रहे हैं ?  लेकिन जो भी यूपी की वर्तमान राजनीति को समझता है तो वो जानता है कि भाजपा कैंप में मायावती के फैसले के बाद जश्न क्यों मनाया जा रहा है । इस फैसले के बाद गठबंधन के कैंप में निराशा बिल्कुल स्पष्ट कर देती है कि मायावती के इस कदम से यूपी में क्या होने वाला है । पहले से ही भाजपा यूपी में बहुत मजबूत स्थिति में है और इस फैसले के बाद उसके लिए संभावनाओं के नये द्वार खुल गये हैं ।

               अब सवाल उठता है कि मायावती के अलग चलने से गठबंधन में डर क्यों पैदा हो गया है और भाजपा के खेमे में खुशियाँ क्यों मनाई जा रही हैं ?  इसका जवाब यूपी की डेमोग्राफी में छुपा हुआ है ।  मायावती के पास जो दलित वोट बैंक बचा हुआ है, उसका अब किसी के लिये कोई महत्व नहीं रह गया है । अगर मायावती गठबन्धन के साथ चली जाती हैं तो भी उनका दलित वोट बैंक गठबन्धन के साथियों को मिल जायेगा, ये जरूरी नहीं है । उसका कुछ हिस्सा छिटक कर भाजपा के पास भी जा सकता है । सारा गणित मुस्लिम वोट बैंक को लेकर है । अगर मायावती अलग लड़ती हैं तो वो मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा हिस्सा अपने साथ लेकर जा सकती हैं । वो जितने भी मुस्लिम वोट लेकर जायेंगी, उतना ही गठबन्धन को नुकसान होगा ।  वो मुस्लिम बहुल सीटों पर मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार खड़े करके गठबन्धन का सारा गणित बिगाड़ सकती हैं ।

यही चिन्ता गठबन्धन को खाये जा रही है । मेरा मानना है कि अभी भी गठबंधन के नेता कोशिश करते रहेंगे कि मायावती को किसी तरह से अपने साथ लाया जाये लेकिन ये कोशिश कितनी सफल होगी, ये आने वाला वक्त बताएगा ।  अगर मायावती अलग चलने की अपनी रणनीति पर कायम रहती हैं तो भाजपा को मुस्लिम वोटों के बंटवारे से बड़ा फायदा हो सकता है ।  भाजपा जानती है कि मुस्लिम वोटों का एकमुश्त होकर गठबंधन के साथ चले जाना उसको नुकसान पहुंचा सकता है ।

                विपक्षी दल के नेता मायावती पर हमले कर रहे हैं कि वो भाजपा के डर के कारण गठबंधन के साथ नहीं आना चाहती हैं । उनका कहना है कि मायावती पर कई मामलों की जांच चल रही है  और वो कई मुकदमों का सामना कर रही हैं । वो चाहती हैं कि भाजपा को फायदा पहुँचाने से उनको कोई रियायत मिल जाये ।  अब सवाल उठता है कि गठबन्धन के बहुत से नेताओं के मामलों की जांच ईडी और सीबीआई कर रही हैं और इसके अलावा कई नेताओं पर मुकदमे भी चल रहे हैं लेकिन सिर्फ मायावती ही क्यों डर रही हैं । वैसे भी राजनीति डरने वालों का काम नहीं है । जो डरता है, वो राजनीति कर ही नहीं सकता ।  मायावती अगर डरने वाली महिला होती तो वो यहाँ तक कभी भी नहीं पहुँच सकती थी ।  जो डर उन्हें अभी बताया जा रहा है, वो डर 2019 में भी था, तब तो उन्होंने सपा के साथ गठबन्धन कर लिया था, जिससे उन्हें 10 सीटों के रूप में  फायदा भी हुआ था ।

वास्तव में मायावती किसी भी दल पर भरोसा नहीं कर पा रही हैं । अगर वो भाजपा के साथ जाती हैं तो उनके बचे हुए वोट बैंक के खत्म होने का खतरा है क्योंकि उनके वोट बैंक का बड़ा हिस्सा पहले ही भाजपा के साथ जा चुका है । दूसरी तरफ कांग्रेस और अखिलेश यादव हैं, उन पर उन्हें भरोसा करना मुश्किल हो रहा है । कई राज्यों में कांग्रेस ने उनके विधायकों पर तोड़कर अपनी पार्टी में मिलाया है । वो जानती हैं कि राजनीति में न कोई दोस्त है और न कोई दुश्मन है ।  दोनों गठबंधनो से दूरी बनाकर वो अपनी कीमत बढ़ा रही हैं । अगर वो चुनावों तक किसी भी गठबन्धन के साथ नहीं जाती हैं तो चुनावों के बाद उनके लिये दोनों गठबंधनो के द्वार खुले रहेंगे । उनके मन में क्या छुपा है, ये आने वाला वक्त ही बतायेगा ।

 अन्त में इतना कहा जा सकता है कि मायावती इसके लिये जिम्मेदार नहीं हैं कि उनके अलग चुनाव लड़ने से किसको फायदा होगा या किसको नुकसान होगा । वो अपने राजनीतिक फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं, इस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता  । लेकिन एक सच यह भी है कि वो भी जानती है कि उनके अलग लड़ने से किसको फायदा होने वाला है ।  मेरा मानना है कि उन्होंने जो फैसला लिया है, बहुत सोच समझकर लिया है । वैसे भी वो जल्दबाजी में फैसले लेने वाली नेता नहीं हैं ।

राजेश कुमार पासी ( लेखक के अपने विचार हैं)

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