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विषय आमंत्रित रचना -मोक्ष

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एक घटना प्रसंग दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराज जी स्वामी ( श्री ड़ुंगरगढ़ ) से मैंने यह पूछा की मुनिवर हर आत्मा का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष होता है तो मोक्ष में जगह कितनी होगी । मुनिवर ने तत्काल मेरे प्रश्न के भावों को भाँपते हुए कहा की अभी हम है वैसी 7 पृथ्वियाँ अगर हो तो भी मोक्ष नहीं भरेगा । मैंने उतर सुन
मौन से आश्चर्य किया तो मुनिवर ने मैंने मेरे हाव – भाव को भाँपते हुए विस्तार से मोक्ष के बारे मुझे समझाया । यह मानव जीवन अति दुर्लभ है |

जीवन की यथार्थता को हम समझे ।अभी पांचवें आरे से अगला भव मोक्ष तो नहीं है परन्तु आध्यात्मिकता की ओर बढते हुए हम सम्यक्त्व तो प्राप्त कर लें|उसी तरह जैसे सूई में धागा पिरोया हुआ हो तो सूई मिल जाएगी | ताकि जीने का अर्थ समझ आ जाए। ।पाप बंध सब काट लें मिले मोक्ष का धाम । भक्ति करता छूटे मारा प्राण प्रभु एवु मांगु छूँ रहे हृदय कमल माँ तारूँ ध्यान प्रभु एवु मांगु छूँ। हृदय आज भी पवित्रता की गवाही देता हैं कि जिसने भी राग-द्वेष रूपी सभी कामादिक, जीते सब जग जान लिया , सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया, बुद्ध, वीर जिन, हरि, हर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो भक्ति-भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो। तर्क चला हम रोज रोज भगवद् भक्ति में ही क्यों लगे रहें ?

मासिक या साप्ताहिक आराधना ही क्यों न करें ? हो सकता हैं तर्क सही हो पर जैसे एक माँ के सामने बच्चा अपनी बात रोज़ मनवाता हैं ज़िद करता हैं कुछ ऐसे भी भावों से हमें भक्ति करनी चाहिए यह नियमित एवं सही समय पर करना सार्थक हैं । क्या खोया- क्या पाया सब अपने बनाए कर्म के कारण है । अरे – न रुकी वक़्त की गर्दिश और न ज़माना बदला । पेड़ सूखा तो परिंदों ने ठिकाना बदला । अब दोष भगवान को क्यों ? हम ही है हमारे दोषी हैं । यह धरती तो वज्रदिल बन सब कुछ सहती है । एक माँ की तरह सरिता उतार चढ़ाव में भी अविरल बहती है । एक माँ की तरह और हम नादान बच्चे अपनी नादानी के कारण दुःख के कगार तक पहुँच जाते है जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ हताशा है निराशा है दोषारोपण हैं । समझे ज़राबहमें कुछ संभलने मौक़ा दिया हैं । भक्ति में रमे और बन सार्थक स्वर्ण कसौटी पर खरे उतरे, बीज-धूप- खाद-जल रूपी कार्य सिद्धि से सही दिशा में आगे बढ़े।वरना- आख़िर होगा तेरा जाना,कोई ना साथ निभाएगा ।

तेरे कर्मों का फल बंदे,साथ तुम्हारे आएगा, चिंतन कर ले इन बातों का जन्म सफल हो जाएगा । मोक्ष मिल जायेगा ।किसी को दोष देने से बेहतर ख़ुद सम्भले ।अपने जीवन की नींव हिलने से पहले ये गुनगुना ले मेरी भक्ति में कोई कमी तो नही फिर भी गाना ना आए तो में क्या करूँ ।कैसे शब्दों की सीमा में बान्धू भगवान आपको दिल ना रिझाए तो में क्या करूँ । भावों में शुद्ध लाकर मोक्ष में कैसे जाऊँ । हम सभी सामाजिक प्राणी हैं समाज का दायित्त्व निभाएं हम। जरूरत हो वहां सही से यथाशक्य विसर्जन कर पाएं हम। पर न नाम की भूख और न ही प्रतिफल की आशा हो। कोई भी कार्य करें निः स्वार्थ भाव से सिर्फ मोक्ष और मोक्ष की अभिलाषा हो।

बदले की भावना रखने से कर्मों की श्रृंखला आगे से आगे कितनी ज्यादा बढ़ती जाती है ।लक्ष्य मोक्षप्राप्ति है उसकेलिए हमें विवेकपूर्ण शांति ,सद्भाव , अनावश्यक न बोलना ,प्रतिकिर्या न करना ,अपने संवेगों पर नियंत्रण करना और अपने को पुद्गलजगत से हटाकर करनें के साधनों से अपनी आत्मा को भावित करने की और अग्रसर हो । कम से कम भव कर मोक्ष की और अग्रसर हो ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान)

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