श्रीमत स्वामी स्मरणानन्द महाराज की महासमाधि पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित
1 min readREPORT BY AMIT CHAWLA
LUCKNOW NEWS ।
रामकृष्ण मठ व रामकृष्ण मिशन के 94 वर्षीय अध्यक्ष स्वामी स्मरणानन्दजी महाराज विगत मंगलवार 26 मार्च की रात्रि रामकृष्ण मिशन सेवा प्रतिष्ठान, कोलकाता में महासमाधि में लीन हो जाने के उपरांत उनकी महासमाधि के 13वें दिन के उपलक्ष्य में लखनऊ के निराला नगर स्थित रामकृष्ण मठ में रविवार, को भगवान रामकृष्ण की एक विशेष पूजा, चण्डी पाठ, हवन, पुष्पांजलि, भजन और भंडारा एवं स्मृति सभा का आयोजन किया गया
श्री रामकृष्ण मन्दिर के वृहद परिसर में कार्यक्रम की शुरूआत सुबह शंखनाद व मंगल आरती के बाद वैदिक मंत्रोच्चारण, (नारायण शुक्तम) और भगवद गीता से भक्ति योग का सस्वर पाठ मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द के नेतृत्व में हुआ। भक्तगणों की सतत् भागीदारी के साथ सूर्योदय से सूर्यास्त तक निरन्तर जप-यज्ञ, (बारी-बारी से इच्छुक भक्तगणों द्वारा भगवान का निरन्तर नाम जपन) का आयोजन रामकृष्ण मठ के पुराने मंन्दिर में प्रत्यक्ष रूप व परोक्ष रूप से इन्टरनेट के माध्यम से सम्मिलित होकर हुआ।
रामकृष्ण मठ के स्वामी रामाधीशानन्द द्वारा चण्डी पाठ किया गया तथा विशेष पूजा, स्वामी इष्टकृपानन्द द्वारा हुआ तत्पश्चात कानपुर के अशोक मुखर्जी द्वारा भक्तिगीत का गायन हुआ ।
आदर्श संन्यासी थे स्वामी स्मरणानन्दजी महाराज- स्वामी मुक्तिनाथानन्द
स्वामी मुक्तिनाथानन्दजी महाराज द्वारा ‘‘आध्यात्मिक जीवन में गुरू का महत्व’’ विषय पर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि गुरु को ब्रह्मा कहा गया है। गुरु अपने शिष्य को नया जन्म देता है। गुरु ही साक्षात महादेव है, क्योकि वह अपने शिष्यों के सभी दोषों को माफ करता है। गुरु का महत्व सभी दृष्टि से सार्थक है।
शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु से मंत्र लेकर वेदों का पठन करने वाला शिष्य ही साधना की योग्यता पाता है। व्यावहारिक जीवन में भी देखने को मिलता है कि बिना गुरु के मार्गदर्शन या सहायता के किसी कार्य या परीक्षा में सफलता कठिन हो जाती है। गुरु का महत्व सभी दृष्टि से सार्थक है। प्रवचन उपरान्त हवन, पुष्पांजलि रामकृष्ण मठ के स्वामी इष्टकृपानन्दजी द्वारा हुआ तथा रामकृष्णनाम संकीर्तन समूह में स्वामी पारगानन्द के नेतृत्व में हुआ।
भोग आरती के पश्चात अशोक मुखर्जी द्वारा भक्तिगीत की प्रस्तुति दी गई एवं उपस्थित भक्तगणों को अन्नपूर्णा हॉल में पके हुए प्रसाद का वितरण किया गया। सायंकाल अशोक मुखर्जी द्वारा भक्तिगीत की प्रस्तुति दी गई तथा शाम को सन्ध्यारति के उपरान्त मंदिर के सभागार में श्रद्धेय श्रीमत स्वामी स्मरणानन्दजी महाराज को श्रद्धांजलि के रूप में स्मृति सभा का अयोजन किया गया।
स्वामी स्मरणानन्दजी महाराज का सफरनामा
श्रद्धेय स्वामी स्मरणानन्दजी महाराज के संस्मरण कुछ चुने हुये भक्तों एवं स्वामी व्योमतीतानन्द व स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने स्वामी स्मरणानन्दजी महाराज पर अपने-अपने संस्मरण व्यक्त किये। मठ के अध्यक्ष श्रीमत् स्वामी मुक्तिनाथानन्दजी महाराज ने बताया कि वे पूजनीय स्वामी स्मरणानन्दजी महाराज रामकृष्ण मठ तथा रामकृष्ण मिशन, बेलुड़ मठ के सोलहवें अध्यक्ष श्रीमत् स्वामी स्मरणानन्दजी महाराज का जन्म तमिलनाडु के तंजावुर जिले के अंडामी गांव में मई 1929 में हुआ था।
बचपन में ही उनके माता का देहावसान होने के कारण उनकी परवरिश उनके मामी ने की। उनके पिता महाराष्ट्र के नासिक में कार्यरत होने के कारण उन्होंने नासिक जाकर वहाँ से वाणिज्य शाखा में डिप्लोमा हासिल किया। सन् 1949 में वे मुम्बई आये तथा नौकरी करते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। विद्यार्थी जीवन से ही वे अत्युत्सुक वाचक तथा गहन चिन्तक थे। अनेक अंग्रजी साहित्यों का उन्होंने गहन अभ्यास किया था। विशेषकर अमरिकी लेखक नेपोलियन हिल के स्वयं-सहायता-साहित्य का उन्होंने अभ्यास किया था।
वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए थे। गांधीजी के सुझावों के अनुसार वे रामनाम का जप किया करते और यही उनके भविष्य के जीवन के लिए एक नया मोड साबित हुआ। सन् 1952 में 22 साल की उम्र में श्रीरामकृष्ण के पवित्र जन्मदिन पर उन्होंने मुंबई आश्रम में एक ब्रह्मचारी के रूप में प्रवेश किया। उसी वर्ष के अन्त में रामकृष्ण संघ के सातवे अध्यक्ष श्रीमत् स्वामी शंकरानन्दजी महाराज का मुम्बई आगमन हुआ तब उन्हीं से उन्हें मंत्रदीक्षा प्राप्म हुई। बाद में सन् 1956 में उन्ही से ही ब्रह्मचर्य दीक्षा तथा सन् 1960 में संन्यास दीक्षा प्राप्त हुई तथा उनका नाम हुआ स्वामी स्मरणानन्द।
सन् 1976 में उन्हें बेलुड़ मठ स्थित रामकृष्ण मिशन सारदापीठ शैक्षणिक संकुल का सचिव नियुक्त किया गया। इस शैक्षणिक संकुल में उन्होंने पन्द्रह वर्षों तक शैक्षणिक तथा ग्रामीण समाज-कल्याण का अद्भुत कार्य किया। सन् 1978 में पश्चिम बंगाल में आये भीषण बाढ़ की स्थिती में महाराज ने अपने संन्यासी सहयोगियों के साथ बाढ़ पीड़ितों के लिए विस्तृत राहत, बचाव और सहायता कार्य किया। सारदापीठ से उन्हें दिसम्बर 1991 में रामकृष्ण मठ मद्रास के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। वर्तमान भव्य श्रीरामकृष्ण मन्दिर का निर्माण उनके ही कार्यकाल में शुरू हुआ था।
एक दशक तक वे रामकृष्ण संघ के उपाध्यक्ष रहे। दि.17 जुलाई 2017 के दिन उन्हें रामकृष्ण मठ तथा रामकृष्ण मिशन के अध्यक्ष के रूप में चुना गया और वे रामकृष्ण संघ के 16 वे अध्यक्ष बने। इस दौरान उन्होंने अनेक श्रद्धालु भक्तों को मंत्रदीक्षा प्रदान कर श्रीरामकृष्ण भावधारा का प्रचार तथा प्रसार किया।