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नकली नोटों पर कसता नियंत्रण….

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रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया और सरकार की कड़ी सतर्कता के बावजूद भी देश में नकली नोटों का प्रवाह जारी है। यह खुलासा रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया की सालाना रिपोर्ट से हुआ है जिसके मुताबिक पिछले वर्ष की तुलना में 2022-23 में बैंकिंग सिस्टम में पकड़े गए 500 रुपए के नकली नोटों की संख्या 14.6 फीसदी बढ़कर 91,110 नोट हुई है जबकि 2000 रुपए मूल्य वर्ग के नकली नोटों की संख्या 28 फीसदी घटकर सिर्फ 9,806 नोट रह गयी है। गौर करें तो रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने सबसे ज्यादा नकली नोट 2000 रुपए के नहीं बल्कि 500 रुपए के पकड़े हैं।

राहत की बात है कि बैंकिंग सेक्टर में पकड़े गए नकली भारतीय करंसी नोटों की संख्या पिछले वित्तीय वर्ष में 2,30,971 नोटों की तुलना में 2022-23 में घटकर 2,25,769 नोट रह गयी है। रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने इस दौरान 100 रुपए के 78,699 और 200 रुपए के 27,258 रुपए के भी नकली नोट पकड़े हैं। अच्छी बात है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के मुकाबले 2022-23 वित्तीय वर्ष में नकली नोटों के प्रवाह पर शिकंजा कसने में मदद मिली है।

वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान नई डिजाइन वाले 500 रुपए के नकली नोटों की संख्या सालाना आधार पर 102 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। तब नई डिजाइन वाले कुल 79,669 नकली नोट पकड़े गए थे जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष 2020-21 के दरम्यान इनकी संख्या 39,453 थी। इसी तरह नई डिजाइन वाले 2000 रुपए मूल्य वाले 13,604 नकली नोट पकड़े गए थे। तब 2000 रुपए के नकली नोटों में तकरीबन 55 फीसदी की वृद्धि हुई थी।

इसी तरह दस रुपए से लेकर बीस, पचास, सौ और दो सौ रुपए के नकली नोट भी पकड़ में आए थे। वित्तीय वर्ष 2017-18 और 2018-19 पर नजर डालें तो इस समय नकली नोटों की संख्या में भारी वृद्धि हुई थी। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में 500 रुपए के नकली नोटों की संख्या सिर्फ 199 थी जो 2018-19 में बढ़कर 22,000 पहुंच गयी। गत वर्ष पहले सरकार की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ था कि पिछले दस सालों में देश के बैंकिंग तंत्र में लेनदेन के दौरान नकली मुद्रा पकड़े जाने के मामले तेजी से बढ़े हैं।

नकली नोटों पर नियंत्रण के लिए सरकार ने 2007-08 में यह अनिवार्य किया था कि निजी बैंकों और देश में संचालित सभी विदेशी बैंकों के लिए नकली मुद्रा पकड़े जाने संबंधी किसी भी घटना की जिम्मेदारी धनशोधन रोधी कानूनों के प्रावधान के तहत वित्तीय खुफिया इकाई फाइनेंसियल इंटेलिजेंस यूनिट (एफआईयू) को देना होगा। इतनी सतर्कता के बावजूद भी नकली नोटों का प्रवाह चिंतित करने वाला है।

याद होगा गत वर्ष पहले राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा खुलासा किया गया था कि देश में सबसे अधिक पांच सौ रुपए के नकली नोट घूम रहे हैं। नोटबंदी से पहले के एक आंकड़े के मुताबिक रिजर्व बैंक और जांच एजेंसियों की संख्ती के बावजूद भी भारतीय बाजार में मौजूद साढ़े ग्यारह लाख करोड़ रुपए की करेंसी में बड़ी संख्या में नकली नोट मौजूद होने का खुलासा हुआ था। यह भी आशंका जाहिर किया गया था कि यह आंकड़ा चार सौ करोड़ रुपए से भी अधिक हो सकता है। नोटबंदी से पहले देश के विभिन्न बैंकों के एटीएम से नकली नोट निकल रहे थे।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के कई बैंकों के चेस्ट में भारी मात्रा में नकली नोट पाए गए थे। ध्यान देना होगा कि देश में ऐसे कई गिरोह हैं जो नकली नोटों के कारोबार में लिप्त हैं। लेकिन वे जांच एजेंसियों की पकड़ में नहीं आ रहे हैं। याद होगा गत वर्ष पहले देश की राजधानी दिल्ली में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 6 करोड़ रुपए के नकली नोटों के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया था। तब दिल्ली पुलिस द्वारा खुलासा किया गया था कि नकली नोटों के ये सौदागर पिछले दो वर्ष से देश के विभिन्न हिस्सों में हर दिन तीन करोड़ रुपए भेज रहे थे।

चर्चा यह भी रहा कि पाकिस्तान द्वारा नकली नोटों का खेप बांग्लादेश के जरिए भारत में भेजा जाता है और एजेंटों के द्वारा उसे देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाया जाता है। वर्ष 2012-13 में एफआईसी ने नकली नोटों की तस्करी के मामले दर्ज किए थे और इस दौरान पांच पाकिस्तानियों को गिरफ्तार किया गया था। गत वर्ष पहले सुरक्षा एजेंसियों द्वारा खुलासा किया गया कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई सालाना दस हजार करोड़ रुपए मूल्य के भारतीय नोटों की नकली करेंसी छापकर भारत में भेजने की योजना पर काम कर रही है।

खास बात यह कि नोटबंदी के बाद भी पाकिस्तान इस खेल में जुटा हुआ है। दरअसल उसकी मंशा नकली नोटों के जरिए आतंकवाद को बढ़ावा देना तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना है। आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2010 में तकरीबन 1600 करोड़ रुपए की नकली करेंसी नेपाल और बांग्लादेश के जरिए भारत भेजी गयी। इसी तरह वर्ष 2011 में 2000 करोड़ रुपए की नकली करेंसी भेजी गयी। इस फेक करेंसी में तकरीबन 60 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में छापा गया था। वर्ष 2015 में भी इन रास्तों से तकरीबन 3 करोड़ से ज्यादा की करेंसी पकड़ी गयी।

अच्छी बात है कि समय-समय पर रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया द्वारा देश के नागरिकों को प्रचार के जरिए असली-नकली नोटों के फर्क को समझाया जाता है। उसके द्वारा बैंकों को भी हिदायत दी जाती है कि वे नोटों को लेने से पहले उसकी जांच जरुर कर लें। दो राय नहीं कि नोटबंदी के उपरांत जाली मुद्रा की तस्करी रोकने में काफी हद तक मदद मिली है लेकिन इस कारोबार से जुड़े लोगों पर अभी तक पूरी तरह शिकंजा नहीं कसा जा सका है। हाालंकि भारत सरकार ने नकली नोटों पर अंकुश रखने के उपाय सुझाने के लिए शैलभद्र बनर्जी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जो अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुकी है।

इस रिपोर्ट पर अमल करते हुए मुद्रा निदेशालय में अतिरिक्त सचिव स्तर का महानिदेशक का पद सृजित किया गया। इसके अलावा कई अन्य और कदम उठाए गए। मसलन सरकार ने बेहद सुरक्षित किस्म के कागजों पर नोट छापने का निर्णय लिया और उसका पालन हो रहा है। इसके लिए मैसूर में एक बेहद आधुनिक तकनीक पर आधारित करेंसी कागज बनाने का कारखाना लगाया गया है। इस कारखाने में निर्मित करेंसी कागज की नकल करना किसी के लिए भी आसान नहीं माना गया। लेकिन धंधेबाजों ने इसकी भी काट ढूंढ़ ली है। बहरहाल ऐसे धंधेबाजों से निपटने और नकली नोटों के अवैध धंधे को रोकने के लिए वित्त मंत्रालय, गृह मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक एवं केंद्र तथा राज्य सरकारों की सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं।

इन एजेंसियों के बीच तालमेल बनाए रखने के लिए गृहमंत्रालय में एक संयोजन समिति का गठन किया है। इसके अलावा रिजर्व बैंक ने नकली नोटों पर लगाम लगाने के लिए गत वर्ष पहले एक तरफ बिना छपाई वर्ष वाले 2005 से पुराने नोटों को परिचालन से बाहर कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ नए नोटों पर सुरक्षा मानक ज्यादा उन्नत बना दिए गए हैं। इसके अलावा रिजर्व बैंक द्वारा पिछले साल से ही नंबर पैनल पर नोटों के नंबर की छपाई बढ़ते हुए आकार में शुरु कर दिया गया है। सरकार मौजूदा 2000 रुपए वाले नए नोट को भी वापस ले रही है।

बेहतर होगा कि भारत सरकार नकली नोटों की समस्या से निपटने के लिए और कड़ा कदम उठाए। इसमें अमेरिका से तकनीकी मदद ली जा सकती है। इसलिए कि उसके पास नकली नोटों से निपटने की उच्च प्रौद्योगिकी विद्यमान है तथा साथ ही उसके पास हर नकली अमेरिकी डाॅलर का फोटो सहित डाटाबेस भी उपलब्ध है। उसे जानकारी हो जाती है कि नकली डाॅलर कहां और किस रास्ते से आता है और इसे लाने वाले लोग कौन हैं। अगर भारत भी अमेरिकी प्रौद्योगिकी की सहायता लेता है तो निःसंदेह नकली नोटों पर नियंत्रण कसने में मदद मिलेगी।  

अरविंद जयतिलक (लेखक/ स्तंभकार)

 

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